बाल श्रम के बारे में न जाने कब से बातें हो रही हैं और कभी कभी इसके खिलाफ कदम भी उठाये जाते हैं सब जानते हैं बच्चों से काम करवाना कानूनन अपराध है मगर क्या इसका सही ढंग से पालन किया जाता है ? क्या इसमें भेदभाव नही किया जाता?
आज मानवाधिकार आयोग बाल श्रम के ख़िलाफ़ कदम उठाता है । सरकार भी अपनी तरफ़ से भरसक कोशिश करती है मगर तब भी बाल श्रमिक हर जगह मिलते हैं । सवाल उठता है बाल श्रम किस पर लागू होता है ? क्या सिर्फ़ निचले तबके पर ही या फिर हर तबके पर , फिर चाहे वो ऊंचा तबका ही क्यूँ न हो ।
एक निचले तबके वाला बच्चा तो अपने जीने के लिए, दो वक्त की रोटी के लिए श्रम करता है । मगर ऊंचे तबके के लोग क्यूँ अपने बच्चों से काम करवाते हैं या फिर वो बच्चे काम क्यूँ करते हैं ? क्या उन्हें भी पैसों की उतनी ही जरूरत है जितनी कि निचले तबके के बच्चों को।
क्या यह बालश्रम नही ?
आज देखा जाए तो हर दूसरे सीरियल में , विज्ञापनों में बच्चे काम करते नज़र आते हैं। क्या ये बाल श्रम नही ?
एक तरफ़ तो एक बच्चा अपने जीने के लिए, पेट भरने के लिए काम करता है तो उसे पकड़ कर बाल सुधार गृह आदि में डाल दिया जाता है और दूस्रती तरफ़ सबकी आंखों के सामने , खुलेआम हम सब बच्चों को काम करते देखते हैं टेलिविज़न आदि पर , जबकि उन्हें पैसे की या कहो जिंदा रहने के लिए पैसे कमाने की उतनी जरूरत नही होती जितनी कि निचले तबके के बच्चों को होती है , फिर भी उनके खिलाफ न तो सरकार न ही मानवाधिकार आयोग कोई कदम उठता । क्या ये बालश्रम नही ?
अगर नही है तो फिर उन बच्चों को भी नही रोका जाना चाहिए जो जिन्दा रहने के लिए काम करते हैं और अगर रोका जाता है तो सरकार को उनके खाने पीने, रहने आदि के लिए इंतजाम करना चाहिए । या फिर कानून सबके लिए एक जैसा बनाया जाना चाहिए और एक जैसा ही लागू किया जाना चाहिए।
सिर्फ़ कानून को बनाना ही काफी नही है बल्कि उसको सफलता पूर्वक लागू भी किया जाए यह भी देखना सरकार का काम है । इसके साथ देश कि जनता को भी जागरूक होना चाहिए सिर्फ़ अपने खुशी के लिए अपने बच्चों को पैसा कमाने की होड़ में इस नाज़ुक उम्र में ही नही लगा देना चाहिए। उनके बचपन को उन्हें जी लेने देना चाहिए , ये तो उनका जन्मसिद्ध अधिकार है ।
बच्चे हैं हम
हमें जीने दो
रोटी , कपड़े
के लालच में
न ज़हर हमारे
बचपन में घोलो
क्या बचपन मेरा
फिर आएगा
दो घूँट खुशी के
पी लेने दो
बच्चे हैं हम
हमें जी लेने दो
आज इंसान को चाहिए अपनी महत्वाकांक्षाओं को थोड़ा कम करे और बच्चों को बच्चा ही रहने दे ।
बाल श्रम कानून सब पर एक जैसा ही लागू होना चाहिए क्यूंकि बच्चे तो सिर्फ़ बच्चे हैं फिर चाहे वो किसी भी तबके के हों ।
22 टिप्पणियां:
वंदना जी का आलेख " क्या यह बाल श्रम नहीं " पढा.
कानून कानून होता है , इसमें कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए .
बालश्रम सम्बन्धी वंदना जी ने जो सवाल उठाये हैं वे नए नहीं हैं, मानवाधिकार आयोग दशकों से निगरानी कर रहा है, परन्तु आज भी आयोग की कार्य शैली और उस पर कार्यान्वयन पर भरोसा अभी भी नहीं किया जा सकता है.. अभी भी सारे प्रयास नाकाफी हैं. इसी का उदाहरण है वंदना जी का ये आलेख.
एक बालक रोटी के लिए , दूसरा ख़ुशी और नाम के लिए श्रम करता है, दोनों ही को उनके अभिभावक स्वीकृति देते हैं.
एक विवशता में दूसरा अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु, सही मायने में दोनों ही दोषी हैं , और आयोग भी धृत राष्ट्री कार्यशैली का निर्वहन कर रहा है.
यदि सही मायने में केवल आवश्यकतानुरूप केवल टी वी चेनल्स हेतु बच्चे कार्य करते हैं रोज़गार नहीं , तब तक ठीक है, परन्तु उन्हें बचपने की खुशियाँ न देकर बालश्रम के रूप में कार्य कराया जाता है तो उन अभिभावकों, संस्थानों और आयोग को भी न्यायिक कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए.
यह विषय निश्चित रूप से विचारणीय और चर्चा का विषय है.
- विजय
आपने बहुत सही उपयुक्त सवाल उठाया है.....
यहाँ पर भी गरीबी का ही गला घुटता नज़र आता है.......
न जाने कैसी परंपरा कैसा अत्याचार है......
ये भेद-भावः क्यूँ...और कब तक.....
आपका लेख बहुत ही सही है
अक्षय-मन
श्रम-स्वेद से निर्माण हो जिसका, वही रचना सही है।
रेत, पत्थर से गुजर कर, धार गंगा की बही है।।
कूड़े और कबाड़े में जो रोजी खोज रहे हैं।
उनके जीवन को खुशियों से भरना होगा।
नन्हों और किशोरों के सुख की खातिर,
कुछ कुछ ठोस काम करना होगा।।
bahut sahi mudda uthaya hai vandana ji, bal shram jahan bhi jis roop men bhi hai, apraadh hai.
बहुत ही वाज़िब् सवाल है मगर जवाब किसके पास है? सरकार के पास शायद समाज के पास भी है बहुत गहरा गँभीर विश्य है जिसका हल नजर नहीं आ रहा अभी तक तो नहीं
उफ्फ़.....यहाँ पर भी अमीरी बनाम गरीबी, शौहरत बनाम लाचारी, मजदूरी बनाम बचपन में से जीत क्रमशः अमीरी, शौहरत एवं मजदूरी की हुई है......चिंता की बात है.....दोहरे मापदंड किसलिए???
साभार
हमसफ़र यादों का.......
श्रम-स्वेद से निर्माण हो जिसका, वही रचना सही है।
रेत, पत्थर से गुजर कर, धार गंगा की बही है।।
कूड़े और कबाड़े में जो रोजी खोज रहे हैं।
उनके जीवन को खुशियों से भरना होगा।
नन्हों और किशोरों के सुख की खातिर,
कुछ ठोस काम करना होगा।।
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vanadana, bahut sahi baat ke upar lekh likha hai , GOVT ne kaneeon bhi banaya hai ,lekin paalan kaun karta hai ..TV wali baat likhkar to tumne chaunka hi diya hai , is taraf to kisi ne socha hi nahi ...
badhai
vandna ji
aapne bhut hi mhtvpurn mudd uthaya hai .aaj ke bisiyo sal phle ekka dukka cinema me bachhe dikhai dete the ,kitu aaj har vigyapan hai t .v. dharavahik me paisa kmane aur sirf paisa kmane ke liye bchho ka dhdlle se shoshan kiya ja rha hai .
aur agr shoshan karne vala doshi hai to utna hi doshi shoshan karvane vala bhi doshi hai .yha tk to samjh aata hai kintu jab riylity show me bachhe ko bhonde rup me prstut kiya ja rha hai ceriyar ke nam par uske jimmevar koun hai ?
ma bap ,chenal vale, sarkar ya mobail compniya?
aapne ak sval uthakar bhut acha kary kiya hai jarurat hai is mudde ko kaise hal kiya jay?
अच्छा लिखा आपने लगभग १० वर्ष पूर्व मेरा एक सम्पादकीय फोटो सहित इस विषय पर प्रकाशित हुआ था...लेकिन क्या शासकों के कान पर कोई जूं रेंगेगी कभी....http//:gazalkbahane.blogspot.com/ पर एक-दो गज़ल वज्न सहित हर सप्ताह या
http//:katha-kavita.blogspot.com/ पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें
Sahi aur sateek likha hai......
वंदना जी,
आपने बहुत महत्त्व पूर्ण विषय उठाया .काश! यह समाज थोडा संवेदनशील होता.बधाई .
बहुत सार्थक लेख लिखा है आपने
वदंना जी आपने एक सही विषय उठाया है। सच जब छोटे बच्चों को काम करते हुए देखता हूँ तो बहुत दुख होता है। जो उम्र उनकी खेलने खाने की है उसमें वे कमा रहें है दो रोटी के लिए। इन्हीं बच्चों पर मैने कभी एक तुकबंदी की थी।
bache to nasamaj hai dil ke saaf hain unhe jaisa khah jayega waisa hi karenge par unke maa baap kis soch mein hai..... child actor industry nein bade hoke safal nahi hue
http://apanajunction.blogspot.com
वंदना जी सबसे पहले आपका शुक्रिया की आपने मेरी रचना के लिए इतना बढ़िया कमेन्ट किया...बाल श्रम पर जो आपकी सोच है मैं उससे सहमत हूँ...सर्कार को इस दिशा में काम करनी चाहिए
AAJ BAL SHRAM HAMARE DESH ME KEVAL KAGJI HATHIYAR BANA H JES ME HAMARE SRAKAR BAL SHRAM KO ROKNE KE LIYE HAR SAL 1000 RUPYE BARBAD KRATE H LEKIN BAL SRAMKO ROK PANA SARKAR KE VAS ME NAHI H KYO KI HAMRE DESH ME AAJ LOG APNE PARIVAR KE PET KO PALNE KE LIYE ROJGAR KI TALASH KARTE H OR APNE PET KO PALANE KE LIYE MAJBURN UM KO PET PALNE KE LIYE KAM KARNA PADTA H
baal sharm ko is desh se nahi pure sansar se hatana hoga tbhi ek krantikari badlao aayega................
mere vichaar se is samasya ka hal hum sabke paas hai bas jarurat hai suruaat karne ki. dosto hame hi aage badh kar is apradh ko rokna hoga. hame hi bal sharm ka virodh karna hoga tabhi sarkar dwara chalaya ja raha koi bhi kaanun safal hoga... isliye dusre ke karne ki intjaar mat karo apne se suruat karo sab aapke saath honge.
dhanywad.
mere vichaar se is samasya ka hal hum sabke paas hai bas jarurat hai suruaat karne ki. dosto hame hi aage badh kar is apradh ko rokna hoga. hame hi bal sharm ka virodh karna hoga tabhi sarkar dwara chalaya ja raha koi bhi kaanun safal hoga... isliye dusre ke karne ki intjaar mat karo apne se suruat karo sab aapke saath honge.
dhanywad.
hm sbko pehal kerni hogi kyuki bal shram lagatar badhta ja rha hai,iski zimmedar sarkar hai kyuki bal adhiniyam to bnaye gya hai per usper amal nhi ho rha hai aj traffic signle pe kai bche bheg magte mil jate hai shishe saf krate logo ko hi shram nhi ati hai to jimmedar kon hai bcho se unka bchpan cheenne ke liye............kisi ko hak nhi hai bcho se unki masummiyat ko cheenne ka...............
आज दुनिया भर में 215 मिलियन ऐसे बच्चे हैं जिनकी उम्र 14 वर्ष से कम है। और इन बच्चों का समय स्कूल में कॉपी-किताबों और दोस्तों के बीच नहीं बल्कि होटलों, घरों, उद्योगों में बर्तनों, झाड़ू-पोंछे और औजारों के बीच बीतता है। बाल अधिनियम बनने के बाद भी सरकार बाल श्रम को रोकने में नाकामयाब साबित हो रही है। ऐसे में हमें भी चाहिए कि हम किसी भी बच्चे से उसकी मासूमियत ना छीने उनसे काम ना कराए।
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