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बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

"बदलती सोच के नए अर्थ " का सफ़र


दोस्तों 
मेरे आने वाले पहले संग्रह "बदलती सोच के नए अर्थ " का सफ़र भी बहुत अजीबोगरीब रहा । पहले तो मैंने सोचा ही नही था संग्रह निकलवाने का । काफ़ी वक्त से कुछ दोस्त कहते रहते थे और मैं चुप हो जाती थी तब मेरी एक खास छोटी बहन सरीखी मित्र ने बहुत जोर दिया और इस संग्रह को निकलवाने को प्रेरित किया और हिन्दी अकादमी में भेजने के लिये जोर दिया और मैं हिम्मत ही नही कर पा रही थी क्योंकि वहाँ की राह नही जानती थी फिर भी उनके जोर देने पर हिम्मत करके पाण्डुलिपि तैयार कर ली और इसी बीच मेरा एक्सीडेंट हो गया और मैं बिस्तर पर हो गयी और सारा काम वहीं रुक गया और मैने तो उम्मीद का दामन भी छोड दिया क्योंकि जो पाण्डुलिपि जमा कराने की आखिरी तिथि थी वो पास आती जा रही थी और मै कुछ काम कर नही सकती थी मगर जैसे तैसै मेरी बेटी , बेटे और पति ने मिलकर सारे काम समय से पूरे करके जमा करवा दी तो एक निश्चिंतता आ गयी मगर अब थी इंतज़ार की घडियाँ जो लम्बी और लम्बी होती जा रही थीं और जब पुस्तक मेला नज़दीक आने लगा और प्रकाशक भी इतनी जल्दी छापने से हिचकिचाने लगे तब पता चला कि पुस्तक को अकादमी से स्वीकृति मिल गयी है तो समस्या यहाँ खडी हुयी कि पुस्तक मेले तक तो अब संभव ही नही किताब का आना और बहुत से मेरे मित्र चाह रहे थे कि पुस्तक मेले तक बुक आ जाये और ऐसे में एक बार फिर मेरी वो ही मित्र कृष्ण सा सारथी बन फिर सामने आ गयी और सारा जिम्मा अपने ऊपर ले लिया कि मै आपको छपवा कर दे दूंगी आप चिन्ता मत करें जिसे उन्हें इस खूबी से निभाया कि परिलेख प्रकाशन के अमन कुमार जी को मेरी पाण्डुलिपि सौंप दी और कह दिया इतने दिन में चाहिये किताब , ना पैसे की बात ना प्रतियों की बस सीधा कह दिया और मुझे निश्चिंत कर दिया और उन्होने भी अपने वचन को निभाया । मेरी तो प्रकाशक से तब जाकर बात हुई जब प्रूफ़ रीडिंग के लिये आया …………और आज उन्हीं के अपरिमित सहयोग और मार्गदर्शन की वजह से ये संग्रह आपके सम्मुख आ रहा है जिनके लिये , आभार , धन्यवाद और शुक्रिया जैसे शब्द मुझे बहुत तुच्छ लग रहे हैं क्योंकि आज के इस युग में कौन किसी के लिये इतना करता है निस्वार्थ होकर ……………यहाँ तक कि अब भी सब वो ही देख रही हैं जिन्हें हम और आप#डाक्टरसुनीता#के नाम से जानते हैं जो नही चाहती थीं कि उनका नाम सामने आये लेकिन मुझसे रहा ही नहीं गया इसलिये आज सब बता दिया .............जिन्हें अब भी जब चाहे जहाँ चाहे मैं फोन बजा कर तंग कर देती हूँ और वो मुस्कुराकर मेरा काम पूरा कर देती हैं बताइये ऐसे शख्स के लिये शुक्रिया शब्द कितना छोटा होगा इसलिये बस इतना ही कहूँगी उनके लिये जो मेरे दिल में मान सम्मान है वो शब्दों में बयाँ नहीं हो सकता , जाने किस जन्म का नाता है उनसे क्योंकि इस जन्म मे तो मैने ऐसा कुछ किया नही , ना उनसे इतना मिलना जुलना हुआ बस शायद दिल से ही दिल मिल गया ………मेरी पुस्तक के इस सफ़र की एक ऐसी साथी रहीं जिसके सहयोग के बिना इस पुस्तक का आना संभव ही नही दिख रहा था ………… #डाक्टरसुनीता#



6 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

इस ज़माने में ऐसे दोस्त कम ही मिलते हैं।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

नयी पुस्तक के लिये ढेरों शुभकामनायें, आपको और डॉ सुनीताजी को।

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत-बहुत बधाई के साथ..ढेरों शुभकामनायें आपको...
:-)

Anita ने कहा…

बहुत बहुत बधाई पुस्तक के लिए और इस मित्रता के लिए..

Rachana ने कहा…

aapko bahut bahut badhai aur aapki dost ko bhagvan sada khush rakhe
rachana

राकेश जैन ने कहा…


बहुत बधाई वंदना जी

अनुरोध है कि आप प्रकाशन कि प्रक्रिया के बारे में ब्लॉग में लिखे ताकि नए लोगों को जानकारी मिल सके. आपके उत्तम स्वास्थ्य कि कामना

हम पुस्तक कैसे प्राप्त करें?--