1
अब पीरों के समंदर न उफनते हैं
अब पीरों के समंदर न उफनते हैं
हूँ मुफलिसी में मगर फिर भी
अब ना दरिया में भावों के जहाज चलते हैं
ये कौन सा दरिया -ए -शहर है दोस्तों
जहाँ दिन में भी ना दिन निकलते हैं
खो से गए थे जो आंसू कहीं
जाने क्यों यहीं उमड़ते दिखते हैं
खारेपन में जो घुला है नमक
जाने क्यूँ तेरे दर्द का कहर दिखते हैं
कोई कहीं होगा तेरा खुदा किसी शहर में
मेरी हसरतों के खुदा तो तेरी दहलीज में ही दिखते हैं
2
राह तकते तकते
मेरे इंतज़ार की फांकें यूँ बिखर गयीं
गोया चाँद निकला भी हो
और चाँदनी बिखरी भी ना हो
ये इश्क की तलबें इतनी कमसिन क्यूँ हुआ करती हैं ?
3
होती हैं कभी कभी
ज़िन्दगी की तल्खियाँ भी
और खुश्गवारियां भी
शामिल कविताओं में
तो क्या मूंह मोड़ लूं हकीकतों से
जब विरह प्रेम और दर्द लिख सकती हूँ
तो सच्चाइयां क्यों नहीं
फिर चाहे खुद की ज़िन्दगी की हों या कल्पनाओं के समंदर का कोई मोती
4
मौन की घुटन बदस्तूर जारी है …………पकती ही नहीं हँडिया में पडी कहानियाँ ………और आँच ना कम होती है ना तेज़
5
कोई नहीं साथ मेरे
मैं भी नहीं
मेरे शब्द भी नहीं
मेरे ख्याल भी नहीं
मेरे भाव भी नहीं
कभी कभी लगता है फिर से कोरा कागज़ हो गयी हूँ मैं
क्या सच में ?
6
उम्र भर एक चेहरा अदृश्य बादलों में ढूँढा
ना मिलना था नहीं मिला
सुनो !
तुम ही क्यों नहीं बन जाते वो चेहरा ……मेरे ख्वाब की ताबीर
जो मुझे मुझसे ज्यादा जान ले
जो मुझे मुझसे ज्यादा चाह ले ………
क्योंकि
अब हर चेहरा ना जाने क्यों तुम में ही सिमट जाता है
हा हा हा ………पागल हूँ ना मैं ! ख्वाब को पकडना चाहती हूँ
शायद भूल गयी हूँ हकीकत की रेतीली जमीनों पर गुलाब नहीं उगा करते ……
7
कितनी कंगाल हूँ मैं रिश्तों और दोस्तों की भीड में
एक कांधा भी नसीब नहीं कुछ देर फ़फ़कने को
ना जाने कैसा कर्ज़ था ज़िन्दगी का
उम्र गुज़र गयी मगर कभी चुकता ही ना हुआ
8
धारा के विपरीत तैरने का भी अपना ही शऊर होता है
जमीं को आसमान संग चलने की ताकीद जो की उसने
उम्र तमाम कर दी तकते तकते
9
बनाना चाहती हूँ
अपने आस पास
एक ऐसा वायुमंडल
जिसमें खुद को भी ना पा सकूँ मैं
जानते हो क्यूँ ?
क्यूँकि मेरे होने की
मेरे श्वास लेने की
मेरे धडकने की
पावर आफ़ लाइफ़ हो तुम
जब तुम नहीं ……तो कुछ नहीं
मैं भी नहीं …………
ये है मेरा प्रेम
और तुम्हारा ……???
10
सिर्फ़ एक साँस की तो अभिव्यक्ति थी
जाने क्यों मैने शब्दों की माला पिरो दी
अब ढूंढों इसमें ग़ज़ल , कविता या छंद
मगर मेरे तो दृग अब हो गये हैं बंद
13 टिप्पणियां:
वन्दना जी....कुछ व्याकरणके... बचन , लिंग , क्रियाओं व देश काल का भी ध्यान रखा करिए ...सब कुछ उलटा पुलटा व अनाभिव्यक्त है ...
सिर्फ भावुक शब्दों वाक्यों से कविता थोड़े हे बनती है....
@shyam gupta ji भावों के टुकडे तो ऐसे ही होते हैं अनाभिव्यक्त , बिखरे बिखरे से , जिन्हें आप जोडना चाहें तो भी ना जुडें ना ही आकार ले पायें …………वैसे भी हमें कविता करनी कहाँ आती है बस भावनाओं को उँडेल देते हैं ………अब कोई उसमें कविता ढूँढे या टुकडे समझे ये उसका दृष्टिकोण है।
आपने लिखा....हमने पढ़ा....
और लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 27/07/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
भाव भरी लघु रचनायें..
बहुत सुन्दर बंदना जी भाव बिभोर कर दिया बधाई
सुन्दर रचना वन्दना जी।
आदरणीया ,
आपकी भावाभिव्यक्ति बेहद करीब हैं मेरे हृदय के |
एक एक रचना ....!
आपके ब्लॉग कों पढ़ा ,अंतरमन खुश हो गया
|
बधाई |
दिल की गहराइयों से निकले जज्बात..
वाह...बेमिसाल रचना..
बहुत बढ़िया!!
सस्नेह
अनु
अनुपम भाव ... एवं प्रस्तुति
भावनाओं से भरी पंक्तियाँ ।
achchhe bhavon ki abhivyakti.
rachana
behtreen rachnaaye....
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