सुरमयी उतरी है साँझ मेरे आँगन में
नवयौवना ने दी है दस्तक मेरे द्वारे पे
ए री सखी,
कोई महावर रचाओ
कोई उबटन बनाओ
कोई द्वार सजाओ
कोई तोरण बनाओ
कोई मंगलगीत गाओ
ब्याह की भी कोई उम्र होती है भला
चलो आज विदाई से पहले
साँझ को दुल्हन बना दें
उसे उसके मीत से मिला दें
ए री सखी,
उस पर अबीर गुलाल उडा दें
फ़ाग के रंगों की चूनर ओढा दें
वन वन भटकती राधा को
चलो उसके श्याम से मिला दें
प्रीत को उसकी सोलह श्रृंगार से सजा दें
मनमोहिनी कोई सूरत उसके दिल में बिठा दें
इश्क की भांग का इक जाम पिला दें
मदहोश होने की भी कोई उम्र होती है भला
चलो आज उसे मीरा सी दीवानी बना दें
प्रेम की धुन पर दीवानावार नचा दें
ए री सखी,
आज कोई ऐसा रंग उडा दें
जो सांझ के सुरमयी रंग में मोहब्बत का इंद्रधनुष बना दें
ए री सखी,
आज कोई ऐसा रंग उडा दें जो प्रीत की झांझरें पाँव मे झनका दे
ए री सखी,
आज प्रेम रंग ऐसा उडा दे जो प्रीत के गुलाल मे तनमन महका दे
ए री सखी,
आज कोई ऐसा रंग उडा दें उसे उसके प्रियतम की प्रेयसी बना दे
ए री सखी,
आज कोई ऐसा रंग उडा दें जो अलिफ़ लैला की कहानी दोहरा दे
ए री सखी,
आज कोई ऐसा रंग उडा दें जो साजन को सजनी से मिला दे
ए री सखी,
आज तो कोई ऐसा रंग उडा दें प्रेम की हर बगिया महका दे
4 टिप्पणियां:
आनन्द मनाओ री,
होरी आयी री।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...होली की हार्दिक शुभकामनायें!
अच्छी रचना
होली मुबारक
बहुत सराहनीय प्रस्तुति. आभार !
ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है.
मौसम आज रंगों का , छायी अब खुमारी है
चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है
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