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सोमवार, 18 मई 2015

ए री सखी

ए री सखी
याद तो आती होंगी वो रेशमी मुलाकातें
जहाँ तुम थीं, मैं थी और थीं हमारी कभी न ख़त्म होने वाली बातें


उफ़
जाने कहाँ खो गए वो दिन वो रातें
जिनमे होती थीं कभी तरन्नुम सी बातें
रातरानी से महकते थे जब हम
बेख्याली में गुजर जाती थीं मुलाकातें
अब यादों के चंदोवे कहाँ बिछाऊँ
जिन पर वो महफिलें फिर से सजाऊँ
रह रह यही ख्याल आ रहा है
दिल बस यही गुनगुना रहा है
'गुजरा हुआ ज़माना आता नहीं दोबारा ' 


क्या सच री सखी
गुजरती है तू भी कभी यादों के उस दौर से
तो एक बार इशारा करना
मुझ तक पहुँच जायेगा
दिल से दिल को राह होती है वाला मामला जो ठहरा 


शायद उस पल
गुजरा वक्त इक पल को ही सही लौट आएगा , लौट आएगा , लौट आएगा ...

3 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ऐसी बातों के गलियारे में कभी उतर जाओ तो लौटने का मन नहीं करता ...
सुन्दर रचना ...

Rishabh Shukla ने कहा…

sundar rachna

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत बढ़िया