आज एक
खाली पहर
बीत रहा है
कोई सांस नहीं
कोई आस नहीं
कोई चाह नहीं
अब इसमें
हर स्पंदन मौन
वक्त की मूक
अभिव्यक्ति का
गवाह बनता
ये पहर
कुछ छीने
भी जा रहा है
जैसे लूट कर
ले गया हो कोई
किसी की अस्मत
और जुबाँ भी
मौन हो गयी हो
बचा हो तो
सिर्फ उस पहर का
रीतापन
अपने बेसबब
हाल पर
कुंठाओं के
बीज बोता हुआ
अब कुछ नही बचा……………
शायद खालीपन का अहसास भी नही
जैसे बुहारा गया हो आंगन
और निशाँ सब मिट चुके हों
26 टिप्पणियां:
प्रेम के एक और सुन्दर अप्रतिम अभिव्यक्ति .. बहुत सुन्दर !
जैसे बुहारा गया हो आंगन
और निशाँ सब मिट चुके हों
चलिए फिर नयी इबारत लिखिए ...काश ऐसा हो सके की निशाँ भी मिट जाएँ ....पर ऐसा होता नहीं ...
बहुत गहरे भाव लिए हुए कविता!
अरे वंदना जी लीजिये आपके खली पहर को अपनी टिप्पणी से भर देता हूँ.. :)
बहुत ही ख़ूबसूरत भाव हैं कविता के....
यह हैं देश के सच्चे सपूत और आप इन्हें ही नहीं पहचान पाए .... . ...
गहरे भाव..... अच्छी रचना !
गहरे भाव..... अच्छी रचना !
खालीपन के अंतिम बिंदु तक के सफ़र के परे जाकर खालीपन के रीतते जाने के अहसास की, दिल को कचोटती मर्मस्पर्शी और खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
वन्दना जी,
वाह....बहुत सुन्दर.....ये पंक्तियाँ बहुत शानदार बन पड़ी हैं क्या जबरदस्त उपमा दी है आपने इनमे ....बहुत सुन्दर .....
"अभिव्यक्ति का
गवाह बनता
ये पहर
कुछ छीने
भी जा रहा है
जैसे लूट कर
ले गया हो कोई
किसी की अस्मत
और जुबाँ भी
मौन हो गयी हो "
बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है आपने.
वंदना जी आपकी हर कविता लाजवाब होती है।
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ग्राम, पौंड, औंस का झमेला। <
विश्व की दो तिहाई जनता मांसाहार को अभिशप्त है।
her din behtareen khwaabon khyaalon hakikat ke bunti hain aap aur mujhe amrit ki kuch bunden mayassar ho jati hain
lovely !
जैसे बुहारा गया हो आंगन
और निशाँ सब मिट चुके हों
निशाँ जब मिट जाते हैं तो अप्रतिम सम्भावनाएँ नए निशाँ की हो जाती है
बेहतरीन रचना
जीवन के आँगन के निशां इतनी आसानी से कहाँ मिट पाते हैं।
खाली पहर फिर भी रीता कहाँ !
बीतता जीवन अभी है बीता कहाँ !!
सुन्दर रचना!
अकसरहां खालीपन के निशान मिटते नहीं ...
रह जाते हैं अमिट
छोड़ जाते हैं छाप।
जैसे बुहारा गया हो आंगन
और निशाँ सब मिट चुके हों
uff...itna sundar likha hai ke shabd maun hain, toooo good !
ख़ालीपन का एहसास सब कुछ लूट के ले जात है ... एकाकी हो जाता है मन .... बहुत अच्छा लिखा है ...
कोई सांस नहीं
कोई आस नहीं
कोई चाह नहीं
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रचना सोचने को बाध्य करती है!
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सुन्दर गवेषणा!
bahut sundar varnan man ki bhavnao ka....
ये पहर
कुछ छीने
भी जा रहा है
जैसे लूट कर
ले गया हो कोई
किसी की अस्मत
और जुबाँ भी
मौन हो गयी हो ...
बहुत ही ख़ूबसूरत...दिल को अभिव्यक्ति करती रचना
कहाँ मिट पाते हैं वक्त के निशाँ जितना भी बुहरा गया हो लकीरें तो रह ही जाती हैं। सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई।
ये पहर
कुछ छीने
भी जा रहा है
जैसे लूट कर
ले गया हो कोई
किसी की अस्मत
और जुबाँ भी
मौन हो गयी हो ...
बहुत ही ख़ूबसूरत रचना
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इतनी उम्दा कि कहीं जगह नहीं कि रख सकूं इधर से उधर कुछ भी.
शुभकामनाएं. जारी रहें.
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कुछ ग़मों के दीये
akelepan me bhi to anand hota hai. dhondhne wala chahiye
खालीपन का अहसास भी अगर नहीं रहा तो फिर तो बचा ही क्या। सही में अहसास काफी मूल्यवान होते हैं। पर कभी कभी वो भी नहीं बचते। सही कहा है आपने।
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