लिखी रोज पाती तुम्हें
और फिर इंतज़ार की सीलन को
गले लगाकर बैठ गयी
इस चाह में
शायद
कभी तो लौटती डाक से जवाब आयेगा
मगर ये हकीकत भूल गयी थी
अब लिफ़ाफ़ों अन्तर्देशीय पत्रों पर लिखी इबारतों का जवाब देने का चलन नहीं रहा………
और मैं ना जाने कब से
अब भी आदिम युग की तस्वीर को सहला रही हूँ
सहेजे बैठी हूँ धरोहर के रूप में
क्योंकि ………जानती हूँ
युगों के बदलने से मोहब्बत के फ़लसफ़े नहीं बदला करते
आयेगा …………जवाब जरूर आयेगा
फिर चाहे मेरी उम्मीद के बादल को बरसने के लिये
किसी भी युग के आखिरी छोर तक इंतज़ार क्यों ना करना पडे
क्योंकि प्रेम के विस्थापित तो कहीं स्थापित हो ही नहीं पाते
और फिर इंतज़ार की सीलन को
गले लगाकर बैठ गयी
इस चाह में
शायद
कभी तो लौटती डाक से जवाब आयेगा
मगर ये हकीकत भूल गयी थी
अब लिफ़ाफ़ों अन्तर्देशीय पत्रों पर लिखी इबारतों का जवाब देने का चलन नहीं रहा………
और मैं ना जाने कब से
अब भी आदिम युग की तस्वीर को सहला रही हूँ
सहेजे बैठी हूँ धरोहर के रूप में
क्योंकि ………जानती हूँ
युगों के बदलने से मोहब्बत के फ़लसफ़े नहीं बदला करते
आयेगा …………जवाब जरूर आयेगा
फिर चाहे मेरी उम्मीद के बादल को बरसने के लिये
किसी भी युग के आखिरी छोर तक इंतज़ार क्यों ना करना पडे
क्योंकि प्रेम के विस्थापित तो कहीं स्थापित हो ही नहीं पाते
16 टिप्पणियां:
सच युग बदलने से प्रेम का फलसफा नहीं बदलता ...चाहे कितना भी परिवर्तन आ जाय .......बहुत सुन्दर
बहुत सुंदर रचना
बढिया भाव
पर एक बात बताऊं
ये पुरानी बातें हैं, दुनिया बहुत आगे निकल चुकी है।
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज (शुक्रवार, ७ जून, २०१३) के ब्लॉग बुलेटिन - घुंघरू पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
आएगी जरुर चिट्ठी मेरे नाम की...सुंदर भाव!
बिलकुल जवाब आयेगा ... अंतर्देशीय पत्र में नहीं लिफाफे में आएगा :):)
बहुत ही सुंदर एवं सार्थक रचना ...
बहुत सुंदर
Facebook पर वायरस, डाल सकता है आपके बैंक एकाउंट पर डाका
प्रेम के विस्थापित तो कहीं स्थापित हो ही नहीं पाते :)
adbhut...
वाह बहुत खूब
सुन्दर प्रस्तुति..।
कुदरत के घर देर है अंधेर नहीं है...
...
साझा करने के लिए आभार...!
कितना भी बदल जाए युग ,मन के भीतर का आदिम संस्कार समय-समय पर जाग ही जाता है !
सुंदर रचना
बढिया भाव जज्बात का फलसफा
युग भले ही बदल जाए ,प्रेम के मामले में मन जो कहे वही सही है.
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बहुत ही सुन्दर भाव को समेटे, एक उत्कृष्ट रचना.
बहुत सुंदर....फलसफे नहीं बदलते..युग बदल जाता है
मन टूटा तो क्या स्थिर हो।
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