पिता होना या पिता के लिये कुछ लिखना या कहना
इतिहास के पन्नों पर कभी अंकित ही नहीं हुआ
किसी ने पिता को उतना महत्त्व ही नहीं दिया
तो कैसे मिलती सामग्री इतिहास के पन्नों में
या कैसे होता अवलोकन किन्हीं धार्मिक ग्रंथों में
एक दो जगह अवपाद को छोडकर
शिशु का उदभव यूँ ही नहीं होता
दो बूँद वीर्य की पिता के
दे जाती हैं एक सरंचना को जन्म
बस महज इतना ही योगदान है क्या पिता का?
क्या हमने सिर्फ़ इतना ही जाना है पिता का होना
तो फिर हमने जाना ही नहीं
हमने किया ही नहीं दर्शन पितृ महत्त्व का
पिता होने का तात्पर्य
ना केवल जिम्मेदार होना होता है
बल्कि अपने अंश को
एक बेहतर जीवन देना भी होता है
भरना होता है उसमें अदम्य साहस
चक्रवातों से लडने की हिम्मत
भरनी होती है उत्कंठा
आसमानों पर इबारत लिखने की
निडर बनने की
योजनाबद्ध चलने की
दूरदृष्टि देने की
अपने अनुभवों की पोटली
उसके समक्ष खोलने की
यूँ ही नहीं एक व्यक्तित्व का
निर्माण है होता
यूँ ही नहीं घर समाज और देश
उन्नति की ओर अग्रसर होता
केवल भावनाओं के बल पर
या लाड दुलार के बल पर
सफ़ल जीवन की नींव नहीं रखी जा सकती
और जीने की इस जीजिविषा को पैदा
सिर्फ़ एक पिता ही कर सकता है
बेशक भावुक वो भी होता है
बेशक अपने अंश के दुख दर्द से
दुखी वो भी होता है
पर खुद की भावनाओं को काबू में रखकर
वो सबके मनोबलों को बढाता है
और धैर्य का परिचय देना सिखाता है
यही तो जीवन के पग पग पर
उसके अंश का मार्गदर्शन करता है
फिर कैसे कह सकते हैं
पिता का योगदान माँ से कम होता है
क्योंकि
सिर्फ़ जन्म देने भर से ही
या नौ महीने कोख में रख
दुख सहने भर से ही
या उसके लालन पालन में
रातों को जागकर
या गीले सूखे मे सोना भर ही
माँ को उच्च गरिमा प्रदान करता है
और पिता को कमतर आँकता है
ये महज दो हिस्सों में बाँटना भर हुआ
जबकि योगदान तो बच्चे के जीवन मे
पिता का भी कहीं भी माँ से ना कम हुआ
अब इस दृष्टिकोण को भी समझना होगा
और पिता को भी उसका उचित स्थान देना होगा
11 टिप्पणियां:
उत्तम रचना
स्पष्ट हकीकत
दीदी शुभ प्रभात
शेयर कर रही हूँ इसे फेसबुक में
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (16-06-2013) प्यार: पापा का : चर्चा मंच 1277 में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सच कहा आपने..
कविता के मुताबिक ....बहुत खूब
पर मुझे नहीं लगता कि किसी भी बच्चे के लिए उसके पिता अहम् नहीं है .....पिता को आज भी वही स्थान प्राप्त है जिसके वो हक़दार है
ब्लॉग बुलेटिन की फदर्स डे स्पेशल बुलेटिन कहीं पापा को कहना न पड़े,"मैं हार गया" - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
पितृ दिवस को समर्पित बेहतरीन व सुन्दर रचना...
शुभकामनायें...
सत्य वचन... एक बच्चे की ज़िंदगी में जितना महत्व माँ का होता है उतनी ही अहम भूमिका एक पिता की भी होती है।
पिता का अर्थ केवल एक दिन नहीं प्रतिदिन होना चाहिये
पिता के संदर्भ में-----अदभुत रचना रची है
सादर
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
पापा ---------
Lajawab rachna hai aapki....badhai swiikaren...
उत्साह जगाती एक अनुपम कृति.. ..देर से आने के लिए माफी....
बहुत खूब
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