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सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

लफ़्ज़ों को ओढना और बिछाना ही मोहब्बत नहीं होती.............

अपने गलत को भी तुमने

सदा सही माना

मेरी सच्चाई को भी तुमने

सदा ही नकारा

तुम तो अपनी कहकर

सदा पलट जाते हो

कभी मुड कर ना

हकीकत जान पाते हो

और अपने किये को

अपना प्यार बताते हो

मगर मेरे किये पर

सदा तोहमत लगाते हो

प्यार का अच्छा हश्र किया है

और इसे तुमने प्यार नाम दिया है

आह ! कितना आसान है ना

इलज़ाम लगाना

कितना आसान है ना

मोहब्बत के पर कुचलना

मोहब्बत करने वाले तो

मोहब्बत का दिया

विष भी अमृत समझ पीते हैं

मोहब्बत में ना शिकवे होते हैं

सिर्फ प्यारे की चाह में ही

अपनी चाह होती है

और मैंने तो ऐसी ही मोहब्बत की है

मगर तुम ये नहीं समझोगे

तुम्हारे लिए मोहब्बत

चंद अल्फाजों के सिवा कुछ नहीं

तुम्हारे लिए मोहब्बत

सिर्फ तुम्हारी चाहतों के सिवा कुछ नहीं

तुम्हारे लिए मोहब्बत

सिर्फ एक लफ्ज़ के सिवा कुछ नहीं

मोहब्बत कहना और मोहब्बत करने में फर्क होता है

शायद ये तुम कभी नहीं समझोगे

मोहब्बत तो वो जलती चिता है जानां

जिसे पार करने के लिए

मोम के घोड़े पर सवार होना पड़ता है

और तलवार की धार पर चलते

उस पार उतरना होता है

वो भी मोम के बिना पिघले

क्या की है तुमने ऐसी मोहब्बत ?

लफ़्ज़ों को ओढना और बिछाना ही मोहब्बत नहीं होती.............

13 टिप्‍पणियां:

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

bahut badhiya kavitaa... mohabbat kee nai paribhasha

Anita ने कहा…

मुहब्बत को कोई कहाँ जान पाया है आजतक..

shalini rastogi ने कहा…

दिल की गहराई से उभरे हुए अलफ़ाज़... बेहद गहराई व भाव लिए !

devendra gautam ने कहा…

आपकी नज़्म पढ़कर एक पुराने शायर का शेर याद आ गया---

मुहब्बत के लिए कुछ खास दिल मख्सूस होते हैं
ये वो नग्मा है जो हर साज़ पर गया नहीं जाता.

Rajesh Kumari ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगल वार 19/2/13 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर और सन्देशपरक रचना!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

पता नहीं क्या होती है मुहब्बत :):) आप जैसों को पढ़ कर समझने की कोशिश कर रही हूँ :)

Unknown ने कहा…

शब्दों से व्यक्त करना मुश्किल काम, अहसासों का बस नाम सच्ची कविता

Dinesh pareek ने कहा…

क्या खूब कहा आपने वहा वहा क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
मेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ

Dinesh pareek ने कहा…

क्या खूब कहा आपने वहा वहा क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
मेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ

सदा ने कहा…

क्‍या बात है ... बहुत खूब

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

लफ्जों को निभाना भी होता है।

Akhil ने कहा…

वाह वाह ...बहुत सुन्दर ...बेहद खूबसूरत चित्र तैयार किया है शब्दों के द्वारा।