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सोमवार, 19 सितंबर 2011

भरम कायम रखने के लिये चश्मो मे नमी तो होनी चाहिये…………

यूँ तो अलग हो जाती है धारायें
किसी ना किसी मोड पर
कभी ना कभी ये मोड
देते है दस्तक हर ज़िन्दगी मे
पर अलगाववाद की सीमाओं पर
ये अहम के पहरेदार
आखिर कब तक ? 
अलगाववाद की सीमा पर शायद
तभी दस्तक नही होती
क्योंकि भरम की दीवारों मे
रौशनी नही होती

भरम कायम रखने के लिये
चश्मो मे नमी तो होनी चाहिये…………


29 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेहतरीन।

Anita ने कहा…

यूँ देखें तो यह सारा जगत ही एक भ्रम का नाम है न जाने कितनी बार बिछड़े कितनी बार मिले हैं लोग, गिनती भी याद नहीं... छोटे से जीवन में क्या शिकवे और क्या शिकायत...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

भरम की दीवारों मे
रौशनी नही होती
भरम कायम रखने के लिये
चश्मो मे नमी तो होनी चाहिये………bahut hi gahre bhaw

रविकर ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
पढ़कर आनंदित हुआ ||
बधाई ||

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

हम सब जीवित हैं- इससे बड़ा भ्रम कोई दूसरा नहीं है।
सीख देती हुई कविता।

सदा ने कहा…

भरम कायम रखने के लिये ...गहन भाव समेटे यह अभिव्‍यक्ति ।

prerna argal ने कहा…

वंदनाजी आपकी रचना में बहुत ही गहरी बातें बहुत ही सुंदर शब्दों के चयन के साथ और बहुत ही शानदार ढंग से प्रस्तुत की जातीं हैं जिसको पढ़कर मन बहुत कुछ सोचने को मजबूर हो उठता है /बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति /बहुत बधाई आपको /
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है /जरुर पधारिये /आभार /

Suresh kumar ने कहा…

bahut hi khubsurat....

rashmi ravija ने कहा…

भरम कायम रखने के लिये
चश्मो मे नमी तो होनी चाहिये
बेहतरीन!!!

Rajesh Kumari ने कहा…

behtreen gahan bhaav.

Unknown ने कहा…

खूबसूरत और प्रश्न उठाती पोस्ट बधाई

मनोज कुमार ने कहा…

जब नमीं होती है आंखों में तो सब धुंधला दिखता है।

Dr Varsha Singh ने कहा…

भरम की दीवारों मे
रौशनी नही होती
भरम कायम रखने के लिये
चश्मो मे नमी तो होनी चाहिये……

बेहद शानदार लाजवाब .....

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आपका शब्द कौशल कमाल का है..बधाई स्वीकारें

नीरज

बेनामी ने कहा…

बहुत खुबसूरत..........बहुत पसंद आई पोस्ट|

दिगम्बर नासवा ने कहा…

दस्तक तो देती हैं ये धाराएँ .. पर अहम की दिवार सुनने नहीं देती ..

संजय भास्‍कर ने कहा…

इस खूबसूरत कविता को पढकर बस एक शब्द कहा जा सकता है -- आमीन!

अनुपमा पाठक ने कहा…

मोड़ पर से भिन्न राहों पर चल देना तो नियति ही है...
सुन्दर अभिव्यक्ति!

Pallavi saxena ने कहा…

क्यूंकि भरम की दीवारों में रोशनी नहीं होती
भरम कायम रखने के लिए
चसमों में नमी तो होनी चाहिए।
गहरे भाव लिए सुंदर अभिवक्ती...

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत खूबसूरत...

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

सीख देती हुई कविता।

वीरेन्द्र जैन ने कहा…

behatarin bhaavon ke saath bahut hi sunder shabd chayan...bahut bahut badhai aapko..

वाणी गीत ने कहा…

भरम कायम रखने के लिए चश्मों में नमी होनी चाहिए ...
वाह ...बहुत खूब !

सुमन दुबे ने कहा…

वन्दना जी नमस्कार। सुन्दर भावपूर्ण लाइनें हैं-भरम कायम रखने के लिये चश्मो मे नमी तो होनी चाहिये।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

पर अलगाववाद की सीमाओं पर
ये अहम के पहरेदार
आखिर कब तक ?

सार्थक रचना...
सादर..,

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

भरम कायम रखने के लिये
चश्मो मे नमी तो होनी चाहिये…………

गहन भाव को समेटे हुए अच्छी प्रस्तुति

Suresh kumar ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

नमी की कमी
सबसे बडी कमी
होती है।अच्छी रचना।

Rakesh Kumar ने कहा…

अलगाववाद की सीमा पर शायद
तभी दस्तक नही होती

बहुत गहन चिंतन है आपका.
कभी कभी तो सोचता ही रह
जाता हूँ कि क्या कह दिया है
आपने.