'मैंने उसे देखा
...लैपटाप लिए
चैट करते .......''
अब भिखारी भी
चैट करते हैं
पेट की आग से
नही जलते हैं
बस चैटिंग को
तरसते हैं
आम इंसान से ज्यादा
ये कमाई करते हैं
गये वो ज़माने जब
कोई तोडती पत्थर थी
खून को पसीने मे
बहाती थी
आज एयर कंडीशन
गलियारों मे
भिखारी भी बसते हैं
देखो कैसा बदला
देश है मेरा
जिसने बदला
वेश है सारा
भिखारी भी
हाइ-टैक हो गये हैं
टैक्नोलोजी की कीमत
समझ गये हैं
अब ऐसा देश है मेरा
आगे बढता देश है मेरा
दोस्तों
मुझे ये फ़ोटो फ़ेसबुक पर मेरे दोस्त आशुतोष ने भेजी और कहा कुछ
लिखो इस पर तो जो भाव इसे देखकर आये आपके सम्मुख हैं।
38 टिप्पणियां:
यह सच्ची तस्वीर नहीं है ... फेब्रिकेटिड है...
यह सच्ची तस्वीर नहीं है ... फेब्रिकेटिड है... और यह चित्र अपने देश का भी नहीं है....
@ अरुण चन्द्र रॉय जी
आजकल हमारे देश मे भी सब संभव है…………अभी आप जाइये झुग्गी बस्ती मे वहाँ आपको हर वो सामान मिलेगा जो हमारे आपके घर नही होगा और ये ऐसे ही नही कह रही सब देखा हुआ है तभी कहा है यहाँ तक की ए सी भी लगे मिलते है और हम सोचते है बेचारे कैसे रहते है और ये बात मेरी कामवाली बाई ने ही मुझे बताई है कि आपके घर मे भी वो नही होगा आंटी जो हमारी झुग्गियो मे मिल जायेगा।
ye bhikari nahi hai ...koi adventure work wala dikh raha hai....piche uska folded camp etc dikh raha hai ....
बहुत ही बढि़या लिखा है आपने ...।
unique post,thanks
काश ऐसा हो जाये देश तभी तो तरक्की करेगा
कोई शक नहीं कि किसी इलाके में भिखारी आम भारतीयों से अधिक अमीर हों .. झुग्गी झोपडी में रहनेवाले चोरी या अन्य कार्यों में लिप्त नवयुवक आम भारतीयों से अधिक कमाते हों .. और जरूरत के सब साधन इकट्ठे कर लेते हों .. पर अभी भारत की आम जनता का चतुर्दिक विकास नहीं हो पाया है !!
sabit hua n ki bharat aaj bhi sone ki chidiya hai...
sach kaha aapne bhikaari bhi hightake ho gaye hain .badiyaa orastuti.badhaai aapko.
नया जमाना,
नई उन्नति,
नई मति!
नई दिशा,
नई गति!
--
सुन्दर रचना!
तस्वीर भले ही कृत्रिम हो किंतु कविता में जो तथ्य है वह यथार्थ है।
भारत में ही लखपति भिखारी लाखों होंगे, अब तो करोड़पति भिखारी होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
नहीं वंदना हमारा देश हाई टेक जरूर हुआ hai लेकिन पत्थर तोड़ने वाली और बोझा
ढोने वालों के लिए भारत aaj भी वही है. वे पेट भर खाना नहीं जुटा पाते हैं. बूढ़े कन्धों पर परिवार का बोझ ढोते देखा है मैंने. हाँ भिखारी जरूर करोड़ पति तक मिल जायेंगे इसके कई उदाहरण हैं हमारे सामने.
हा हा क्या बात है की अब भिखारी भी लेप टॉप पर चैट करना ..... भिखारी भी टेक्नोक्रेट हो गए हैं ... एक नए अंदाज में बढ़िया रचना ....
बढ़िया लिखा है...
mitr ke fotu kaa sahi istemal kar bhtrin likh dala hai bahn vndna ji badhaai ho .akhtar khan akela kota rajsthan
:) हाँ अभी तक तो नहीं लेकिन एक दिन जरूर होगा..अभी तो मोबाइल तक ही पहुचे हैं :)
कई जिस्म और एक आह!!!
vndna ji
kadmbini ke julai nk me aapki kvita ''phn leti umr bhar ke liye ''dekhi . phut hi pyara khvab hai jise aapne shbdbdh kiya hai .
bdhai is khoobsoorat bhav ke liye .
jha tk is post ka swal hai to ye bhikhari bhrshtachriyon our choro se lakh drje achchha hai jo kr rha hai khul kr kr rha hai bgair kisi dr ke .uski tnmyta to dekhiye kabiletareef hai .
सुन्दर लिखा.. आज कल सब संभव है...
तरक्की की मिसाल है ये चित्र...
Sach sab sambhav hai hamare desh mein...
कल 12/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
मेरा कमेंट गुम गया...
गजब।
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डायनासोरों की दुनिया
ब्लॉग के लिए ज़रूरी चीजें!
badhiya likha hai. Sach he hai, aajkal har koi hightech ho raha hai.
sunder soch bharat to badal hi raha hai
rachana
har baar mar hi dalti ho apni rachnao se vandna ji
वंदना जी, अब आप कहीं यह तो नहीं कहने जा रहीं कि भिखारियों कि झोंपडियाँ भी बहुमंजिला हो गई हैं और उनके स्विसबैंक में खाते हैं.
कामवालियों के कहे पर न जाईयेगा.
अन्ना का साथ निभाईयेगा.
फोटो देखकर कविता लिखने के आपके हुनर की
प्रशंसा किये बैगर नहीं रहा जा सकता.
रक्षा बंधन के पावन पर्व पर आपको ढेर सी हार्दिक शुभ कामनाएं.
एक नए अंदाज़ के साथ बहुत सुन्दर और सटीक रचना! शानदार प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
चित्र के अनुसार अच्छी रचना ...
लेकिन अभी भी यह दृश्य आम नहीं हैं ...
अभी भी
वो तोडती पत्थर या वो आता दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता ... दिखाई देते हैं ...
भीख मांगना अब एक व्यवसाय का रूप ले चूका है......'ट्राफिक सिग्नल' फिल्म में यही सब दिखाया है|
जो भी किसी से कुछ मांगे वह एक तरह से भिखारी ही हुआ...यानि जिसका मन अतृप्त है तो ऐसे लोग झुग्गी में भी मिल जायेंगे और महलों में भी....
आजकल सब संभव है...
चित्र के अनुरूप रचना तो एकदम सटीक है ......
चित्र पर बहुत सटीक लिखा है आपने.
एक बार एक भिखारी ज़मीन पर बैठा भीख मांग रहा था.
उसके पास एक तख्ती रक्खी थी. उस तख्ती में लिखा था -
"यहां चेक भी स्वीकार किये जाते हैं".
सोचिये? कितनी तरक्की पर हैं भिखारी?
भिक्षाम देहि का एक और आयाम ,आप भी आन लाइन भिक्षा दीजिए ..........नेट बिन भीख भी नहीं ,तेरे बिन सूने नैन हमारे ,सुन ले विनती "नेट "हमारे ....
कृपया यहाँ भी आपकी मौजूदगी अपेक्षित है -http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/08/blog-post_9034.हटमल
Friday, August 12, 2011
रजोनिवृत्ती में बे -असर सिद्ध हुई है सोया प्रोटीन .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
बृहस्पतिवार, ११ अगस्त २०११
Early morning smokers have higher cancer रिस्क.
बहुत सुंदर ...और ढेरे सारे गरीब ऐसे भी हैं जो ऊंचे महलों में रहते हैं ...
अमेरिका की है संभवतः, तूफान के बाद की।
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