चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनों
कहना कितना आसान लगता है ना
मगर क्या वास्तव मे ये संभव है
कैसे खुरच कर निकालोगे उन यादों के ढेर को
जो कहीं हीरे - जवाहरात सा
तो कहीं कूडे - कचरे सा
जमा होगा दिल के कोने - कोने में
कहीं यादों की कडवाहट
तो कहीं किलकारियाँ भरती जगमगाहटें
कहीं दर्द के फ़ानूस लटके होंगे
तो कहीं मोहब्बत के दीये जले मिलेंगे
जो कदम - कदम पर अपनी
उपस्थिति का भान कराते रहेंगे
जो कभी डराते रहेंगे
तो कभी उलझाते रहेंगे
और परिस्थिति वो ही दुरूह सी हो जायेगी
क्या आसान है अजनबी हो जाना
एक दूसरे को करीब से इतना जानने के बाद
क्या मुमकिन है एक नयी शुरुआत करना
फिर से अजनबियत का नकाब ओढ कर
जहाँ जानने को अब कुछ बचा ही ना हो
ये सिर्फ़ कहने में ही अच्छा लग सकता है
हकीकत में तो शुरुआत हमेशा शून्य से ही हुआ करती है ………
कहना कितना आसान लगता है ना
मगर क्या वास्तव मे ये संभव है
कैसे खुरच कर निकालोगे उन यादों के ढेर को
जो कहीं हीरे - जवाहरात सा
तो कहीं कूडे - कचरे सा
जमा होगा दिल के कोने - कोने में
कहीं यादों की कडवाहट
तो कहीं किलकारियाँ भरती जगमगाहटें
कहीं दर्द के फ़ानूस लटके होंगे
तो कहीं मोहब्बत के दीये जले मिलेंगे
जो कदम - कदम पर अपनी
उपस्थिति का भान कराते रहेंगे
जो कभी डराते रहेंगे
तो कभी उलझाते रहेंगे
और परिस्थिति वो ही दुरूह सी हो जायेगी
क्या आसान है अजनबी हो जाना
एक दूसरे को करीब से इतना जानने के बाद
क्या मुमकिन है एक नयी शुरुआत करना
फिर से अजनबियत का नकाब ओढ कर
जहाँ जानने को अब कुछ बचा ही ना हो
ये सिर्फ़ कहने में ही अच्छा लग सकता है
हकीकत में तो शुरुआत हमेशा शून्य से ही हुआ करती है ………
19 टिप्पणियां:
कहाँ आसान होता है स्मृतियों को मिटा पाना
हकीकत में तो शुरूआत ... बिल्कुल सच कहा
बेहतरीन प्रस्तुति।
badhiya kavita...
सही बात कहती हुयी रचना !!
sahi bat aasan kam nahi.......
It's impossible to become strangers again.
क्या आसान है अजनबी हो जाना
एक दूसरे को करीब से इतना जानने के बाद...
..बिल्कुल सत्य..शुरुआत हमेशा शून्य से ही हुआ करती है ………बहुत सारगर्भित और भावमयी रचना..
इस कविता के भाव ह्रदय को झकझोरने वाले हैं.अतीत की स्मृतियों को ताज़ा करने वाले. कोई अपना बिछड़ गया हो और वर्षों के अंतराल के बाद बदले हुए परिवेश में अचानक सामने आ जाये तो उसके साथ अजनवी की तरह व्यवहार तो नहीं किया जा सकता लेकिन पहले की तरह खुलकर बात कर पाना भी संभव नहीं होता. ऐसे वक़्त में ज़बान थम जाती है और आखें बोलने लगती हैं.
sunder rachna
अति सुंदर प्रस्तुति , बधाई ! पढ़ कर ,यह विचार उठा कि- यदि वाकयी में "मोहब्बत के दिये" जले हैं तो यकीनन उनकी टिमटिमाहट में "दर्द के फानूस" जुगनू बन जायेंगे ! वन्दना जी , जिससे प्रीति की वह तो प्रति पल हमारे हृदय में टिमटिमाता है ,वह यकबयक अजनबी कैसे बन जाएगा ? किसी जमाने में गाता था यह गीत बड़े दर्द से पर असलियत आज समझा !धन्यवाद !
बहुत उम्दा ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब अच्छी रचना इस के लिए आपको बहुत - बहुत बधाई
मेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
सही कहा. एक-दूसरे को अच्छी तरह जान लेने के बाद अजनबी बनना आसान नहीं है. कमबख्त यादें जीने नहीं देतीं.
बहुत खूब जनाब
मेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
बेहतरीन सार्थक रचना,आभार.
बहुत सराहनीय प्रस्तुति. आभार. बधाई आपको
गर इतनी आसान होती ज़िंदगी तो फिर बात ही क्या थी।
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धन्यवाद
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अच्छी रचना
बहुत सुंदर
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