मुसाफिर मिलते रहे
कारवां बनता रहा
हर मोड़ पर
एक नया मुसाफिर मिला
जिसने एक नया
रिश्ते का पौधा लगाया
उसे मैंने दिल की
धडकनों से सींचा
दिल के साथ साथ
रिश्ता पनपता रहा
जो कहता था
जी नहीं सकूँगा तुम बिन
वो रिश्ता मुँह मोड़ कर
कब चला जाता
पता भी ना चलता
और मैं पगली
उस रिश्ते को तब भी
अपनी धड़कन समझती
उसे दिल से लगाकर रखती
ये सोच शायद कभी तो
रिश्ता लौटेगा अपने दरख़्त पर
और खुद को भरमा देती
हर बार दिल को यही
तसल्ली देती -------नहीं
इस बार ऐसा नहीं होगा
इस बार ऐसा नहीं होगा
हर बार ठोकर खाती
खुद को संभालती
और चलने लगती
एक नए पौधे को रोंपने के लिए
फिर एक ज़ख्म खाने के लिए
एक बार फिर किस्मत से लड़ने के लिए
खुद को परखने के लिए
खुद को जानने के लिए
आखिर किस चीज का बना है ये दिल
जो कभी टूटता ही नहीं
किसी को बद्दुआ देता ही नहीं
शायद रिश्ते बोने की आदत पड़ चुकी है
कारवां बनता रहा
हर मोड़ पर
एक नया मुसाफिर मिला
जिसने एक नया
रिश्ते का पौधा लगाया
उसे मैंने दिल की
धडकनों से सींचा
दिल के साथ साथ
रिश्ता पनपता रहा
जो कहता था
जी नहीं सकूँगा तुम बिन
वो रिश्ता मुँह मोड़ कर
कब चला जाता
पता भी ना चलता
और मैं पगली
उस रिश्ते को तब भी
अपनी धड़कन समझती
उसे दिल से लगाकर रखती
ये सोच शायद कभी तो
रिश्ता लौटेगा अपने दरख़्त पर
और खुद को भरमा देती
हर बार दिल को यही
तसल्ली देती -------नहीं
इस बार ऐसा नहीं होगा
इस बार ऐसा नहीं होगा
हर बार ठोकर खाती
खुद को संभालती
और चलने लगती
एक नए पौधे को रोंपने के लिए
फिर एक ज़ख्म खाने के लिए
एक बार फिर किस्मत से लड़ने के लिए
खुद को परखने के लिए
खुद को जानने के लिए
आखिर किस चीज का बना है ये दिल
जो कभी टूटता ही नहीं
किसी को बद्दुआ देता ही नहीं
शायद रिश्ते बोने की आदत पड़ चुकी है
32 टिप्पणियां:
बहुत खूब !!
किसी को बद्दुआ देता ही नहीं
शायद रिश्ते बोने की आदत पड़ चुकी है
बहुत सही।
सादर
जिन्हें रिश्ता बनाने की आदत होती है उन्हें रिश्ता निभाने के समझ भी होनी चाहिए।
रिश्ते बोने कि आदत हो गयी है ... इन्हें सींचना भी ज़रुरी है ... अच्छी प्रस्तुति
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ।
बहुत बहुत बहुत सुन्दर लगी ये रचना...........हैट्स ऑफ इसके लिए.......मेरे साथ भी अक्सर ऐसे ही होता है पर हम कमबख्त रिश्ते बोने से बाज़ नहीं आते........वो जा के मोड़ मुड़ गया और मैं बस देखता रह गया.........सुभानाल्लाह |
बहुत खूब ! बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
हर मोड़ पर
एक नया मुसाफिर मिला
जिसने एक नया
रिश्ते का पौधा लगाया
उसे मैंने दिल की
धडकनों से सींचा
दिल के साथ साथ
रिश्ता पनपता रहा
जो कहता था
जी नहीं सकूँगा तुम बिन
वो रिश्ता मुँह मोड़ कर
कब चला जाता
पता भी ना चलता...is pagalpan me hi zindagi maun hoti jati hai
मुसाफिर मिलते रहे
कारवां बनता रहा
हर मोड पर
एक नया मुसाफिर मिला .....इसी सफर का नाम जिंदगी है दोस्त जी और वक्त के साथ हमें बढते ही रहना हैं |
बहुत सुन्दर रचना |
Nice .
अब तक हमारी गाइड के 26 लेख पूरे हो चुके हैं। देखिए
डिज़ायनर ब्लॉगिंग के ज़रिये अपने ब्लॉग को सुपर हिट बनाईये Hindi Blogging Guide (26)
यह एक यादगार लेख है जिसे भुलाना आसान नहीं है।
रिश्तों को परिभाषित करती एक अच्छी कविता...
बहुत सुन्दर।
रिश्ता बनाना और निभाना दोनों आना चाहिए, अच्छी रचना बधाई
zindgi ki kdvi sachchaai byaan ki hai aapne is drd bhri rachnaa me ...akhtar khan akela kota rajsthan
दिल से उपजी एक सुंदर रचना... रिश्ते अपनी कीमत तो मांगते ही हैं... वक्त के साथ बदल भी जाते हैं..
आखिर किस चीज का बना है ये दिल
जो कभी टूटता ही नहीं
किसी को बद्दुआ देता ही नहीं
शायद रिश्ते बोने की आदत पड़ चुकी है
ये आदत बनी रहे...सुन्दर रचना
दिल के अंदर की हकीकत शायद यही है।
बहुत सुंदर !
रिश्तों की नर्सरी में रोज़ बिकतें हैं ,रिश्ते ,नर्सरी में रोज़ उगतें हैं नए रिश्ते .....प्लास्टिक के कृत्रिम फूल हो गएँ हैं रिश्ते ,.अब रिश्ते दरख्त पर नहीं लौटते ,यहाँ दरख्तों के साए में धूप लगती है ,चलो यहाँ से चले और उम्र भर के लिए ,सुन्दर भाव जगत की धनात्मक विचार परक कविता .,बधाई कृष्णा ,जन्म दिवस मुबारक कृष्णा ...... ram ram bhai
शनिवार, २० अगस्त २०११
कुर्सी के लिए किसी की भी बली ले सकती है सरकार ....
स्टेंडिंग कमेटी में चारा खोर लालू और संसद में पैसा बंटवाने के आरोपी गुब्बारे नुमा चेहरे वाले अमर सिंह को लाकर सरकार ने अपनी मनसा साफ़ कर दी है ,सरकार जन लोकपाल बिल नहीं लायेगी .छल बल से बन्दूक इन दो मूढ़ -धन्य लोगों के कंधे पर रखकर गोली चलायेगी .सेंकडों हज़ारों लोगों की बलि ले सकती है यह सरकार मन मोहनिया ,सोनियावी ,अपनी कुर्सी बचाने की खातिर ,अन्ना मारे जायेंगे सब ।
क्योंकि इन दिनों -
"राष्ट्र की साँसे अन्ना जी ,महाराष्ट्र की साँसे अन्ना जी ,
मनमोहन दिल हाथ पे रख्खो ,आपकी साँसे अन्नाजी .
http://veerubhai1947.blogspot.com/
Saturday, August 20, 2011
प्रधान मंत्री जी कह रहें हैं .....
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
बहुत सुन्दर...
सादर बधाई...
बहुत ही सार्थक और भावपूर्ण रचना |
मेरी नई रचना जरुर देखें |अच्छा लगे तो ब्लॉग को फोलो भी कर लें |
मेरी कविता: उम्मीद
बहुत ही सार्थक और भावपूर्ण रचना |
मेरी नई रचना जरुर देखें |अच्छा लगे तो ब्लॉग को फोलो भी कर लें |
मेरी कविता: उम्मीद
sarthak abhivaykti.....
बहुत खूब कहा है आपने । बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
ये बहुत बुरी आदत है , लेकिन जो इस मिट्टी के बने होते हैं वे मजबूर होते हैं. अपने दिल के हाथों उन्हें हर रिश्ता अपना सा सच्छा दिखाई देता है और वो बार बार ठोकर मार कर खुद को सच और रोपने वाले को गलत सिद्ध कर देता है. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
मनोज जी,
रिश्ते तो हम बो सकते हैं लेकिन उन्हें सिर्फ एक तरफ से नहीं निभाया जा सकता है. कुछ लोग रिश्ते बनाते हैं लेकिन काम के साथ उनको उतार फेंकते हैं. ये कह सकते हैं कि हमें इंसान पहचानने की अक्ल नहीं है.
नहीं इस बार ऐसा नहीं होगा ...
यही विश्वास तो जीवन को गति देता है ..
अगर हम पहले ही ये मान लें तो जीवन स्थिर न हो जाये ...
हमें इन्हीं उलझावों के साथ जीना है ...
सुन्दर रचना .....
जिसने एक नये रिश्ते का पौधा ....का कर लें ...
वंदना जी,
हर संवेदनशील दिल ऐसे हीं फूलों से ज़ख़्म पाता है फिर उठ खड़ा होता और एक और नया रिश्ता बोता है कि शायद ये कोई ज़ख़्म न दे लेकिन...
बहुत खूबसूरत कविता, बधाई स्वीकारें.
ब्लॉग पर आपकी फौरी दस्तक के लिए बहुत बहुत शुक्रिया .
Saturday, August 20, 2011
प्रधान मंत्री जी कह रहें हैं .....
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
गर्भावस्था और धुम्रपान! (Smoking in pregnancy linked to serious birth defects)
http://sb.samwaad.com/
रिश्तों की अदायगी, ओह! ये रिश्ते तो रिसते हैं, क्या मोड़ दिया रिश्तों की मंशाओं को, आज एक बात कहूँ, दिल्ली में एक बार एक लडकी से मुलाक़ात हुयी, कहानी सुनी थी उसकी और देखा था रिश्तों के बीच फसें उसके वजूद को, और आज फिर वही १० साल पहले की वो लडकी याद दिला दी वन्दना जी! उसे भी रिश्ते बोने की आदत थी, आज क्या कहूँ? कोई रिश्ता उसके पास नहीं है, बेजान जी रहीं है. जिन रिश्तों को बोया था, आज उन्हीं में घुट खो गयी है.
अत्तयंत सुंदर .
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