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रविवार, 11 नवंबर 2012

क्या है दिवाली का औचित्य?


सृजक पत्रिका के प्रथम संस्करण में प्रकाशित मेरा ये आलेख


यूँ   तो हर साल हम दिवाली  का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाते हैं और खुश होते हैं जैसे कितना बड़ा किला फतह कर लिया हो . जैसे सच में हमने रावण  का अंत कर दिया हो , जैसे सच में अँधेरे पर रौशनी की जीत हो गयी हो मगर क्या सच में ऐसा होता है ? क्या हम इस सच से अन्जान  हैं कि  आज भी अँधेरे का साम्राज्य चहूँ ओर  छाया हुआ है , आज भी रावण का राज्य उसी तरह विस्तार पा  रहा है जैसे तब था , आज भी सीता का हरण हो रहा है , आज भी  ईमानदार  और सत्यवादी का ही शोषण हो  रहा है , वो आज भी सत्य की कसौटी पर खरा उतने की कोशिश में बार बार मूंह की खा रहा है सिर्फ इसी कारण  कि  हम में ही कहीं न कहीं वो रावण  छुपा है जो आज भी राम की विश्वास रुपी सीता का हरण कर रहा है तभी तो ये देश , ये समाज कैसे गर्त में जा रहा है जिससे लगता है रावन राज्य  का कभी अंत हुआ ही नहीं .

सिर्फ फूलझड़ियाँ जला लेना , पटाखे चला लेना , दिए जला लेना ,घर आँगन बुहार लेना और पकवान बना लेना ही दिवाली मनाना  नहीं होता .अपने घर की सुख शांति के लिए लक्ष्मी गणेश की पूजा कर लेना , उनसे वैभव रिद्दी सिद्धि मांग लेना ही दिवाली मनाना नहीं होता .

सदियों से हम दिवाली को प्रतीक  के रूप में मनाते  आये मगर कभी  उसके महत्त्व को अपने जीवन में उतरना नहीं चाहा , कभी उसका महत्त्व समझना नहीं चाहा  तभी हमारा ये हाल है . चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार, घोटालों, बेईमानी ,हिंसा , यौन उत्पीडन , बलात्कार आदि का ही बोलबाला है और हम मूकदर्शक बने खड़े हैं ये सोच ऐसा हमारे साथ तो नहीं हुआ इसलिए हम क्यों आगे बढें , क्यों दूसरे  के फटे में टाँग  अडायें , अरे भाई हमें तो अपनी गृहस्थी संभालनी है और हम मूँह  फेर लेते हैं ऐसी विभीषिकाओं से जो एक दिन हमें अपने चंगुल में लपेट लेती हैं और उसके बाद कोई रास्ता खुला नहीं दिखता  तो हम बिलबिलाते हैं , कसमसाते हैं मगर तब भी ये नहीं समझ पाते हैं कि  हमने ही तो ये फसल बोई थी तो आज  काटनी  भी पड़ेगी . जबकि हम सभी जानते हैं कि  राम ने कभी असत्य , हिंसा , , झूठ कपट का रास्ता नहीं अपनाया उन्होंने हमेशा मर्यादित जीवन जिया मगर हम सिर्फ उनके जीवन को एक खेल तमाशा बनाकर मनोरंजन करते हैं , 10 दिन रामलीला की छुट्टियां मनाते हैं और फिर अपने काम पर लग जाते हैं मगर उनके जीवन के एक भी आदर्श को जीवन में नहीं उतारते तो भला ऐसे दिवाली का त्यौहार मनाने का क्या औचित्य ?

क्या हम खुद को धोखा नहीं दे रहे ? क्या हम अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को आँख मूंदने वाले संस्कार नहीं दे रहे? और हमारे  ऐसे कृत्यों से किसका भला होगा ? क्या देश का, क्या समाज का , क्या हमारे बच्चों का ? ये ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर समय रहते नहीं खोजा गया तो आने वाली पीढियां गूंगी , बहरी और अंधी  होंगी और उसके जिम्मेदार हम होंगे जो उनमे संस्कारों और मर्यादाओं के बीज न रोप सके और हमारे इस देश का नाम जो आज भी गौरव की बात है , सम्मान से लिया जाता है उसमे हमारी नपुंसकता का एक काला  अध्याय और जुड़ जायेगा जिसे किसी भी स्याही से न मिटाया जा सकेगा इसलिए जरूरी है वो वक्त आने से पहले हम चेत जायें और दिवाली के महत्त्व को समझें और समझायें और उसे जीवन में उतारें न केवल अपने बल्कि हर इंसान के दिल में एक दिवाली का दीया जलायें  तभी उसके  प्रकाश से हम , हमारा समाज और हमारा देश आलोकित होंगे  और यही तो दिवाली मनाने का  वास्तविक सन्देश है ..........हर घर आँगन आलोकित हो सत्य, अहिंसा,  ईमानदारी  और सदाचार के आलोक से .

23 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक आलेख!
बधाई हो!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत बढ़िया .... सृजक पत्रिका में लेख छपने की बधाई ...


दीपावली की शुभकामनायें

ग्रीटिंग देखने के लिए कलिक करें |

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बहुत ही सार्थक स्पष्ट रचना ... दिवाली की शुभकामनायें

kavita verma ने कहा…

srujak me lekh chhapne ki badhai..
deepawali ki shubhkamanaye..

mera naya blog bhi dekhe
http://kahanikahani27.blogspot.in/

Amrita Tanmay ने कहा…

अति सुन्दर आलेख.. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं..

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

सोच अपनी अपनी ..विचार अपने अपने ...खूबसूरत लेख ...

दीपावली और धनतेरस की भी शुभकामनाएँ

समयचक्र ने कहा…

दीपावली पर्व के अवसर पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें

रविकर ने कहा…

बहुत बहुत बधाई ।

शुभकामनाये पर्व-मालिका की ।

जय गणेश देवा

जय श्री लक्ष्मी ।।

जय माँ सरस्वती ।।
जय श्री राम -

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
त्यौहारों की शृंखला में धनतेरस, दीपावली, गोवर्धनपूजा और भाईदूज का हार्दिक शुभकामनाएँ!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
त्यौहारों की शृंखला में धनतेरस, दीपावली, गोवर्धनपूजा और भाईदूज का हार्दिक शुभकामनाएँ!

Gyan Darpan ने कहा…

दीपावली की शुभकामनाएँ

Gyan Darpan

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

वंदना जी, असल बात यह है कि यह त्‍योहार कहलाता तो राम के अयोध्‍या लौटने की खुशी में मनाया जाता है लेकिन इस बीच ही लक्ष्‍मीजी बीच में आ गयी। लोग राम के प्रेम और त्‍याग को भूलकर लक्ष्‍मीजी के अगवानी में लग गए। लक्ष्‍मी हमारे घर आनी चाहिए बस एकमात्र यही ध्‍येय रह गया है। इसी कारण सारा अनर्थ है। यदि हमने राम की तरह त्‍याग को महत्‍व दिया होता तो देश में रामराज्‍य होता।

Akash Mishra ने कहा…

एक दिया ऐसा भी हो , जो
भीतर तलक प्रकाश करे |

अच्छा लेख
सादर

travel ufo ने कहा…

बहुत बढिया । आपको दीपावली की शुभकामनायें

सदा ने कहा…

सार्थकता लिये सशक्‍त प्रस्‍तु‍ति

दीपावली की अनंत शुभकामनाएं

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

आपको और आपके समस्त परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये !

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत विचारणीय आलेख...आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

आप लगातार छपती रहती हैं …
बधाई !

आप लिखती भी तो अच्छा हैं !
यह आलेख भी सराहनीय है…

Kunwar Kusumesh ने कहा…

दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें.....

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

सार्थक आलेख ...!!

बहुत बहुत बधाई वंदना जी ....!!

Asha Joglekar ने कहा…

आप सही कह रही हैं यह नपुंसकता आज हर क्षेतेर में उजागर है और हम सब एक कप चाय पीते हुए इसे बाकत करके भूल जाते हैं । सामयिक, सटीक और सार्थक प्रस्तुति ।

Unknown ने कहा…

sundar lekh ke liye aapko badhayee,bs ek hi guzaris hai apne vicharo se sabhi ko nirantar anupranit karte rahe

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सच है, किसी भी त्योहार का क्या औचित्य है, अब ये सोचना व्यर्थ लगता है. त्योहार का मौसम आता है जाता है पर हमारे मन पर कोई छाप नहीं छोड़ पाता. महज कर्मकांड और परंपरा का निर्वाहन मात्र लगता है. चिंतन करने के लिए प्रेरक आलेख, शुभकामनाएँ.