ना जाने कैसे रिवाज़ हैं
निकलवाते हैं हम तारीखें
कभी मुंडन की तो कभी ब्याह की
कभी गृहप्रवेश की तो कभी शुभ लग्न की
चिन्ता रहती है हमेशा
सब शुभ होने की
सब कार्य ठीक से सम्पन्न होने की
मगर भूल जाते हैं आवश्यक कार्य को
जिस कारण जन्म लिया
जिस कारण मानव तन मिला
कभी नही सोचा उस बारे मे
नही की कोई चिन्ता
नही चाहा कुछ ऐसा करना
आखिर क्यों?
क्या जरूरी नही है
मानव तन का सदुपयोग
क्या जरूरी नही है
हर पल का उपयोग
क्यों नही विचार किया
क्यों नही निकलवाया
वो शुभ मुहुर्त कभी
जब प्रस्थान करना होगा
मगर हाथ मे ना कुछ होगा
उससे पहले जो जरूरी
कर्म खुद के प्रति करना है
क्यों ना उसका विचार किया
क्यों नही निकलवाया
वो शुभ मुहुर्त कभी
जिसमे खुद से साक्षात्कार कर सकें
कुछ आत्मविचार कर सकें
आखिर कैसे भूल जाते हैं हम
अपने परम कर्तव्य को
गर जिसे यदि साध लें
तो ना जरूरत पडे
कोई भी शुभ मुहुर्त निकलवाने की
फिर हर पल , हर दिन , हर मुहुर्त शुभ ही शुभ हो………
निकलवाते हैं हम तारीखें
कभी मुंडन की तो कभी ब्याह की
कभी गृहप्रवेश की तो कभी शुभ लग्न की
चिन्ता रहती है हमेशा
सब शुभ होने की
सब कार्य ठीक से सम्पन्न होने की
मगर भूल जाते हैं आवश्यक कार्य को
जिस कारण जन्म लिया
जिस कारण मानव तन मिला
कभी नही सोचा उस बारे मे
नही की कोई चिन्ता
नही चाहा कुछ ऐसा करना
आखिर क्यों?
क्या जरूरी नही है
मानव तन का सदुपयोग
क्या जरूरी नही है
हर पल का उपयोग
क्यों नही विचार किया
क्यों नही निकलवाया
वो शुभ मुहुर्त कभी
जब प्रस्थान करना होगा
मगर हाथ मे ना कुछ होगा
उससे पहले जो जरूरी
कर्म खुद के प्रति करना है
क्यों ना उसका विचार किया
क्यों नही निकलवाया
वो शुभ मुहुर्त कभी
जिसमे खुद से साक्षात्कार कर सकें
कुछ आत्मविचार कर सकें
आखिर कैसे भूल जाते हैं हम
अपने परम कर्तव्य को
गर जिसे यदि साध लें
तो ना जरूरत पडे
कोई भी शुभ मुहुर्त निकलवाने की
फिर हर पल , हर दिन , हर मुहुर्त शुभ ही शुभ हो………
17 टिप्पणियां:
अच्छी रचना
अच्छा दर्शन
अति शुभ भाव से सराबोर रचना.
शुभ कविता...
अति शुभ भाव...
सार्थक संदेश देती रचना ... अब तो लोग जन्म भी शुभ मुहूर्त निकलवा कर देने लगे हैं :):)
बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट।
शुभ सार्थक ...सुंदर रचना ....!!
शुभकामनायें वंदना जी ...!!
वहुत सुन्दर प्रस्तुति!
इतना ही सोच लें तो क्या बात ..अब तो बच्चे को जन्म भी मुहूर्त देखकर दिया जाता है.दुनिया आगे जा रही है या पीछे समझ में नहीं आता.
मृत्यु भी एक उत्सव है,आत्मा परमात्मा का मिलन...मुहूर्त तो निकालना ही चाहिए
दुर्गुणों से मुक्ति और सदगुणों का विकास आत्म साक्षात्कार के जरिये ही किया जा सकता है. इसके बगैर अपने जीवन के मकसद को नहीं समझा जा सकता. बहुत अहम् सन्देश दिया है आपने इस कविता के जरिये. आप बधाई का पात्र हैं.
बहुत सशक्त रचना है लेकिन अनुनासिक की अनदेखी ने फिर रुला दिया हर जगह नहीं कहीं नहीं नहीं ,नहीं नहीं नहीं .....नही न लिखो प्लीज़ !कर्म की और सहज प्रेरित करती सोच को धक्का देती रचना .
ram ram bhai
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मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012
प्रौद्योगिकी का सेहत के मामलों में बढ़ता दखल (समापन किस्त )
शुभविचार हों, सब दिन शुभ हों।
har muhurat shbh hee hota hai....hum log hee usey ashubh bana dete hain....andhvishvaason mein pad ke!
बहुत अच्छी विचारणा है !
शुभ समय पर पढ़ी गई कविता
अपनी दुनिया अपने ही लोग बस वहम में जीते और वहम में दम थोड़ देते है :)))
्मन चंगा तो कठौती में गंगा
उसके लिए हर मुहूर्त शुह है।
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