गुरु जी साहित्यिक गर्भ ज्ञान बतला दीजिये
कुछ दिव्य ज्ञान दे जिज्ञासा शांत कीजिये
बच्चा ये क्या आज तुझे सूझी
क्यों आज तुमने ये पहेली पूछी
गुरु जी साहित्य में आना चाहता हूँ
मैं भी नाम कमाना चाहता हूँ
बच्चा ये डगर उनके लिए नहीं आसां बस इतना समझ लीजै
जो उसूलों आदर्शों पर जीवित रहते हैं और उन्ही में जीते हैं
यहाँ तो हर ऐरे गैरे को महान बनाया जाता है
सिर्फ उसूलपसंद को ही हाशिये पर लुढकाया जाता है
गुरु जी आपका मार्गदर्शन चाहिए
आपकी कृपा रुपी कर कमल सिर पर चाहिए
बच्चा यहाँ गुट निरपेक्ष राज्य नहीं चलता है
बस गुट बनाने वालों का ही धंधा फलता फूलता है
तब अंधे के हाथो ही बटेर लगती है
वर्ना तो अन्यों की न यहाँ दाल गलती है
गुरु जी मेरे मन में उथल पुथल मची है
कृपया पूर्ण ज्ञान दीजिये
मुझे भी साहित्यिक बिरादरी में शामिल कीजिये
शिष्य की अधीरता देख गुरु बोल उठे
बच्चा फिर तो तुझे कमर कसनी होगी
सबसे पहले एक किताब छपवानी होगी
फिर सारे दांव पेंच खुद ही सीख जाएगा
गुरूजी आपके बिना मेरा साहित्यिक कैरियर लडखडायेगा
आपके बिना ये शिष्य कैसे साहित्यिक सागर पार कर पायेगा
बच्चा मेरी ऊंगली पकड़ गर चलेगा
तो जुगाड़ का दांव पेंच भी सीखना होगा
क्योंकि किताब छपते ही स्वतः विरोधी खर पतवार से उग आयेंगे
तेरे अपने बन तेरी जड़ में ही सेंध लगायेंगे
उनसे पहले तुझे चाल चलनी होगी
वो पटखनी दें उससे पहले ही जुगत करनी होगी
दो चार पुरस्कार जेब में करने होंगे
फिर खुद को सर्वेसर्वा सिद्ध करना होगा
हर अपने दुश्मन को पहचान उस पर हमला करवाना होगा
गुरूजी आप ये क्या बता रहे हो
हमला करवा मुझे जेहादी बना रहे हो
बच्चा कोई तुम्हें मारे उससे पहले वार करो
यही युद्ध का नियम होता है
गर नहीं मानेगा तो ओंधे मुंह गिरेगा
मैं कौन सा सच की हिंसा करवा रहा हूँ
बस शब्द बाण चलाने का हुनर बता रहा हूँ
फिर ठीक है गुरु जी
मैं तो डर गया था
बच्चा जो डरा सो मरा जानो
यहाँ तो चोरी और सीनाजोरी करने वाला ही मुकाम पाता है
दूसरा प्रतिभावान तो अपने दडबे में छुपा रह जाता है
अब सुन ध्यान लगाकर
सबसे पहले एक गुट का सदस्य बनना होगा
फिर कुछ साहित्यिक गोष्ठियां अपने गुट की करनी होंगी
खुद चुप रह साहित्यिक मित्रों के माध्यम से
प्रतिभावानों और समकालीनों की फजीहत करनी होगी
अपने गुट के लोगों से जुबानी वार करवाने होंगे
साथ ही खुद के स्तुतिगान भी उन्ही के माध्यम से करवाने होंगे
बच्चा तुम न कभी मुख से गलत बोलना
बस दूसरों के कंधे ही हमेशा प्रयोग करना
यूँ तुम्हारा सिक्का जम जाएगा
तब सच्चा ईमानदार भी तुमसे घबराएगा
और वो भी हाशिये पर चला जाएगा
बस जिस दिन ऐसी तिकड़में सीख जाओगे
जाति बिरादरी को अपनी तरफ कर लोगे
पुरस्कार तुम्हारी तरफ आकर्षित होंगे
और तुम साहित्यिक जगत में घुसपैठ कर लोगे
यहाँ पचास पुस्तक लिखने वाले हाशिये पर ही रह जाते हैं
बस जुगाडू और दूसरे के कंधे इस्तेमाल करने वाले ही आगे बढ़ जाते हैं
एक ही पुस्तक से खुद को चर्चित कर पुरस्कारों की लाइन लगा जाते हैं
गुरूजी तो क्या सच्चाई ईमानदारी का यहाँ कोई मोल नहीं
बच्चा मोल तो वास्तव में उसी का होता है
मगर यहाँ का धंधा तो जुगाड़ से ही चलता है
गर कोई नहीं जुगाड़ की राजनीति अपनाता है
फिर चाहे लेखन कितना उन्नत हो पिछड़े दलितों में गिना जाता है
या साहित्यिक बिरादरी से स्वमेव बाहर हो जाता है
इतना उसे उपेक्षित कर कुंठित किया जाता है
कोई इक्का दुक्का जीवट ही अंगद के समान पाँव जमा पता है
तो उससे न इनपर ख़ास असर पड़ता है
क्योंकि उनका धंधा तो भली भांति फूलता फलता है
बस इसी तरह साहित्य का बाज़ार चलता है
गुरूजी फिर कौन सा मार्ग अपनाऊँ सोच में पड़ गया हूँ
बच्चा ये तो तुझे ही तय करना होगा
साहित्यिक गर्भ ज्ञान जो तुझे मैंने दिया है
किसी से न जिक्र करना वर्ना
मेरा ही बहिष्कार हो जाएगा
मेरा डिब्बा ही साहित्य जगत से गोल हो जायेगा
सबके तीर तलवारों का मैं ही निशाना बन जाऊंगा
और असमय मौत का भोजन बन जाऊँगा
बस तू जो भी राह चुने मेरा न उपकृत होना
मुझे तो परदे के पीछे ही रखना
जब जब कोई समस्या आये इसी तरह उपाय पूछ लेना
अथ श्री साहित्यिक गर्भ ज्ञान कथा नमो नमः
निर्मल हास्य का आनंद लीजिये :)
4 टिप्पणियां:
वंदना जी ॥ बहुत खूब सब कुछ गड्ड-मड्ड है साहित्य मे साहित्य अब कहाँ है ... सब तुक बंदियाँ है
पंक्तियाँ आज के यथार्थ को परिलक्षित करती है। ……इन सुन्दर रचना के लिए बधाई
पंक्तियाँ आज के यथार्थ को परिलक्षित करती है। ……इन सुन्दर रचना के लिए बधाई
badhai ho
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