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मंगलवार, 5 मई 2009

पैसा ये सिर्फ़ पैसा है

कैसे कैसे रंग दिखाता है
क्या क्या नाच नाचता है
पैसा ये सिर्फ़ पैसा है
किसी का नही होता है
फिर भी
जिसके पीछे पड़ जाता है
उसका सुख चैन उडाता है
पल पल रंग बदलता है
रिश्तों को भी परखता है
किसी के साथ न जाता है
फिर भी हाथ न आता है
जिसके पास भी आता है
उसे आसमान में उडाता है
मगर ख़ुद न कभी बंध पाता है
बस अपना दास बनाता है
अपने रंग में रंग लेता है जब
तब अपने रंग दिखाता है
साँस साँस का मालिक बनकर
बुद्धि को भरमाता है
बुद्धि को जब फेर देता है
होशो-हवास भी छीन लेता है
दुनिया की तो बात ही क्या
दीन धर्म भी छीन लेता है
ज्ञानी जन भी नतमस्तक हो
इसको शीश झुकाते हैं
इसके अद्भुत रंगों से
कोई न बच पाता है
कहीं कम तो कहीं ज्यादा
अपने रंग दिखाता है
धरती का भगवान बनकर
अपनी पूजा करवाता है
पैसा ये सिर्फ़ पैसा है
धर्म, जाति , भाषा से उपर
इसका वैभव दीखता है
बिन पैसे तो भइया
जीवन सूना लगता है
अपने मोहजाल में फंसाकर
अपनों से दूर करता है
इसकी पराकाष्ठा तो देखो
इसके मद में चूर प्राणी
मर्यादा का भी हनन करता है
पैसा ये सिर्फ़ पैसा है
किसी का जो न कभी होता है

9 टिप्‍पणियां:

नवनीत नीरव ने कहा…

aisa nahi hai ki log iske dushprabhv se achhote hain par kay karein.........ye hamari jaroorat jo ban gaya hai.
Achchh likha hai aapne.
Navnit Nirav

सुशील छौक्कर ने कहा…

पैसा की अजब गाथा। जब हो तो भी दिक्कते देता है और ना हो तो भी दिक्कते देता है। खैर आपकी रचना सब कुछ कह गई। मै क्या कहूँ? हाँ एक बात आप भी नए नए अनुभव करती रहती है ब्लोग के टेम्पलेट के साथ।

रविकांत पाण्डेय ने कहा…

धन्य है पैसे की माया! ये इनसान से जो न कराये वो थोड़ा!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

गर नही हो गाँठ में कौड़ी-अधेला।
धन बिना बेकार है जीवन का मेला।।

किन्तु उसका दास बनना है तबाही।
धन का स्वामी बनके लूटो वाह-वाही।।

किन्तु सम्बन्धों में इसको बीच मे लाना नही।
रौब पैसे का दिखा कर, नीच कहलाना नही।।

अनिल कान्त ने कहा…

bahut achchha likha hai ....

राकेश जैन ने कहा…

paisa hai bhai paisa hai....

admin ने कहा…

सही कहा पैसा किसी का नहीं होता है, फिरभी हर कोई इसके लिए हर किसी को छोड देता है।

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SBAI TSALIIM

Prem Farukhabadi ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
राकेश कुमार ने कहा…

"पैसा ये सिर्फ पैसा है", बहुत सुन्दर रचना थी, मुझे लगता है समस्त बुराईयो की जड ये पैसा ही है. पैसे की ज्यादा भूख आदमी को अन्धा और विवेक हीन बना देता है.

अत्यन्त सुन्दर रचना