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रविवार, 19 अक्तूबर 2008
दीवाली है मन के दीप जलाओ इन दीपो से जग को जगमग करो माटी के दीप तो बुझ जाते हैं मन के दीप तो हर दिल में ता-उम्र जलते हैं चलो कुच्छ ऐसा कर जायें मन के दीपो की एक माला बनाएं कुच्छ अपने जैसे लोगों के दिल में खुशियों के दीप जलाएं
1 टिप्पणी:
sundar kavita ;-)
Deewali ki shubkamnae
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