तुम्हारी हँसी में
सुर है
लय है
ताल है
रिदम है
एक संगीत है
मानो
मंदिर में घंटियाँ बज उठी हों
और
आराधना पूरी हो गयी हो
जब कहा उसने
हँसी की खिलखिलाहट में
हँसी के चौबारों पर सैंकडों गुलाब खिल उठे
ये उसके सुनने की नफ़ासत थी
या कोई ख्वाब सुनहरा परोसा था उसने
खनखनाहट की पाजेब उम्र की बाराहदरी में दूर तक घुँघरू छनकाती रही ………
8 टिप्पणियां:
एक मदमाती आनंदानुभूति.अच्छी रचना है.
खुबसूरत रचना |
मेरी नई रचना:- "झारखण्ड की सैर"
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (21-10-2013)
पिया से गुज़ारिश :चर्चामंच 1405 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मन में सरलता हो तो हंसी ऐसी हही होती है, जैसे कहीं सितार बज उठे।
sundar shabd chitran ...
बहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर रचना।
सुंदर रचना !
दीपपर्व मंगलमय हो !
आभार !
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