राम तुम्हारा चरित्र
तुम्हारा जीवन
तुम्हारा दर्शन
आज का मानव
समझ ना पाया
आदर्शवादिता को
अपना ना पाया
इसलिए तुम पर भी
लांछन लगाया
मर्यादित जीवन जीना
मर्यादा के लिए
स्वयं को भी होम कर देना
फिर चाहे सीता को दिया
बनवास ही क्यों ना हो
अपने आचरण से
शत्रु पर भी विजय प्राप्त कर लेना
फिर चाहे वो रावण ही क्यों ना हो
बड़े छोटे में ना भेद करना
सबको गले लगाना
कहीं कोई जातीयता ना का अभिमान करना
ना ही उंच नीच का भेदभाव होना
फिर चाहे वो निषादराज हो या केवट
और खुद को दुःख पहुँचाने वाले को भी
सम्मानित करना
फिर चाहे वो माँ केकई ही क्यों ना हो
तब भी उसे माँ ही कहना और
बराबर का सम्मान देना
किसी पीड़ित पापी को भी
प्रायश्चित करने पर माफ़ कर देना
फिर चाहे वो अहिल्या ही क्यों ना हो
ऐसा सिर्फ तुम ही कर सकते थे
और आज कलिकाल में
तुम्हारी मर्यादाएँ हर मोड़ पर
हर गली में
हर आंगन में
खंडित हो रही हैं
आज तो राम
माँ , बहन की मर्यादाएँ भी मिट रही हैं
अनीति, अनाचार, व्यभिचार, भ्रष्टाचार से
सारी दुनिया त्रस्त हो रही है
मगर सिर्फ तुम्हारे बताये रास्ते का
ना अनुसरण कर रही है
कहो राम ! कैसे फिर राम राज्य की स्थापना हो
कैसे फिर तुम्हारा पुनर्जन्म हो
क्या सिर्फ रामनवमी पर
तुम्हारा अभिषेक करने से
राम जन्म हो जायेगा
क्या इतने से ही मर्यादाएँ
स्थापित हो जाएँगी
क्या राम ! तुम्हारा मन नहीं दुखता
क्या राम ! ये मानव की दोगली नीति से
तुम व्यथित नहीं होते
क्या इस झूठे आडम्बर से
तुम वास्तव में प्रसन्न होते हो ?
कहो राम ! क्या खोखली परम्पराओं पर
जब तुम्हारी भेंट चढ़ती है
तब क्या तुम्हें नहीं लगता
जैसे तुम्हारे नाम पर तुम्हें एक बार फिर बनवास मिला है
अनंत काल के लिए ...........जहाँ से वापसी संभव ही नहीं
या शायद यही त्रासदी है मर्यादित इंसान होने की
या कहो भगवान होने की
सूली पर सिर्फ और सिर्फ तुम्हें ही चढ़ना है ............हर युग में
सत्य को शायद ऐसे ही परिभाषित होना है ........यही इसकी नियति है ..........है ना राम !!!!!!!
22 टिप्पणियां:
राम तुम्हारा चरित्र
तुम्हारा जीवन
तुम्हारा दर्शन
आज का मानव
समझ ना पाया ... समझना नहीं चाहता ,....
और अपने मन के अनुरूप
उसमें से कुछ का कुछ निकाल लेता है .
आज का मानव बन जाता है राम
बिना प्रयोजन सीता को करता है बेघर
जटायु , हनुमान , विभीषण - सबको भूल जाता है
भरत सीता को घूरता है
राम बना भाई कहता है
मेरा भाई है जो चाहे कर सकता है .....
हे राम हे कृष्ण
आज का मानव अपने स्वार्थ के हित में तुम्हें इस्तेमाल करता है
सटीक -
प्रभावी रचना --
रामनवमी की शुभ कामनाएं ।
सुविधा अनुसार चश्में बदल रहा इंसान ।।
दृष्टि-दोष से ग्रस्त है, अभिनव मानव-ज्ञान ।
चौदह चश्मे चक्षु पर, चतुर चोर बैमान ।
चतुर चोर बैमान, स्वार्थी क्रूर द्विरेतस।
बाल तरुण हो वृद्ध, सत्य भी देखे टस-मस ।
दृष्टि-कोण हर बार, बदलना गर्व घोष है ।
करे स्वयं पर वार, बावला दृष्टि-दोष है ।।
बिलकुल सही बात है ,आज कल चारों तरफ अत्याचार ही अत्याचार हो रहे हैं | भगवान राम सब कुछ देखते हुए भी चुप हैं ,आओ भगवान एक बार आओ और इस धरा से पापियों का नाश करो |
khoobsurat kavita
सच कहा मानव अपने दुष्कर्म के लिए किसी न किसी बहाने का आवरण लेता है .. और ऐसे में भगवान को भी नहीं छोड़ता ...
हम लोग दिखावा करने में उस्ताद हैं. हे राम. हा राम.
सुन्दर प्रस्तुति, सुन्दर भावाभिव्यक्ति, बधाई.
मन को उद्वेलित करने वाली रचना ... सब अपनी सुवुधानुसार राम की परिभाषा गढ़ लेते हैं
बहुत ही गहन भावो की प्रस्तुति..बहुत सुन्दर..
बहुत ही बेहतरीन रचना....
मेरे ब्लॉग
विचार बोध पर आपका हार्दिक स्वागत है।
रामनवमी की शुभकामनाएँ।
bahut achchhi rachna...
सत्य की राह पर चलने वाले को बहुत सी परीक्षाएं देनी होती है।
हे राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है.....
bahut bahut bahut sundar.
bahut bahut bahut sundar
बहुत ही अनुपम भाव संयोजन लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
एक सुंदर रचना आदरणीया वंदना जी....
किसी पीड़ित पापी को भी
प्रायश्चित करने पर माफ कर देना
चाहे वह अहिल्या ही क्यूँ ना हो...
अहिल्या पीड़ित तो ठीक पर पापी...??
यह भी हो सकता है इन पंक्तियों की संभवतः सही व्याख्या नहीं कर पा रहा मैं....
क्षमा याचना सहित सादर।
वो इसलिये क्योंकि उसमे वो भी बराबर की भागीदार थी क्योंकि वो इन्द्र को पहचान गयी थीं इसलिये पापी कहा लेकिन उन्होने प्रायश्चित किया तो क्षमा की भी भागीदार थीं वो।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्टस पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
राम-नवमी पर इससे अच्छी रचना क्या पढता?
सादर
वाकई राम का सम्पूर्ण जीवन , त्याग ,बलिदान ,सम्माज सेवा एवं जाती विद्वेष को मिटाने के प्रति समर्पित है
raam ek baar fir aakhon ke samne aa gae
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