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बुधवार, 16 अगस्त 2017

बातें हैं बातों का क्या .......

अम्बुआ की डाली पर
चाहे न कुहुके कोयल
किसी अलसाई शाम से
चाहे न हो गुफ्तगू
कोई बेनामी ख़त चाहे
किसी चौराहे पर क्यों न पढ़ लिया जाए
ज़िन्दगी का कोई नया
शब्दकोष ही क्यों न गढ़ लिया जाये
अंततः
बातें हैं बातों का क्या ...

अब के देवता नहीं बाँचा करते
यादों की गठरी से ... मृत्युपत्र

न दिन बचना है न रातें
फिर बातों का भला क्या औचित्य ?

श्वेत केशराशि भी कहीं लुभावनी हुआ करती हैं
फिर
क्यों बोझिल करें अनुवाद की प्रक्रिया

जाओ रहो मस्त मगन
मेरे बाद न मैं , मेरे साथ भी न मैं
बस सम ही है अंतिम विकल्प समस्त निर्द्वंदता का

कौन हल की कील से खोदे पहाड़ ?




डिसक्लेमर :
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©वन्दना गुप्ता vandana gupta  

5 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 17 अगस्त 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Sweta sinha ने कहा…

बहुत सुंदर रचना👌👌

Rajesh Kumar Rai ने कहा…

वाह ! बहुत ही खूबसूरत रचना की प्रस्तुति हुई है । बहुत खूब आदरणीया ।

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत सुन्दर...

'एकलव्य' ने कहा…

अत्यंत विचारणीय ! एवं मंथन योग्य विषय आभार "एकलव्य"