गरीबी के सिर्फ़ आंकडे होते हैं………आकलन नही
नसीब का सिर्फ़ एकाउंट होता है………बंटवारा नहीं
हुस्न के सिर्फ़ नखरे होते हैं………हकीकत नही
मोहब्बत के सिर्फ़ सपने होते हैं………पैमाने नही
शब्दों का आलिंगन रोज करती हूँ
तब कुछ देर के लिये जी लेती हूँये शब्द ही हैं जो हमे
जीने की कला सिखाते हैं
कभी शब्द रूह बन जाते हैं
कभी रूह शब्दो मे उतर आती है
अपनो के हाथ का मारा है हर शख्स
ज़िन्दा है मगर ज़िन्दगी का मारा है हर शख्स
मौसम सी बदल जाती हैं शख्सियतें
मिज़ाज़पुरसी की चाहत का मारा है हर शख्स
कमबख्त कौन से युग मे पैदा हो गया
जहाँ साया भी अपना होता नहीं
फिर गैर तो गैर ही होते हैं
उम्र भर ये ही नही जान पाया
बदनामी ओढ कर
इंसानियत के चोले मे
वजूद को ढांप कर सो गया
कमबख्त कौन से युग मे पैदा हो गया
29 टिप्पणियां:
सारी क्षणिकाएं गहन बात कहती हुई ...
कभी शब्द रूह बन जाते हैं
कभी रूह शब्दो मे उतर आती है
बेहतरीन भाव
शब्द से परे होकर भी क्या जीना
bahut sunder
sahitya surbhi
satya ko kahti hui sabhi paktiya..
अंतिम क्षणिका बहुत प्रभावित करती है.
सादर
बेहतरीन।
bahut sundar panktiyan..
khas taur par Shabd aur Rooh...
bahut khoob..
abhivadan..
नसीब का सिर्फ अकाउंट होता है बटवारा नही...
..
ये शब्द ही हैं जो हमें जीने की कला सिखाते हैं
शब्द कभी रूह बन जाते हैं
रूह कभी शब्दों में उतर आती है
..
बहुत खूब वंदना जी
आपकी एक भी कविता मिस किया तो बड़ा नुक्सान हो जाता है.....खैर में थोड़ा ज्यादा समय देकर अपने नुक्सान की भरपाई कर लूँगा ..
क्योंकीतक मैं इन नायाब पंक्तियों का लुत्फ़ लेता हूँ.
..
मिजाज पुरसी की चाहत का मारा है हर शख्स ....
कमबख्त कौन से युग में पैदा होगया
जहाँ साया भी अपना नही होता !!
सुन्दर शब्दचित्र!
सभी क्षणिकायें बहुत गहन और सटीक भाव लिये..बहुत मर्मस्पर्शी
शब्दों का आलिंगन रोज करती हूँ
तब कुछ देर के लिए जी लेती हूँ
ये शब्द ही हैं जो हमें जीने की कला सिखाते है
कभी शब्द रूह बन जाते हैं
कभी शब्दों में रूह उतर आती है !
वाह,एक एक शब्द में जैसे संवेदना का एक एक युग समाहित है !
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति !
आभार !
हुस्न और मोहब्बत वाला मामला थोड़ा फंस गया है। कई बार लगता है कि हुस्न में कुछ असलियत तो होती ही होगी, तभी इतने नखरे आते होंगे। और, मोहब्बत सिर्फ सपना नहीं हो सकती। सपना होती तो हर सुबह भूलती-हर शाम आती। कई बार दिल की गहराई से महसूस किया गया है कि मोहब्बत हकीकत है...सपनीली सी...थोड़ी दूर के लोक की...। बहुत स्थूल स्पर्श में नहीं आती, परंतु है तो कुछ अस्तित्व में अद्भुत सी।
बेहद सुंदर उद्गारों को पंक्तिबद्ध करने के लिए साधुवाद।
दिल को छू लिया....बहुत खूबसूरत
एक अलग मिजाज की कविता.... प्रेम की रूमानी दुनिया से यथार्थ का चित्रण....
ek se badhkar ek !
सारी क्षणिकाएं सुन्दर है .
दर्शन का अद्भुत संगम
atyant sunder rachna
इतने गूढ़ शब्द और उनका अर्थ
कुछ समझाएं वंदनाजी.हम तो बार बार पढ़ रहें हैं
'मोहब्बत के सिर्फ़ सपने होते हैं………पैमाने नही शब्दों का आलिंगन रोज करती हूँ
तब कुछ देर के लिये जी लेती हूँये शब्द ही हैं जो हमे
जीने की कला सिखाते हैं
कभी शब्द रूह बन जाते हैं
कभी रूह शब्दो मे उतर आती है'
इतने गूढ़ शब्द और उनका अर्थ
कुछ समझाएं वंदनाजी.हम तो बार बार पढ़ रहें हैं
'मोहब्बत के सिर्फ़ सपने होते हैं………पैमाने नही शब्दों का आलिंगन रोज करती हूँ
तब कुछ देर के लिये जी लेती हूँये शब्द ही हैं जो हमे
जीने की कला सिखाते हैं
कभी शब्द रूह बन जाते हैं
कभी रूह शब्दो मे उतर आती है'
यथार्थपरक रचनाएं....
आपका आभार।
कभी शब्द रूह बन जाते हैं
कभी रूह शब्दो मे उतर आती है
शब्दों से रिश्ता बहुत अच्छा लगा , बधाई
गरीबी,नसीब,हुस्न,मुहब्बत सभी को बखूबी परिभाषित किया है आपने वो भी केवल १-१ पंक्तियों में, वाह वंदना जी वाह.
इतनी सुन्दर कि पढ़ते ही बस इस रचना से प्यार हो गया. कितनी सच्ची-मुच्ची बातें एक ही फर्राटे में कह गयी आप.
शब्द जीने की कला सिखाते हैं।
जीवन का सत्य है यह।
कविता का भाव बिल्कुल अनूठा है।
भ्रष्टाचारियों के मुंह पर तमाचा, जन लोकपाल बिल पास हुआ हमारा.
बजा दिया क्रांति बिगुल, दे दी अपनी आहुति अब देश और श्री अन्ना हजारे की जीत पर योगदान करें आज बगैर ध्रूमपान और शराब का सेवन करें ही हर घर में खुशियाँ मनाये, अपने-अपने घर में तेल,घी का दीपक जलाकर या एक मोमबती जलाकर जीत का जश्न मनाये. जो भी व्यक्ति समर्थ हो वो कम से कम 11 व्यक्तिओं को भोजन करवाएं या कुछ व्यक्ति एकत्रित होकर देश की जीत में योगदान करने के उद्देश्य से प्रसाद रूपी अन्न का वितरण करें.
महत्वपूर्ण सूचना:-अब भी समाजसेवी श्री अन्ना हजारे का समर्थन करने हेतु 022-61550789 पर स्वंय भी मिस्ड कॉल करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे. पत्रकार-रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना हैं ज़ोर कितना बाजू-ऐ-कातिल में है.
बेहतरीन काव्य रचना, आपकी शब्द धार-दार हो रहे है बधाई
वन्दना जी, क्षमा चाहता हूँ कि आज सुबह सिस्टम की कारस्तानी और ध्यान बंटने की वजह से आपके ब्लॉग को संजय भास्कर जी का ब्लॉग समझ टिपण्णी कर बैठा था ! हुआ यूँ कि मैं उनके ब्लॉग पर कर्सर घुमा रहा था कि बीच में आपका ब्लॉग खुल गया और मैं यह समझा कि मैं अभी भी उसी ब्लॉग पर हूँ ! अभी जब आपके ब्लॉग को स्पेशली खोला तब जाकर गलती का अहसास हुआ !
sach ko sach hi kah diyaa aapne...
वंदना जी,
इस पर इतना ही.....क्या बात .....क्या बात......क्या बात ......सुन्दर
एक टिप्पणी भेजें