मेरी ये कविता शनिवार 16 जून को जयपुर से प्रकाशित होने वाले पेपर 'बुलेटिन टुडे' में प्रकाशित कविता हुई और आज @kusum kapoor जी के पति सुरेन्द्र नाथ कपूर जी द्वारा उसका अंग्रेजी में अनुवाद कर दिया गया ........दोनों साथ में लगा रही हूँ :) :)
Kusum Kapoor इस सुंदर रचना का अनुवाद।
I have neither to go nor come
from anywhere.
Iam
like sunshine which stays in courtyard,
hope,which dwells in heart and life.
I have made my abode
far away from the realm of despair.
Where,
there is
dawn
evening
breeze
rain
sweet fragrance of earth
and
Life in every atom.
Life is not just being alive
.
Life is,what tells you where to stay
and
where to leave your footprints.
So that,
the seeds of my smile may stay alive
And sprout all over
in everybody's laughter.
It is then,you realize,
that
you have found your destination and
Your self.
I would like to sound like a counch shell
and
complete the meaning of life.
Coming and going
produce noise
whereas stillness is Silence
free from all reactions
and the cycle of coming and going.
Let me stay.
I am not a traveller
who only stops on way
to take a gulp of water.
ठहरना एक खामोश क्रिया है
****************************
मुझे
न कहीं जाना है न आना है
मुझे तो यहीं कहीं ठहरना है
जैसे ठहरती है धूप आँगन में
जैसे ठहरती है उम्मीद मन में
जैसे ठहरती है आशा जीवन में
नैराश्य के गह्वरों से
दूर बनाया है मैंने अपना आशियाना
यहाँ सुबह है
सांझ है
हवा है
बारिश है
मिटटी की सौंधी खुशबू है
कण कण में व्याप्त है जीवन
जीवन वो नहीं जो जीया जा रहा है
जीवन वो है जिसने बताया तुम्हें
कहाँ ठहरना है
कहाँ छोडनी है अपनी छाप
कि
कायनात के अंत के बाद भी
बचे रहें मेरी मुस्कराहट के बीज
कि
रक्तबीज सी उगूँ
और कण कण में बिखेर दूँ
खिलखिलाहट का बीज
हर चेहरे की मुस्कराहट के ताबीज में मिलूँ
तो जान लेना
मैंने जान लिया है ठहरना
मैंने पा लिया है अपना होना
शंखनाद सी गूंजूं और हो जाए ज़िन्दगी मुकम्मल
जहाँ आने और जाने में शोर है
वहीं ठहरना एक खामोश क्रिया है
जो किसी प्रतिक्रिया की मोहताज नहीं
करके आने जाने से मुक्त ...मुझे ठहरने दो
क्योंकि
मुसाफिर नहीं जो दो घूँट जल पी जल दूँ गंतव्य पर ...
न कहीं जाना है न आना है
मुझे तो यहीं कहीं ठहरना है
जैसे ठहरती है धूप आँगन में
जैसे ठहरती है उम्मीद मन में
जैसे ठहरती है आशा जीवन में
नैराश्य के गह्वरों से
दूर बनाया है मैंने अपना आशियाना
यहाँ सुबह है
सांझ है
हवा है
बारिश है
मिटटी की सौंधी खुशबू है
कण कण में व्याप्त है जीवन
जीवन वो नहीं जो जीया जा रहा है
जीवन वो है जिसने बताया तुम्हें
कहाँ ठहरना है
कहाँ छोडनी है अपनी छाप
कि
कायनात के अंत के बाद भी
बचे रहें मेरी मुस्कराहट के बीज
कि
रक्तबीज सी उगूँ
और कण कण में बिखेर दूँ
खिलखिलाहट का बीज
हर चेहरे की मुस्कराहट के ताबीज में मिलूँ
तो जान लेना
मैंने जान लिया है ठहरना
मैंने पा लिया है अपना होना
शंखनाद सी गूंजूं और हो जाए ज़िन्दगी मुकम्मल
जहाँ आने और जाने में शोर है
वहीं ठहरना एक खामोश क्रिया है
जो किसी प्रतिक्रिया की मोहताज नहीं
करके आने जाने से मुक्त ...मुझे ठहरने दो
क्योंकि
मुसाफिर नहीं जो दो घूँट जल पी जल दूँ गंतव्य पर ...
Kusum Kapoor इस सुंदर रचना का अनुवाद।
I have neither to go nor come
from anywhere.
Iam
like sunshine which stays in courtyard,
hope,which dwells in heart and life.
I have made my abode
far away from the realm of despair.
Where,
there is
dawn
evening
breeze
rain
sweet fragrance of earth
and
Life in every atom.
Life is not just being alive
.
Life is,what tells you where to stay
and
where to leave your footprints.
So that,
the seeds of my smile may stay alive
And sprout all over
in everybody's laughter.
It is then,you realize,
that
you have found your destination and
Your self.
I would like to sound like a counch shell
and
complete the meaning of life.
Coming and going
produce noise
whereas stillness is Silence
free from all reactions
and the cycle of coming and going.
Let me stay.
I am not a traveller
who only stops on way
to take a gulp of water.
2 टिप्पणियां:
मूल कविता और अनुवाद - दोनों बहुत सुन्दर
निमंत्रण विशेष : हम चाहते हैं आदरणीय रोली अभिलाषा जी को उनके प्रथम पुस्तक ''बदलते रिश्तों का समीकरण'' के प्रकाशन हेतु आपसभी लोकतंत्र संवाद मंच पर 'सोमवार' ०९ जुलाई २०१८ को अपने आगमन के साथ उन्हें प्रोत्साहन व स्नेह प्रदान करें। सादर 'एकलव्य' https://loktantrasanvad.blogspot.in/
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