क्यूँ तेरी याद फिर आई है
लगता है
तुमने मुझे पुकारा है
किस दर्द ने फिर दस्तक दी है
तभी तो
हूक मेरे दिल में भी उठी है
तेरे गम से जुदा
मेरा दर्द कब था
तेरी इक आह पर
दर्द मेरा सिसकता है
लगता है
फिर कोई ज़ख्म उधड गया है
तभी तो
तेरी इक सिसकी पर
रूह मेरी कसमसाई है
कोई तो कारण रहा होगा
यूँ ही तो तेरी याद नही आई है
13 टिप्पणियां:
छोटी बहन वन्दना!
वियोग श्रृंगार लिखने में आपका जवाब नही है।
बहुत बढ़िया लिखा है।
तेरी इक सिसकी पर
रूह मेरी कसमसाई है
कोई तो कारण रहा होगा
यूँ ही तो तेरी याद नही आई है
बहुत सुन्दर लिखा है।
मान गये वन्दना जी!
आप वाकई में दिल से लिखती है।
बधाई!
दर्द की दस्तकें ....तुमने पुकारा है..यूँ ही तेरी याद नहीं आई है,मन तक ये दस्तकें चली आयीं
कोई तो कारण रहा होगा
यूँ ही तो तेरी याद नही आई है
जरूर कोई कारण रहा होगा. याद यूँ ही नही आती.
बहुत खूब
बेहतरीन
वाह क्या खूब एहसास को बयाँ किया है
अपने प्रिय को स्मरण करते हुए आपने यादों के चिराग ख़ूबसूरती से जलाए हैं।
सच कहाँ आपने यूं ही तेरी याद नहीं आयी। बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति
कोई तो कारण रहा होगा............
मन की तरंगों की प्रतिबद्धता दर्शाती बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना.
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
बहुत भावपूर्ण रचना!
बहुत ही गहरे भाव लिये हुये है रचना .....बधाई!
बढिया रचना ।
बढ़ा दो अपनी लौ
कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,
इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ
ओम आर्य
कहते है प्रेम, विरह और इससे जुडी सारी उमन्गे और वेदनाये ईश्वर तय करता है, तभी तो सच्चा प्रेम आत्माओ से महसूस किया जाता है, एक सच्चा प्रेमी अपनी प्रियतमा के मनोभावो को बिना कहे जान जाता है, पहचान जाता है, उनका सम्बन्ध किसी तरह दैहिक ना होकर आत्माओ से होता है और आत्मिक सम्बन्ध अस्थायी या क्षणिक नही होते यह तो जन्म-जन्मान्तर तक कही ना कही, किसी ना किसी रूप मे उनका मिलन कराता ही है,
कविता के भाव बहुत कुछ यही दर्शाते प्रतीत हो रहे है.
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