कत्ले आम का दिन था वो
अब सन्नाटे गूंजते हैं
और खामोशियों ने ख़ुदकुशी कर ली है
तब से ठहरी हुई है सृष्टि
मेरी चाहतों की
मेरी हसरतों की
मेरी उम्मीदों की
अब
रोज बजते शब्दों के झांझ मंजीरे
नहीं पहुँचते रूह तक
तो क्या खुदा बहरा हो गया या मैं
जिंदा सांसें हैं या मैं
मौत किसकी हुई थी उस दिन
नहीं पता
मगर रिश्ता जरूर दरक गया था
और सुना है
दरके हुए आईने को घर में रखना अपशकुन होता है
जिंदा सांसें हैं या मैं
मौत किसकी हुई थी उस दिन
नहीं पता
मगर रिश्ता जरूर दरक गया था
और सुना है
दरके हुए आईने को घर में रखना अपशकुन होता है
2 टिप्पणियां:
एक बार दरार पडे तो क्या आईना क्या रिश्ता सब बेमानी हें।
बहुत सुंदर लिखा...
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