हम थोथे चने हैं
सिर्फ शोर मचाना जानते हैं
एक घटना का घटित होना
और हमारी कलमों का उठना
दो शब्द कहकर इतिश्री कर लेना
भला इससे ज्यादा कुछ करते हैं कभी
संवेदनहीन हैं हम
मौके का फायदा उठाते हम
सिर्फ बहती गंगा में हाथ धोना जानते हैं
नहीं निकलते हम अपने घरों से
नहीं करते कोई आह्वान
नहीं देते साथ आंदोलनों में
क्योंकि नहीं हुआ घटित कुछ ऐसा हमारे साथ
तो कैसी संवेदनाएं
और कैसा ढोंग
छोड़ना होगा अब हमें .......आइनों पर पर्दा डाल कर देखना
शुरू करना होगा खुद से ही
एक नया आन्दोलन
हकीकत से नज़र मिलाने का
खुद को उस धरातल पर रखने का
और खुद से ही लड़ने का
शायद तब हम उस अंतहीन पीड़ा
के करीब से गुजरें
और समझ सकें
कि दो शब्द कह देने भर से
कर्त्तव्य की इतिश्री नहीं होती
क्योंकि .........आज जरूरी है
बाहरी आन्दोलनों से पहले
आतंरिक दुविधाओं के पटाक्षेप का
केवल एक हाथ तक नहीं
अपने दोनों हाथों को आगे बढाने का
जिस दिन हम बदल देंगे अपने मापदंड
उस दिन स्वयं हो जायेंगे आन्दोलन
बदल जायेगी तस्वीर
मगर तब तक
कायरों , नपुंसकों की तरह
सिर्फ कह देने भर से
नहीं हो जाती इतिश्री हमारे कर्तव्यों की
और मैं ..........अभी कायर हूँ
क्योंकि........ हूँ बलात्कारियों के साथ तब तक
जब तक नहीं मिला पाती खुद से नज़र
नहीं कर पाती खुद से बगावत
नहीं चल पाती एक आन्दोलन का सक्रिय पाँव बनकर
इसलिए
शामिल हूँ अभी उसी बिरादरी में
अपनी जद्दोजहद के साथ ................
इस अभियान मे शामिल होने के लिये सबको प्रेरित कीजिए
http://www.change.org/petitions/union-home-ministry-delhi-government-set-up-fast-track-courts-to-hear-rape-gangrape-cases#
कम से कम हम इतना तो कर ही सकते हैं.........
सिर्फ शोर मचाना जानते हैं
एक घटना का घटित होना
और हमारी कलमों का उठना
दो शब्द कहकर इतिश्री कर लेना
भला इससे ज्यादा कुछ करते हैं कभी
संवेदनहीन हैं हम
मौके का फायदा उठाते हम
सिर्फ बहती गंगा में हाथ धोना जानते हैं
नहीं निकलते हम अपने घरों से
नहीं करते कोई आह्वान
नहीं देते साथ आंदोलनों में
क्योंकि नहीं हुआ घटित कुछ ऐसा हमारे साथ
तो कैसी संवेदनाएं
और कैसा ढोंग
छोड़ना होगा अब हमें .......आइनों पर पर्दा डाल कर देखना
शुरू करना होगा खुद से ही
एक नया आन्दोलन
हकीकत से नज़र मिलाने का
खुद को उस धरातल पर रखने का
और खुद से ही लड़ने का
शायद तब हम उस अंतहीन पीड़ा
के करीब से गुजरें
और समझ सकें
कि दो शब्द कह देने भर से
कर्त्तव्य की इतिश्री नहीं होती
क्योंकि .........आज जरूरी है
बाहरी आन्दोलनों से पहले
आतंरिक दुविधाओं के पटाक्षेप का
केवल एक हाथ तक नहीं
अपने दोनों हाथों को आगे बढाने का
जिस दिन हम बदल देंगे अपने मापदंड
उस दिन स्वयं हो जायेंगे आन्दोलन
बदल जायेगी तस्वीर
मगर तब तक
कायरों , नपुंसकों की तरह
सिर्फ कह देने भर से
नहीं हो जाती इतिश्री हमारे कर्तव्यों की
और मैं ..........अभी कायर हूँ
क्योंकि........ हूँ बलात्कारियों के साथ तब तक
जब तक नहीं मिला पाती खुद से नज़र
नहीं कर पाती खुद से बगावत
नहीं चल पाती एक आन्दोलन का सक्रिय पाँव बनकर
इसलिए
शामिल हूँ अभी उसी बिरादरी में
अपनी जद्दोजहद के साथ ................
इस अभियान मे शामिल होने के लिये सबको प्रेरित कीजिए
http://www.change.org/petitions/union-home-ministry-delhi-government-set-up-fast-track-courts-to-hear-rape-gangrape-cases#
कम से कम हम इतना तो कर ही सकते हैं.........
18 टिप्पणियां:
कटु सत्य..सशक्त रचना..
सच लिखा है. केवल बोलने से कुछ नहीं होगा. हमें सशक्त विरोध दर्ज करना होगा.
क्या कहें........
इसी तरह आवाज़ उठाने की कोशिश कर रहे हैं....
हम थोथे चने हैं सिर्फ शोर मचाना जानते हैं एक घटना का घटित होना
और हमारी कलमों का उठना दो शब्द कहकर इतिश्री कर लेना
भला इससे ज्यादा कुछ करते हैं कभी संवेदनहीन हैं हम मौके का फायदा उठाते हम
सिर्फ बहती गंगा में हाथ धोना जानते हैं नहीं निकलते हम अपने घरों से
नहीं करते कोई आह्वान नहीं देते साथ आंदोलनों में
क्योंकि नहीं हुआ घटित कुछ ऐसा हमारे साथ तो कैसी संवेदनाएं और कैसा ढोंग
छोड़ना होगा अब हमें .......
छोड़ना होगा अब हमें .......
सत्य कड़वा है, समाज शर्मिन्दा है।
बेहतर लेखन !!
बहुत सही लिखा है.. सशक्त रचना वंदना जी
Dushman mere shahar mai aaya,
mai khaamosh raha.
Dushman padosi ko lutata raha,
mai khaamosh raha.
Dushman meri gali mai aaya,
mai khaamosh raha.
dushman ne mere gale ko damocha,
aur mai hamesha ke liye
khaamosh ho gaya.
meri maut ka karan meri khaamoshi na ki dushman ki taqat.
आपका आक्रोश जायज है ......
मार्मिक पर कटु सत्य...
सशक्त विरोध दर्ज करना होगा.....
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 20 -12 -2012 को यहाँ भी है
....
मेरे भीतर का मर्द मार दिया जाये ... पुरुष होने का दंभ ...आज की हलचल में .... संगीता स्वरूप
. .
सशक्त आह्वान ! वाकई आहत होकर केवल दो चार रचनाएं लिख देने भर से कुछ नहीं होगा ! एक क्रांतिकारी परिवर्तन की सख्त ज़रुरत है ! सार्थक एवं सशक्त रचना !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (21-12-2012) के चर्चा मंच-११०० (कल हो न हो..) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
वंदना जी... लिंक देने का आभार ! हमने कर दिया साईन !!!
सटीक रचना।
जिस आभियान का आपने लिंक दिया है उसमे शामिल हो चुका हूँ।
सादर
हाँ सत्य और यही है संकल्प का सही समय , दो चार रचनाएँ या फिर हाय हाय करने से कुछ होता नहीं है बल्कि ऐसे ही लोग हमारे मुंह पर तमाचा कर चल देते हैं। इस क्रांति ज्योति को बुझने नहीं देंगे .
मुहीम छेड़ी जा चुकी है
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