ये कैसा चलन आया ज़माने का
सुनता है घुटती हुई चीखें
फिर भी सांस लेता है
दो शब्द अपनेपन के कहकर
कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है
काश ! उसने भी ऐसा किया होता
तेरी पहली ही चीख को
ना सुना होता
बल्कि अनसुना कर दबा दिया होता
फिर कैसे तेरा वजूद आज
सांस ले रहा होता
मगर इक उसने ही
वो दिल पाया है
जिसमे सिर्फ प्यार ही प्यार
समाया है
जिसने ना कभी
अपनी ममता का
मोल लगाया है
सिर्फ तुझे हंसाने की खातिर
अपना लहू बहाया है
अपनी साँस देकर
तेरा जीवन महकाया है
जन्म मृत्यु के द्वार तक जाकर
तुझको जीवनदान दिया है
ये तू भूल सकता है
बेटा है ना ............
मगर वो माँ है ............
पारदर्शी शीशों के पीछे
सिसकती ममता
सिर्फ आशीर्वाद रुपी
अमृत ही बरसाती है
जिसे देखकर भी तू
अनदेखा किया करता है
जिसे जानकर भी तू
अन्जान बना करता है
सिर्फ उसके बारे में
दो शब्द बोलकर
अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ सकता है
ऐसा तो बेटा सिर्फ
तू ही कर सकता है ............
क्योंकि
अपनी उम्र को तो शायद तूने तिजोरी में बंद कर रखा है ...........
34 टिप्पणियां:
वन्दना जी,बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।
बेहतरीन भाव संयोजन के साथ सार्थक व सटीक अभिव्यक्ति ।
दो शब्द बोलकर कर्तव्य का इतिश्री कर लेना आसन शगल हो गया है . सुन्दर रचना..
marmik kavita... umr ko tijori me band rakhna achha vimb hai.. sundar
बहुत ही सुन्दर रचना ......
सुभानाल्लाह......बहुत ही शानदार पोस्ट है..........हैट्स ऑफ इसके लिए|
लाख भुला दें .... उम्र आती है , सवाल करती है
sundar bhaav ekdam yathaarth
जन्म लेने वाला,जन्म देने वाले से बड़ा नहीं होता
धरती में
बीजारोपण हुआ
बीज अंकुरित हुआ
पल्लवित हुआ
पौधा पनपने लगा
पत्तियों से भर गया
एक कली खिली
फूल का जन्म हुआ
सौन्दर्य और महक से
सब को लुभाने लगा
आकर्षण का केंद्र
अब पौधा नहीं फूल था
घमंड में फूल इतराने लगा
पौधे और पत्तियों को
भूल गया
निरंतर अहम् में
रहने लगा
अहंकार में पत्तियों से
बात करना बंद कर दिया
पौधा व्यथित होता रहा
नादानी
समझ सहता रहा
समय के अंतराल में
पौधा मुरझा गया
फूल का भी अंत हुआ
समझ नहीं सका
अचानक क्या हुआ ?
भूल गया था
उसका सौन्दर्य
पौधे की देन था
पौधा ही पालनहार था
पौधा ही उसके अस्तित्व
का कारण था
वो मात्र एक अंग था
चाहे संतान कितनी भी
ऊंचाइयां ले ले
जन्म लेने वाला
जन्म देने वाले से
बड़ा नहीं होता
21-06-2011
1080-107-06-11
मार्मिक ..
मार्मिक ..
बहुत उत्कृष्ट और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..
hirdaysparshi rachna.....
behtareen prastuti, marmsparshee rachna, badhai
marmsparshi rachna aaj ki peedhi ko aayna dikhati hui.
औरों को अर्पित उम्र रही..
सवालो में उलझी जिन्दगी...... बेहतरीन रचना अभियक्ति.......
शायद येही सच है!
अपनी उम्र को शायद ...तुने तिजोरी में बंद करके रखा है ....???
गहरे भाव।
सुंदर रचना।
ममता सिसकती है फिर भी आशीर्वाद का अमृत ही बरसाती है...भावपूर्ण रचना... आभार
bahut hi sunder ..lajwab ..
रचना अच्छी लगी ..
बहुत मार्मिक रचना...दिल को छूती हुई.
भाव जगत को आलोड़ित करती सुन्दर प्रस्तुति .
भाव जगत को आलोड़ित करती सुन्दर प्रस्तुति .
वाह...!.कितना सच है इस कविता में ..कदापि पुत्र अपने व्यवहार से माँ का ह्रदय ज़रूर छलनी कर देते हैं ..माँ तो माँ है ..
समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी पधारियेगा ..
स्वागतोत्सुक
kalamdaan.blogspot.com
बहुत संवेदनशील रचना ...
बेहद मार्मिक .....बहुतो से सुना है की आज के वक्त माँ बाप के साथ ऐसा होता है (पर कभी अपने आसपास देखा नहीं हैं कभी )...तभी आज कल old age home बहुत तादाद में खुलते जा रहे हैं ...
बहुत ही सम्वेदनशील....
आपकी पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (२7) में शामिल की गई है /आप इस मंच पर पधारिये/और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आपका आशीर्वाद हमेशा इस ब्लोगर्स मीट को मिलता रहे यही कामना है /आभार /लिंक है /
http://www.hbfint.blogspot.com/2012/01/27-frequently-asked-questions.html
भावुक कर गई यह पोस्ट।
आज की सच्चाई !!
♥
आदरणीया वंदना जी
सादर अभिवादन !
अपनी उम्र को तो शायद तूने तिज़ोरी में बंद कर रखा है…
बेटों को अपनी जननी के प्रति दायित्व-बोध कराती बहुत भावनाप्रधान रचना है …
अपनी लेखनी , अपने कर्मों से हम इस कलियुग को सुधारने के प्रयास जारी रखें …
हार्दिक शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
yatharth prark drishti .....sundar bhav ke sath prabhavshali rachana ....badhai.
bahoot khoob dardilee
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