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गुरुवार, 21 मई 2009

माँ ममता और बचपन

माँ की ममता एक बच्चे के जीवन की अमूल्य धरोहर होती है । माँ की ममता वो नींव का पत्थर होती है जिस पर एक बच्चे के भविष्य की ईमारत खड़ी होती है । बच्चे की ज़िन्दगी का पहला अहसास ही माँ की ममता होती है । उसका माँ से सिर्फ़ जनम का ही नही सांसों का नाता होता है । पहली साँस वो माँ की कोख में जब लेता है तभी से उसके जीवन की डोर माँ से बंध जाती है । माँ बच्चे के जीवन के संपूर्ण वि़कास का केन्द्र बिन्दु होती है । जीजाबाई जैसी माएँ ही देश को शिवाजी जैसे सपूत देती हैं ।

जैसे बच्चा एक अमूल्य निधि होता है वैसे ही माँ बच्चे के लिए प्यार की , सुख की वो छाँव होती है जिसके तले बच्चा ख़ुद को सुरक्षित महसूस करता है । सारे जहान के दुःख तकलीफ एक पल में काफूर हो जाते हैं जैसे ही बच्चा माँ की गोद में सिर रखता है ।माँ भगवान का बनाया वो तोहफा है जिसे बनाकर वो ख़ुद उस ममत्व को पाने के लिए स्वयं बच्चा बनकर पृथ्वी पर अवतरित होता है ।

एक बच्चे के लिए माँ और उसकी ममता का उसके जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान होता है । मगर हर बच्चे को माँ या उसकी ममता नसीब नही हो पाती । कुछ बच्चे जिनके सिर से माँ का साया बचपन से ही उठ जाता है वो माँ की ममता के लिए ज़िन्दगी भर तरसते रहते हैं । या कभी कभी ऐसा होता है कि कुछ बच्चों के माँ बाप होते हुए भी वो उनसे अलग रहने को मजबूर हो जाते हैं या कर दिए जाते हैं । ऐसे में उन बच्चों के वि़कास पर इसका बड़ा दुष्प्रभाव पड़ता है । कुछ बच्चे माँ की माता न मिलने पर बचपन से ही कुंठाग्रस्त हो जाते हैं तो कुछ आत्मकेंद्रित या फिर कुछ अपना आक्रोश किसी न किसी रूप में दूसरों पर उतारते रहते हैं । बचपन वो नींव होता है जिस पर ज़िन्दगी की ईमारत बनती है और यदि नींव डालने के समय ही प्यार की , सुरक्षा की , अपनत्व की कमी रह जाए तो वो ज़िन्दगी भर किसी भी तरह नही भर पाती ।

कोशिश करनी चाहिए की हर बच्चे को माँ का वो सुरक्षित , ममत्व भरा आँचल मिले जिसकी छाँव में उसका बचपन किलकारियां मारता हुआ ,किसी साज़ पर छिडी तरंग की मानिन्द संगीतमय रस बरसाता हुआ आगे बढ़ता जाए, जहाँ उसका सर्वांगीन विकास हो और देश को , समाज को और आने वाली पीढियों को एक सफल व सुदृढ़ व्यक्तित्व मिले ।



जिस मासूम को मिला न कभी
ममता का सागर
फिर कैसे भरेगी उसके
जीवन की गागर
सागर की इक बूँद से
जीवन बन जाता मधुबन
ममता की उस छाँव से
बचपन बन जाता जैसे उपवन
बचपन की बगिया का
हर फूल खिलाना होगा
ममता के आँचल में
उसे छुपाना होगा
ममत्व का अमृत रस
बरसाना होगा
हर बचपन को उसमें
नहलाना होगा

माँ के आँचल सी छाँव
गर मिल जाए हर किसी को
तो फिर कोई कंस न
कोशिश करे मारने की
किसी भी कृष्ण को
अब तो हर कंस को
मरना होगा और
यशोदा सा आँचल
हर कृष्ण का
पलना होगा
आओ एक ऐसी
कोशिश करें हम

9 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जिसने कभी नही पाया,
ममता का गहरा सागर।
सूनी होगी चादर,
सूखी सी होगी उसकी गागर।।

मधुवन में मधुमास नही,
पतझड़ उसको मिलते होंगे।
उसके जीवन में खुशियों के,
फूल कहाँ खिलते होंगे।।

ममता की जब छाँव नही,
अमृत भी गरल घने होंगे।
आशाएँ सब सूनी होंगी,
पथ सब विरल बने होंगे।।

कृष्ण-कन्हैया को द्वापर में,
मिला यशोदा का आँचल।
कलयुग में क्या मिल पायेगा,
ऐसी माता का आँचल।।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
vijay kumar sappatti ने कहा…

vandan ji , aaj to aapne bahut ghahri baat kah di hai ... maa par likha kuch bhi padhna man ko bhaa jaata hai .. is baar aapne dil ko choo leni wali baaten likhi hai ..

mera salaam aapki lekhni ko

meri dil se badhai sweekar kariyenga

vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com

निर्मला कपिला ने कहा…

sach me ajkal ke jese halat hain vahan koi yashoda milna mushkil hai apni sagee maa ke pas hi samay nahin hai aur mamta bhi din v din apna rang badal rahi hai fir bhi aj agar kahin piar jinda hai to maa ka hi hai bahut sunder abhivyakti hai badhai

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

bahut bhadhiya......aap ne kitni sateek baat likhi hai..dhanyawaad.

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

वंदना जी
" सबसे पहले माँ, ममता और बचपन " आलेख के लिए बधाई स्वीकारें.

इस पोस्ट में आपने आलेख और कविता का समायोजन कर टू-इन-वन का आनंद दिलाया है.
आलेख एक एक शब्द माँ के अनुभव का वर्णन कर रहा है.
सच में जब बच्चे को माँ की ममता नसीब न हो तो वह बच्चा कितनी अहम् एहसास से परे हो जाता है ये केवल वे ही समझ सकते हैं जिन्हें माँ का प्यार नसीब हुआ है.

ममत्व भरे आँचल की छाँव में बचपन किलकारियाँ मारता हुआ किसी साज़ पर छिडी तरंग की मानिंद संगीतमय रस बरसाता हुआ आगे बढ़ कर सर्वांगीण विकास करे. और

ममता पर आधारित कविता भी हृदय स्पर्शी बन पडी है.
मुझे उम्मीद है वंदना जी कि भविष्य में भी आप ऐसे ही संवेदनशील पहलुओं पर प्रकाश डालकर हमारे दिलों को स्फूर्त करेंगी.
आभार.
- विजय

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

ek taraf zakhm, doosri taraf zindgi, ek taraf mamta, bachpan par mamatva bhara lekh doosri or hriday se nikalti hui ,dard, virah ki pukaar, kamaal! sochta hun aapka hriday......................

सुशील छौक्कर ने कहा…

वंदना जी मैं हमेशा कहता हूँ और आज भी कहूँगा कि माँ जैसा कोई नहीं। आपका लेख और आपकी रचना पसंद आई।

Science Bloggers Association ने कहा…

माँ की ममता का कोई जवाब नहीं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }