निश्छल मधुर सरस बचपन
अब कहाँ से तुझे पाऊँ मैं बचपन
ढूँढ रहा था कब से तुझको
भटक रहा था पाने को कबसे
बेफिक्री के तार कोई फिर से जोड़े
खाएं खेलें हम और सब कुछ भूलें
चिंताओं का अम्बार ना जहाँ हो
भूली बिसरी याद ना जहाँ हो
मस्ती का सारा आलम हो
गर्मी सर्दी की परवाह नहीं हो
बीमारी में भी जोश ना कम हो
बचपन की वो हुल्लड़ बाजी मचाऊँ
कभी कुछ तोडूं कभी छुप जाऊँ
पर किसी के हाथ ना आऊँ
कैसे वो ही बचपन लौटा लाऊँ
उम्र भर जुगत भिड़ाता रहा
आज वो बचपन मुझे
वापस मिल गया
पचपन में इक आस जगी है
मेरे मन की प्यास बुझी है
हँसता गाता बचपन लौट आया है
नाती पोतों की हँसी में खिलखिलाया है
शैतानियाँ सारी लौट आई हैं
नाती पोतों संग टोली बनाई है
हर फिक्र चिंता फूंक से उड़ाई है
हर पल पर फिर से जैसे
निश्छल मुस्कान उभर आई है
तोतली बातें मन को भायी हैं
अपने पराये की मिटी सीमाएं हैं
भाव भंगिमाएं भा रही हैं
खेल चाहे बदल गए हैं
कंचे ,गुल्ली डंडे की जगह
कंप्यूटर, क्रिकेट ने ले लिए हैं
पर इनमे भी आनंद समाया है
जो मेरे मन को भाया है
लडाई झगडे वैसे ही हम करते हैं
जैसे बचपन में करते थे
कभी कट्टी तो कभी अब्बा करते हैं
बचपन के वो ही मधुर रंग सब मिलते हैं
जो मेरी सोच में पलते हैं
तभी तो बचपन को दोबारा जीता हूँ
देख देख उसे हर्षित होता हूँ
जब मैं खुद बच्चा बन जाता हूँ
तब बचपन को फिर से पा जाता हूँ
हाँ मैंने तुझको पा लिया है
बचपन को फिर से जी लिया है
लौट आया वो मेरा बचपन
प्यारा प्यारा मनमोहक बचपन
निश्छल मधुर सरस बचपन
हँसता गाता मेरा बचपन
हँसता गाता मेरा बचपन
28 टिप्पणियां:
Bachpan ki baat hi kuchh aur thi, Shayad pachpan ki baat bhi kuchh aur hi hogi...
Behtreen rachna..
बच्चों के मन की बात बड़ों की जुवानी अच्छी लगी बधाई
बुढ़ापे को बचपन से ही अपनी यादें वापस मिलती हैं ...जवानी को फुर्सत कहाँ ...?
आभार यादें याद दिलाने का ...!
हाय क्या दिन थे वो भी क्या दिन थे ... वैसे जेहन से कभी नहीं जाते !
हाय क्या दिन थे वो भी क्या दिन थे ... वैसे जेहन से कभी नहीं जाते !
bahut sundar mam...makarsakranti ki bahut bahut shubhkaamnayen..
सुन्दर सार्थक पोस्ट, आभार.
सुन्दर!
बहुत सुंदर रचना और वैसे भी बचपन सबसे प्यारा होता है !
और जब भी बचपन पर कोई रचना पढता हूँ सहज ही एक नगमा गूंज उठता है !
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी !
बहुत आभार !
Haaye bachpan..Kahan chala gaya tu.... Kahan bhulta hai wo be'fikri wala pal..Mera bachpan..mera bachpan..
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं...
बहुत प्यारी रचना.
भला था कितना अपना बचपन....
वाह...बहुत सुन्दर रचना...बधाई स्वीकारें
नीरज
वाह फिर याद आया बचपन
वंदना जी,आपकी प्रस्तुति लाजबाब है.
आपके नाती पोतों का भी इंतजार है.
आप क्या अभी बच्चों से कम हैं.
बचपना अंदर हो तो कौन छीन सकता है जी.
बचपन के बिते हर एक पल का बहूत अच्छा वर्णन किया है
बहूत सुंदर कविता है...
बहुत सुन्दर.बचपन यद दिला दी..आभार...
मकर संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!...
बहुत बेहतरीन और प्रशंसनीय.......
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं...
एक बचपन माँगता हूँ
bachpan kee yaadon se
bach nahee paayaa koi kabhee
kahaan kho gayaa bachpan
dhoondhte rahte hein sabhee
bachpan ko khoob yaad kiyaa aapne
वो खेल वो साथी वो झूले
वो दौड़ के कहना आ छू ले
हम आज तलक भी ना भूले
वो खेल सुहाना,बचपन का
आया है मुझे फिर याद वो जालिम
गुजरा जमाना बचपन क......
बचपन सच में सबसे निराला होता है......
bahut achchi prastuti bachpan ki.
बचपन तो बस बचपन है ..
:):) आज कल मैं भी बचपन जी रही हूँ :) बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
bahut bahut bahut sundar ! i hv no word to say ...
bachpan ke wo din.......aaah
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