एक मुलाक़ात का
वादा चाहा उसने
मैं दे न सकी
मिलने की ख्वाहिश थी
फिर भी
मैं मिल न सकी
कुछ तो चोट लगी होगी
उसे भी
ये जानती हूँ मैं
मगर मेरी मजबूरियां
भी कम न थी
ये वो भी जानता होगा
अपनी ख्वाहिशों को
कैसे जब्त किया होगा
उसने
दिल पर अपने पत्थर
कैसे रखा होगा उसने
खामोशी का ज़हर
कैसे पिया होगा उसने
ये जानती हूँ मैं
मगर
कहीं बेपर्दा न हो जाऊँ
मेरी खातिर वो
कैसे जिया होगा
ये जानती हूँ मैं
दर्द के सैलाब से
गुज़र गया होगा
टीस चेहरे पर
आंखों में भी
न उतारी होगी
ये जानती हूँ मैं
कहीं कोई पढ़ न ले
कोई जान न ले
इस बेनामी
रिश्ते के
अनकहे
अनछुए
उसके जज्बातों को
इसलिए ज़हर का ये
कड़वा घूँट
कैसे पिया होगा उसने
ये जानती हूँ मैं
पल-पल कितनी मौत
मर-मर कर
जिया होगा
हँसी का कफ़न
चेहरे को उढाकर
कैसे हँसा होगा
ये जानती हूँ मैं
19 टिप्पणियां:
मन मे इतने सारे तुम,
जज्बात कहाँ से लाते हो।
ब्लॉग-जगत को अन्तर-मऩ,
क्यों खोल-खोल दिखलाते हो।
मन की पीर हृदय में रक्खो,
प्यार अगर सच्चा है।
दिल की बात जिगर मे रक्खो,
यही ठिकाना सच्चा है।
मन मे इतने सारे तुम,
जज्बात कहाँ से लाते हो।
ब्लॉग-जगत को अन्तर-मऩ,
क्यों खोल-खोल दिखलाते हो।
मन की पीर हृदय में रक्खो,
प्यार अगर सच्चा है।
दिल की बात जिगर मे रक्खो,
यही ठिकाना सच्चा है।
behad hi sanjida aur bhavpurn abhivyakti lagi aapki.Jo sachcha pyar karne wala hai wahi ye sab kar sakta hai.
भाव प्रधान रचना। वाह।
कद्र बहुत जज्बात की भरा नेक एहसास।
दो दिल का हब मेल हो वही वक्त है खास।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
प्यार करने वाले्
वफा यूँ ही किये् जाते हैं
विरह के घूँट पीते हैं
और जीये जाते हैं
बहुत सुन्दर भावमय कविता है बधाई
bahut hi sundar bhawabhiwyakti ...........too good
अपने मनोंभवो को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी ने बहुत खूब लिखा मन की पीर हृदय में रक्खो, पर मेरा ये कहना है :- जब प्यार तुम सच्चा करती हो, उसके दर्द को भी समझती हो...याने प्यार तो तुम सच्चा करती हो ! एक बार ही सही पर अपनी बात सीधे उस तक पहुँचकर देखो, क्योंकि ज़िंदगी भ्रम मे गुज़ारा माओट से भी बुरा होता है ! अपनी पूरी बात साफ, सीधे कहो और उसके दिल की पूरी बात सुनो ! कम से कम दोनो सुकून से रह पाओगे!
एक अजीब दर्द लिख दिया आपने
सुन्दर कविता है
दुसरे के मन को जाने की कोशिश में कितने ही गुमराह हुए है
आपका विशवास देखते ही बनता है
वीनस केसरी
vandna ji, wah ur aah.
बहुत ख़ूब, बहुत बढ़िया रचना है
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चर्चा । Discuss INDIA
achha likha hai aapne...emotions were good,flow was nice....
kavita ki 21st line me "magar" shabd redundant lag raha hai...mujhe nahi lagta ye shabd vahan hona chhaiye tha...gaur kijiyega...
कहीं बेपर्दा न हो जाऊँ
मेरी खातिर वो
कैसे जिया होगा
हँसी का कफ़न
चेहरे को उढाकर
कैसे हँसा होगा
ये जानती हूँ मैं
Dil ko choo gayi ye kavita.
आपकी कविता पढ कर यह शेर याद आ गया
कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं कोई बेवफा नहीं होता।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
bahut alag aur hatkar bhav hote hain aapki kavita main....kuch alag hi kashish hoti aapki har rachna main.//////
bahut hi sundar.........
एक मुलाक़ात का
वादा चाहा उसने
मैं दे न सकी
मिलने की ख्वाहिश थी
फिर भी
मैं मिल न सकी
bahut hi sundar.
vandana , bahut acchi abhivyakti ... bahut accha lekhan hai ..
badhai
हँसी का कफ़न
चेहरे को उढाकर
कैसे हँसा होगा
..........
इस जज्बात को बार बार पढने का मन करता है।
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