ये कौन सी वक्त ने साज़िश की
देखो साजन
तुम्हारी सजनी
ना तुम्हारी रही
कभी नख से शिख तक
श्रृंगार मे
तुम्हारा ही अक्स
प्रतिबिम्बित होता था
तुम्हारे लिये ही
सजती संवरती थी
हर सांस
हर आहट
हर धडकन
सब तुम्हारे लिये ही
महकते थे
हर पल के
चाहे कितने ही
टुकडे करो
उनमे भी
तुम ही समाये थे
ये प्रीत के
सोपान गढे थे
मगर ना जाने
कैसी साज़िश हुई
वक्त की
सारे राज़ खुलते गये
जिसे समझा था
सीने की धडकन
वो ही धड्कने छीन ले गया
तुम तो कभी
साजन बने ही नही
एक फ़ासले से
साथ चलते रहे
शायद तभी
देहांगन और ह्रदयांगन
एक हुये ही नही
और देखो आज भी
साजन तुम्हारी सजनी ने
मन से , तन से
तुम्हारा त्याग कर दिया
और शायद
तुमने भी उसका
सिर्फ़ ज़रूरतों की जरुरतों ने ही
दोनो को बांधा हुआ है
क्योंकि चाहतें
पूर्ण समर्पण चाहती हैं
और वो भी दोतरफ़ा
एक तरफ़ा प्रेम और समर्पण तो
सिर्फ़ दिव्य होता है
इंसानी चाहतो मे
दोतरफ़ा प्रेम की चाहत
ही ज़िन्दगी को
अर्थ देती है
शायद इसीलिये
किसी भी क्षितिज़ पर
समानान्तर रेखायें नही मिलतीं
25 टिप्पणियां:
एक तरफ़ा प्रेम और समर्पण तो सिर्फ़ दिव्य होता है इंसानी चाहतो मे दोतरफ़ा प्रेम की चाहत ही ज़िन्दगी को अर्थ देती है....बहुर सुंदर अभिव्यक्ति ।
सुन्दर अभिव्यक्तिकरण
साभार
http://vicharbodh.blogspot.com
एकदम व्यावहारिक बात कही है.एकतरफा तो भक्ति हो सकती है, प्रेम नहीं.
थोडे से लफ्जों में बहुत गहरी बात कह दी आपने।
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मुई दिल्ली की सर्दी..
... बुशरा अलवेरा की जुबानी।
एक तरफ़ा और दो तरफ़ा प्रेम के रहस्य को कहती अच्छी प्रस्तुति
jeevan traasdi hai ,rishton ke kshitiz par rekhaayein miltee hee nahee
दिल में दबे दर्द को शब्द दिए
मिलने के लिये थोड़ा टेढ़ा होना पड़ता हैं रेखाओं को।
एक तरफा प्रेम दिव्य हो सकता है पर इंसान की दोतरफ़ा प्रेम और समर्पण ही सार्थक उपलब्धि है..बहुत भावपूर्ण और सशक्त प्रस्तुति...
bhtrin tdpan bhtrin jzbat ki akkasi hai aapki yeh rchna ..akhtar khan akela kota rajsthan
इंसानी चाहतो मे दोतरफ़ा प्रेम की चाहत ही ज़िन्दगी को अर्थ देती है ... iktarfe ka kya vajood !
अर्थ पूर्ण अभिव्यक्ति ...आभार
बेहद ख़ूबसूरत एवं उम्दा रचना ! बधाई !
गहरी भावाभिव्यक्ति।
सुंदर रचना।
एक तरफा और दो तरफा प्रेम को समानांतर रेखाओं के मध्य कुशलता से परिभाषित किया है.
अक्सर एकतरफा प्रेम कुर्बान को जाता है अपनी पहचान बनाने से पहले उसे तो दो तरफ़ा होना ही चाहिए बेहतरीन रचना
वन्दना जी, प्रेम तो बस प्रेम होता है...जो प्रेम में पड़ गया वह इसकी फ़िक्र नहीं करता कि उसे प्रतिदान मिल रहा है, जिसमें लेन-देन हो वह प्रेम नहीं कुछ और ही होता है...
बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति ||
बहुत सुन्दर ..........सच है कुछ रेखाएं कभी नहीं मिलती|
सुन्दर व्यवहारिक अभिव्यक्ति
सच कहा आपने- चाहते पूर्ण समर्पण चाहती हैं।
समान्तर रेखायें कभी नहीं मिलती।
ऐसा सच जो मेरी हृदय की अतल गहराईयों में
लुप्त हो गया था,आपने प्रकट कर दिया।
आभार......
वाह ...बहुत खूब ।
दो तरफ़ा प्रेम ही मंजिल को पाता है ... दो से एक बनाता है ... अन्यथा समानांतर रेखाओं की तरह चलता रहता है ...
सही कहा है कि एकतरफा तो सिर्फ उस बेनाम शक्ति के लिए ही प्रेम हो सकता है..
इंसानों में दोतरफा प्रेम होना एक होनी है जिसे टाला नहीं जा सकता..
प्यार में फर्क पर अपने विचार ज़रूर दें...
प्रेम का अपना क्षितिज होता है ....!!
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