प्रियतमे !
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इतना कह कर
सोच में पड़ा हूँ
अब तुम्हें
और क्या संबोधन दूं
अब तुमसे
और क्या कहूं
मेरा तो मुझमे
जो कुछ था
सब इसी में समाहित हो गया
मेरी जमीं
मेरा आकाश
मेरा जिस्म
मेरी जाँ
मेरी धूप
मेरी छाँव
मेरा जीवन
मेरे प्राण
मेरे ख्वाब
मेरे अहसास
मेरा स्वार्थ
मेरा प्यार
कुछ भी तो अब मेरा ना रहा
जैसे सब कुछ समाहित है
सिर्फ एक प्रणव में
बस कुछ वैसे ही
मेरा प्रणव हो तुम
प्रियतमे !
कहो , अब और क्या संबोधन दूँ तुम्हें
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इतना कह कर
सोच में पड़ा हूँ
अब तुम्हें
और क्या संबोधन दूं
अब तुमसे
और क्या कहूं
मेरा तो मुझमे
जो कुछ था
सब इसी में समाहित हो गया
मेरी जमीं
मेरा आकाश
मेरा जिस्म
मेरी जाँ
मेरी धूप
मेरी छाँव
मेरा जीवन
मेरे प्राण
मेरे ख्वाब
मेरे अहसास
मेरा स्वार्थ
मेरा प्यार
कुछ भी तो अब मेरा ना रहा
जैसे सब कुछ समाहित है
सिर्फ एक प्रणव में
बस कुछ वैसे ही
मेरा प्रणव हो तुम
प्रियतमे !
कहो , अब और क्या संबोधन दूँ तुम्हें
16 टिप्पणियां:
सुन्दर अभिव्यक्ति। आभार।
bahut sundar.......
umda rachna
बहुत खूबसूरत सोच .... प्रणव ( ये ओंकार ) बना रहे ....
दिल से उठी एक पुकार में ही सारी भावनाएं समाहित हो गयी अब कहने को कुछ और नहीं..बहुत ही सुन्दर रचना...
:-)
आप की इस खूबसूरत रचना के लिये ब्लौग प्रसारण की ओर से शुभकामनाएं...
आप की ये सुंदर रचना आने वाले शनीवार यानी 26/10/2013 को कुछ पंखतियों के साथ ब्लौग प्रसारण पर भी लिंक गयी है... आप का भी इस प्रसारण में स्वागत है...आना मत भूलना...
सूचनार्थ।
खुबसूरत अभिवयक्ति......
जब मैं और तुम में भेद ही नहीं रहा तो संबोधन किसलिये.
priye tumhari aas hai, jab tak ki saans hai.
priye tumhari aas hai, jab tak ki saans hai.
बहुत ही सुन्दर रचना ..
अच्छी प्रस्तुति !अच्छा भला प्यारा विरोधाभास मिठास से भरा !!
अच्छी प्रस्तुति !
अच्छी प्रस्तुति !
वंदना जी ,
अपने प्रियतम को आपने अति सुंदर शब्दों से सम्भोदित करते हुए अपने आप में एक बहुत ही सुंदर और अलग तरह की अदभुत कविता लिखी हैं। … सादर
वंदना जी ,
अपने प्रियतम को आपने अति सुंदर शब्दों से सम्भोदित करते हुए अपने आप में एक बहुत ही सुंदर और अलग तरह की अदभुत कविता लिखी हैं।
… सादर
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