सुना है आज
रक्षाबंधन है
एक धागे में सिमटा
भाई बहन के प्यार का बँधन
जो धागे का मोहताज नहीं होता
सिर्फ स्नेह की तार में लिपटा
एक अनोखा बँधन
मगर पता नहीं
यहाँ तो कोई ख्याल उपजता ही नहीं
कभी किसी ने मरुभूमि को सींचा ही नहीं
जाना ही नहीं बदलियाँ कैसे बरसती हैं
मेह में मरुभूमि कैसे भीगती है
कभी कोई बदली छाई ही नहीं
कभी सावन की रुत यहाँ आई ही नहीं
नहीं जाना कभी कैसे मन पंछी
दिनों पहले उड़ने लगता है
नहीं जाना कैसे द्रौपदी के चीर का ऋण
कृष्ण उतारा करते हैं
शायद कुछ कलाईयों को
धागे नहीं मिला करते
या कुछ धागों को कलाइयाँ
कुछ अहसास हमेशा बंजर ही रहते हैं
कुछ आंगनो से बादल भी कतरा के निकल जाते है
या शायद मरुभूमि में कैक्टस ही उगा करते हैं
रक्षाबंधन है
एक धागे में सिमटा
भाई बहन के प्यार का बँधन
जो धागे का मोहताज नहीं होता
सिर्फ स्नेह की तार में लिपटा
एक अनोखा बँधन
मगर पता नहीं
यहाँ तो कोई ख्याल उपजता ही नहीं
कभी किसी ने मरुभूमि को सींचा ही नहीं
जाना ही नहीं बदलियाँ कैसे बरसती हैं
मेह में मरुभूमि कैसे भीगती है
कभी कोई बदली छाई ही नहीं
कभी सावन की रुत यहाँ आई ही नहीं
नहीं जाना कभी कैसे मन पंछी
दिनों पहले उड़ने लगता है
नहीं जाना कैसे द्रौपदी के चीर का ऋण
कृष्ण उतारा करते हैं
शायद कुछ कलाईयों को
धागे नहीं मिला करते
या कुछ धागों को कलाइयाँ
कुछ अहसास हमेशा बंजर ही रहते हैं
कुछ आंगनो से बादल भी कतरा के निकल जाते है
या शायद मरुभूमि में कैक्टस ही उगा करते हैं
26 टिप्पणियां:
वन्दना जी रक्षा बंधन के उपर आपने दिल को छु लेने वाली कविता लिखी है...
धन्यवाद्
बहुत सच कहा है...मन को छूते गहन और मर्मस्पर्शी भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति..आभार
आज के दिन भी इतनी निराशा ?
कलियाँ भले ही सुनी रहें पर एहसास खत्म नहीं होते
यहाँ तो कोई ख्याल उपजता ही नहीं
कभी किसी ने मरुभूमि को सींचा ही नहीं
जाना ही नहीं बदलियाँ कैसे बरसती हैं
मेह में मरुभूमि कैसे भीगती है
वंदना जी ,आपकी दिल की पीर का क्या कहें ?
आपके दिल से ये 'मरुभूमि', 'कैक्टस' के
अल्फाज दिल को बहुत पीड़ा पहुँचा रहें हैं.
अब मै क्या कहुं,आप ही ज्यादा जानतीं हैं.
रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ.
सुन्दर रचना , खूबसूरत भावाभिव्यक्ति
रक्षाबंधन एवं स्वतन्त्रता दिवस पर्वों की हार्दिक शुभकामनाएं
रक्षाबंधन पर सशक्त अभिव्यक्ति....रक्षाबंधन की शुभकामनायँ...
गंभीर कविता.. जी हाँ मरुभूमि के कैक्टस ही उगते हैं...
रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ।
कविता अच्छी लगी।
सादर
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर, शानदार और भावपूर्ण रचना! उम्दा प्रस्तुती!
अनुपम व पावन त्योहार।
Nice post .
रक्षाबंधन के पुनीत पर्व पर बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं...
देखिये
हुमायूं और रानी कर्मावती का क़िस्सा और राखी का मर्म
खुबसूरत प्रस्तुती....
मार्मिक अभिव्यक्ति।
ek sunapan ... dil ko chhu gaya
अर्थ समेटे हुए रचना , अच्छी लगी , बधाई
kaiktas ko
kam mat aankiye
kaiktas mein bhee
phool khilaa karte hein
nazariyaa achhaa ho to
bahnon ko bhaai,
bhaai ko bahanein
mil jaatee
soonee kalaaiyon mein bhee
raakhee bandh jaatee hai
कैक्टस की व्यथा
क्यों मुझ पर हँसते हो?
मुझ से नफरत करते हो
बिना कारण दुःख देते हो
अपनी इच्छा से कैक्टस
नहीं बना
मुझे इश्वर ने ये रूप दिया
उसकी इच्छा का
सम्मान करो
मुझ से भी प्यार करो
माली की ज़रुरत नहीं
मुझको
स्वयं पलता हूँ
कम पानी में जीवित
रहकर
पानी बचाता हूँ
जिसके के लिए तुम
सब को समझाते
वो काम में खुद ही
करता
भयावह रेगिस्तान में
हरयाली का अहसास कराता
खूबसूरत
फूल मुझ में भी खिलते
मेरे तने से तुम भोजन पाते
आंधी तूफानों को
निरंतर हिम्मत से झेलता
कभी किसी से
शिकायत नहीं करता
तिरस्कार सब का सहता
विपरीत परिस्थितियों
में जीता हूँ
फिर भी खुश
रहता हूँ
25-04-2011
763-183-04-11
रक्षा का विश्वास और एहसास हर भाई-बहन को होना चाहिए- पर्व से इतर भी।
वंदना जी,
बेहतरीन उद्गार...
भावनाओं की ये बातें भावनाओं वाले ही जान सकते हैं...
जय हिंद...
happy rakhi
vikasgarg23.blogspot.com
रिश्ते किस्मत से ही बनते हैं !
कविता में उन धागों और सूनी कलाईयों के दर्द ने दिल को छूआ !
इस रचना के बाद सिर्फ़ एक ही बात हो सकती है आंखें बंद करके चुप होकर बैठने की , वैसा सा ही लगा । बहुत गहरे उतार ले गईं आप
बहुत ही भावुक रचना.....
रक्षाबंधन एवं स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
मन को छूते गहन और मर्मस्पर्शी भाव सुन्दर अभिव्यक्ति
भावुक सी करती, निकट सपन्दित होती सी रचना....
सादर...
सारगर्भित लेखन ,सुन्दर है .....आभार /
एक टिप्पणी भेजें