उत्तरी गोलार्ध
और दक्षिणी
गोलार्ध के बीच
फैला असीम व्यास
मेरे तुम्हारे प्रेम के पन्ने सा ही तो है
पता नहीं कौन है, कौन सा गोलार्ध
मगर बीच में पड़ते
ये महाद्वीप, द्वीप
ये सागर , महासागर
ये नदियाँ , पर्वत , रेगिस्तान
दूरियों को पाटने में
कब सहायक हुए हैं भला
इन्होने ही तो दूरियों में
खाइयों का काम किया है
अब एक गोलार्ध से दूसरे गोलार्ध तक की दूरी
समय सीमा में बंधी होती तो पाट भी ली जाती
मगर ये तो युगों से यूँ ही लम्बवत पड़ी है
और बीच में देखो भूमध्य रेखा ने कैसे
दरार उत्पन्न की है
जिसके आर पार जाने के लिए
युगों का विस्तार करना होगा
क्योंकि जरूरी तो नहीं होता ना
हर बार भूमध्य रेखाएं चिन्हित ही हों
उनकी परिधि सुनिश्चित हो
और जो चिन्हित नहीं होते ना
उनकी खोज में , उनकी परिधियों को
चिन्हित करने में
युगों के आकलन भी कभी कभी अधूरे रह जाते हैं
फिर खोज तो कैसे मुकम्मल हो
अपने अपने अक्षांश पर सिमटे
ना जाने कब पाट पायेंगे दूरियों का गणित
सुना है मोहब्बत गणित का खेल ही तो है
जिसमे दो दूनी चार होता है
लेकिन घटाने पर सिर्फ सिफ़र ही हाथ लगता है
सुना है जहाँ सिफ़र आ जाता है
वहीँ इश्क मुकम्मल हो जाता है
वहीँ गोलार्ध का अस्तित्व मिट जाता है
क्योंकि
सृष्टि का आदि मध्य और अंत
सुना है शून्य में ही समाहित है
तो फिर
मोहब्बत का आदि मध्य और अंत
कैसे शून्य से इतर हो सकता है ...........
गोलार्ध के बीच
फैला असीम व्यास
मेरे तुम्हारे प्रेम के पन्ने सा ही तो है
पता नहीं कौन है, कौन सा गोलार्ध
मगर बीच में पड़ते
ये महाद्वीप, द्वीप
ये सागर , महासागर
ये नदियाँ , पर्वत , रेगिस्तान
दूरियों को पाटने में
कब सहायक हुए हैं भला
इन्होने ही तो दूरियों में
खाइयों का काम किया है
अब एक गोलार्ध से दूसरे गोलार्ध तक की दूरी
समय सीमा में बंधी होती तो पाट भी ली जाती
मगर ये तो युगों से यूँ ही लम्बवत पड़ी है
और बीच में देखो भूमध्य रेखा ने कैसे
दरार उत्पन्न की है
जिसके आर पार जाने के लिए
युगों का विस्तार करना होगा
क्योंकि जरूरी तो नहीं होता ना
हर बार भूमध्य रेखाएं चिन्हित ही हों
उनकी परिधि सुनिश्चित हो
और जो चिन्हित नहीं होते ना
उनकी खोज में , उनकी परिधियों को
चिन्हित करने में
युगों के आकलन भी कभी कभी अधूरे रह जाते हैं
फिर खोज तो कैसे मुकम्मल हो
अपने अपने अक्षांश पर सिमटे
ना जाने कब पाट पायेंगे दूरियों का गणित
सुना है मोहब्बत गणित का खेल ही तो है
जिसमे दो दूनी चार होता है
लेकिन घटाने पर सिर्फ सिफ़र ही हाथ लगता है
सुना है जहाँ सिफ़र आ जाता है
वहीँ इश्क मुकम्मल हो जाता है
वहीँ गोलार्ध का अस्तित्व मिट जाता है
क्योंकि
सृष्टि का आदि मध्य और अंत
सुना है शून्य में ही समाहित है
तो फिर
मोहब्बत का आदि मध्य और अंत
कैसे शून्य से इतर हो सकता है ...........
7 टिप्पणियां:
शून्य में सब कुछ समाहित है और शून्य गणित मे ही होता है।
--
सुन्दर अभिव्यक्ति!
--सुन्दर..
---सही आकलन ( गणित की बात है इसलिए ) किया है...सब कुछ शून्य ही तो है ..
---"समुद समाना सुन्न में" प्रेम --सब कुछ भूलकर ..स्वयं में...प्रेम में ...प्रेमी में.. लय-विलय होकर शून्य होजाना ही तो है
मोहब्बत का गणित कहाँ यहाँ तो भूगोल पसरा पड़ा है :):) विस्तृत व्यास पर चिन्हित करती सुंदर रचना
SUNDAR KAVITA LIKHI HAI JI AAPNE , SHABDON KA BADHIYA CHAYAN KIYA HAI AAPNE !! SHUBHKAMNAYEN !!
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Posted by PD SHARMA, 09414657511 (EX. . VICE PRESIDENT OF B. J. P. CHUNAV VISHLESHAN and SANKHYKI PRKOSHTH (RAJASTHAN )SOCIAL WORKER,Distt. Organiser of PUNJABI WELFARE SOCIETY,Suratgarh (RAJ.)
जब शून्य से भाग देना पड़े तो सब अनन्त हो जाता है...
वाह!
आप ने सुंदरता से सुने को प्रस्तुत किया है.
प्यार की खूबसूरत गणित व्याख्या
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