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बुधवार, 18 अप्रैल 2018

स्त्रियों के शहर में आज जम के बारिश हुई है

कृष्णपक्ष से शुक्लपक्ष तक की यात्रा है ये
आकाशगंगाओं ने खोल लिए हैं केश और चढ़ा ली है प्रत्यंचा
खगोलविद अचम्भे में हैं
ब्रह्माण्ड ने गेंद सम बदल लिया है पाला

ये सृष्टि का पुनर्जन्म है
लिखी जा रही है नयी इबारत मनु स्मृति से परे
ये न इतिहास है न पुराण
चाणक्य की शिखा काट कर टांग दी गयी है नभ पर
प्रतीकों को नहीं बनाना हथियार इस बार
भेस बदलने के चलन को कर निष्कासित
खिल रहा है स्वरूप धरती का

खामोशी की कंटीली डगर एक दुस्वप्न सरीखी
चाहे जितना करे स्यापा
चहक, महल, लहक की उजास से द्विगुणित हो गया सौन्दर्य

मंडप में विराजमान है आदिम सत्ता की राख
नृत्यरत है रक्कासा
देवियाँ बजा रही हैं दुन्दुभी और यक्षिणी फूल 

वहाँ रागों के बदल गए हैं सुर
पहले ख्वाब की पहली मोहब्बत सा
ये है उजास का पहला चुम्बन

स्त्रियों के शहर में आज जम के बारिश हुई है

2 टिप्‍पणियां:

Anita ने कहा…

बदलते हुए समय की और नारी शक्ति के पुनर्जागरण की अद्भुत गाथा..अत्यंत प्रभावशाली रचना..

shashi purwar ने कहा…

सुन्दर रचना व सुन्दर अभिव्यक्ति वंदना जी