क्यों है आज भी नारी को एक सुरक्षित जमीन की तलाश ? एक शाश्वत प्रश्न मुँह बाए खड़ा है आज हमारे सामने ............आखिर कब तक ऐसा होगा ? क्या नारी सच में कमजोर है या कमजोर बना दी गयी है जब तक इन प्रश्नों का हल नहीं मिलेगा तब तक नारी अपने लिए जमीन तलाशती ही रहेगी.माना सदियों से नारी को कभी पिता तो कभी भाई तो कभी पति तो कभी बेटे के आश्रित बनाया गया है . कभी स्वावलंबन की जमीन पर पाँव रखने ही नहीं दिए तो क्यूँ नहीं तलाशेगी अपने लिए सुरक्षित जमीन ?
पहले इसके कारण ढूँढने होंगे . क्या हमने ही तो नहीं उनके पाँव में दासता की जंजीर नहीं डाली? क्यूँ उसे हमेशा ये अहसास कराया जाता रहा कि वो पुरुष से कम है या कमजोर है जबकि कमजोरी हमारी थी हमने उसकी शक्ति को जाना ही नही . जो नारी आज एक देश चला सकती है , बड़े- बड़े ओहदों पर बड़े- बड़े डिसीजन ले सकती है , किसी भी कंपनी की सी इ ओ बन सकती है , जॉब के साथ- साथ घर- बार बच्चों की देखभाल सही ढंग से कर सकती है तो कैसे कह सकते हैं कि नारी किसी भी मायने में पुरुष से कम है लेकिन हमारी पीढ़ियों ने कभी उसे इस दासता से आज़ाद होने ही नहीं दिया . माना शारीरिक रूप से थोड़ी कमजोर हो मगर तब भी उसके बुलंद हौसले आज उसे अन्तरिक्ष तक ले गए फिर चाहे विमान उड़ाना हो या अन्तरिक्ष में जाना हो ..........जब ये सब का कर सकती है तो कैसे कह सकते है कि वो अक्षम है . किसी से कम है . फिर क्यूँ तलाशती है वो अपने लिए सुरक्षा की जमीन ? क्या आकाश को मापने वाली में इतनी सामर्थ्य नहीं कि वो अपनी सुरक्षा खुद कर सके ?
ये सब सिर्फ उसकी जड़ सोच के कारण होता है और वो पीढ़ियों की रूढ़ियों में दबी अपने को तिल- तिल कर मरती रहती है मगर हौसला नहीं कर पाती आगे बढ़ने का , लड़ने का .जिन्होंने ऐसा हौसला किया आज उन्होंने एक मुकाम पाया है और दुनिया को दिखा दिया है कि वो किसी से किसी बात में कम नहीं हैं .आज यदि हम उसे सही तरीके से जीने का ढंग सिखाएं तो कोई कारण नहीं कि वो अपने लिए किसी जमीन की तलाश में भटकती फिरे .जरूरत है तो सिर्फ सही दिशा देने की .........उसको उड़ान भरने देने की ............और सबसे ऊपर अपने पर विश्वास करने की और अपने निर्णय खुद लेने की ..............फिर कोई कारण नहीं कि वो आज भी सुरक्षित जमीन के लिए भटके बल्कि दूसरों को सुरक्षित जमीन मुहैया करवाने का दम रखे.
दोस्तों
दैनिक भास्कर में एक परिचर्चा की गयी कि "नारी को आज भी सुरक्षित जमीन की तलाश है " तो मेरे मन में प्रश्न उठा कि क्यों है ? क्यों न हम उसके कारण ढूँढें और उसका निवारण करने की कोशिश करें . बस उस सन्दर्भ में जो विचार उभरे आपके समक्ष हैं.
30 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा मुद्दा उठाया आपने... पूर्वाग्रह त्याग कर इस पर सभी को विचार करना चाहिए...
सारगर्भित आलेख...
बहुत ही शाश्वत प्रश्न जिसका उत्तर ये समाज जाने कितने युगों से तलाश रहा है , चूंकि आप खुद उसका प्रतिनिधित्व करती हैं इसलिए बेहतर होगा कि पहले इस विमर्श को महिलाओं के बीच शुरू किया जाए , एक पुरूष के रूप में और फ़िर समाज के एक अंग के रूप में इस पर हम भी अपने विचार रखेंगे । मैं पुन: आऊंगा वंदना जी
बहुत सार्थक पोस्ट ! मुझे लगता है जहां अशिक्षा है वहाँ नारी अत्यंत दयनीय हालत में है. समाज की मानसिकता बहुत धीरे-धीरे बदल रही है. लेकिन आज से पहले नारी इतना श्रम भी नहीं करती थी जैसा आज की पढ़ी लिखी कामकाजी महिला कर रही है जितना देंगे उतना मिलेगा, हर वस्तु की कीमत तो चुकानी ही पडती है...
निवारण खुद नारी के ही हाथ में है.
मुझे तो लगता है कि अब पुराना समय नहीं रहा। महिलाएं बहुत ज्यादा दूसरों पर निर्भर नहीं रह गई हैं, वो आत्मनिर्भर हैं। हर क्षेत्र में उनकी पहुंच है।
सिक्किम में भूंकप मे मारे गए लोगों को जिस तरह से सेना की दो महिला पायलटों ने राहत कार्यों में हिस्सा लिया है, ये प्रशंसनीय है।
बहुत सार्थक प्रश्न उठाये हैं. आज नारी को अपने स्वर को उठाना ही होगा और समाज के सभी वर्गों को उसका साथ देना चाहिए. बहुत सारगर्भित आलेख...आभार
बहुत सटीक बातें कहीं हैं ... पोस्ट पर शब्द पूरे नहीं दिख रहे ..हर लाईन नीचे से आधी ही दिख रही है ...मैंने तो टिप्पणी कि जगह पूरी पोस्ट पढ़ी :):)
सार्थक लेखन
आपने बहुत ही तार्किक ढंग से बात रखी है।
@अजय कुमार झा जी
मैने तो ये मुद्दा सभी के आगे रखा है अजय जी ताकि हर कोई अपनी राय व्यक्त कर सके जिसमे स्त्रियाँ भी शामिल हों और पुरुष भी क्योंकि दोनो ही समाज के अंग हैं और दोनो मे से किसी की भी अनदेखी नही की जा सकती और ना ही दोनो के बिना जीवन सुचारु रूप से चल सकता है……………मगर इसके लिये दोनो के महत्त्व को नकारा ना जाये बल्कि स्वीकारा जाये । बराबर की मानसिकता पैदा की जाये आज इसकी जरूरत है ना कि इस बात की कि हम दोयम विचार रखें जब ऐसी सोच आ जायेगी और कभी भी किसी भी बच्ची को उसके लडकी होने से नही पहचाना जायेगा बल्कि उसे समग्रता से पहचान मिलेगी तभी हम सब अपने लक्ष्य को पाने मे कामयाब हो सकते है । हमे इसी सोच को बदलना होगा आखिर कब तक नारी दूसरों के सहारे को तरसेगी उसे खुद आगे बढना होगा तभी कोई स्थान अपने लिये बना सकेगी नही तो ये परम्परावादी सोच कि नारी अकेली कभी सुरक्षित नहि रह सकती उससे उसके जीने के अधिकार छीनती ही रहेगी। कोई भी सुधार एक दिन मे नही आता इसके लिये धैर्य की जरूरत है और साथ ही प्रयास करते रहने की ताकि हम सबको जागृत कर सकें क्योंकि जो संस्कारो और परम्पराओ के नाम पर , डर के नाम पर बीज बोये है उनकी जडें बहुत गहरी है और उन्हे धीरे धीरे ही बदलना होगा बस इसके लिये सामूहिक प्रयास की ही जरूरत है। आपका इन्तज़ार है अजय जी ।
बहुत सुन्दर ||
बहुत सार्थक पोस्ट ||
प्रस्तुति पर बधाई ||
तार्किक ढंग से प्रस्तुत एक विचारणीय विन्दु जिसे नाकारा नहीं जा जकता.
BAHUT TARK PURN DHANG SE AAPNE APNE VICHAR RAKHEN HAIN...SARTHAK POST
आप ने बहुत अच्छा और सार्थक मुद्दा उठाया ..इन सब के निवारण के लिए स्त्रियो को ही आगे बढ़ना होगा.... बहुत सारगर्भित आलेख...आभार
zamana badal raha hai...aap khud ko hi dekhiyae... jis level per aap hain, kya wo apki ma ko prapt tha? kya utni oppertunities unhe mili? in sabke hotae huae bhi jo prshna aapne uthaya hai wo wakai tarkik hai....
सुदृढ़ आधार देना होगा हम सबको।
बहुत ही तार्किक रूप से अपनी बात रखी है
बिलकुल सटीक
ज्वलंत प्रश्न .
इसे भी पढ़ें ....भारत में महिलाओं के साथ कैसा बर्ताव ?
http://www.ashokbajaj.com/2011/09/blog-post_27.html
आपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
जय माता दी..
आपने अच्छी जानकारी दी है.
शुक्रिया .
सार्थक पोस्ट है...
शिक्षित और आत्मनिर्भर महिलाएं ख़ुद अपनी दुनिया बनाती हैं, जहां उन्हीं का राज चलता है...
अच्छा मुद्दा उठाया है आपने ..सराहनीय प्रयास
शारीरिक संरचना मायने रखती है, अन्यथा नारी कमज़ोर नहीं , खुद को कमज़ोर स्वीकार कर लेती है -
बिल्कुल सही है परिचर्चा का विषय ।मुझे लगता है कुछ कमजोरी
तो महिलाओं को कुदरत ने ही दी है।
चाहे कितनी भी सबल हो जाये नारी
उसे हमेशा सुरक्षित जमीन की तलाश
करनी ही होगी।
बदलाव आ रहा है, लेकिन बहुत ही धीरे। जो महिलाएं शिक्षित, स्वतंत्र और आत्मनिर्भर हो भी रही हैं, उनसे द्वेष रखने वाले भी ज्यादा हो जाते हैं और उनके विकास में अनावश्यक बाधा डालते हैं , जिससे विकास और बदलाव प्रक्रिया धीमी हो जाती है। हर तरफ बढती असुरक्षा , स्त्री को एक ज़मीन तलाशने को मजबूर करती है।
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 29 -09 - 2011 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचल में ...उगते सूरज ..उगते ख़्वाबों से दोस्ती
sach kaha h aapne, purani soch or andhviswaso ke chalte or purane reeti reewajo ke chalte ye sab hota hai, ya fir nari khud bhi iske liye jimmedaar hai,
"जरूरत है तो सिर्फ सही दिशा देने की .........उसको उड़ान भरने देने की ............और सबसे ऊपर अपने पर विश्वास करने की और अपने निर्णय खुद लेने की ..............फिर कोई कारण नहीं कि वो आज भी सुरक्षित जमीन के लिए भटके बल्कि दूसरों को सुरक्षित जमीन मुहैया करवाने का दम रखे"
इस निष्कर्ष से पूरी तरह सहमत।
सादर
बहुत ही सम सामयिक प्रश्नों को प्रतिध्वनित करता सारगर्भित आलेख ..
शुभ कामनाएं एवं हार्दिक अभिनन्दन !!!
विचारणीय और सारगर्भित आलिख.
आग कहते हैं, औरत को,
भट्टी में बच्चा पका लो,
चाहे तो रोटियाँ पकवा लो,
चाहे तो अपने को जला लो,
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