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सोमवार, 18 नवंबर 2013

ओ मेरे काल्पनिक प्रेम

ओ मेरे काल्पनिक प्रेम 
प्रेम ही नाम दिया है तुम्हें 
काल्पनिक तो हो ही 
वो भी तब से 
जब जाना भी न था प्रेम का अर्थ 
जब जाना भी न था प्रेम क्या होता है 
फिर भी सहेजती रही तुम्हें 
ख्यालों की  तहों में 
और लपेट कर रख लिया 
दिल के रुमाल में 
खुशबू आज भी सराबोर कर जाती है 
जब कभी उस पीले पड़े 
तह लगे दिल के रुमाल 
की तहें खोलती हूँ 
भीग जाती हूँ सच अपने काल्पनिक प्रेम में 
और जी लेती हूँ एक जीवन 
काल्पनिक प्रेमी के प्रेम में सराबोर हो 
तरोताजा हो जाता है यथार्थ 
जरूरी तो नहीं न तरोताजा होने के लिए कल्पना का साकार होना 

यूं भी काल्पनिक प्रेम कब वैवाहिक रस्मों के मोहताज होते हैं 
ज़िन्दगी जीने के ये भी कुछ हसीन तरीके होते हैं 

9 टिप्‍पणियां:

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

क्या बात
बहुत सुदंर रचना
बढिया भाव..

Unknown ने कहा…

nice post computer and internet ki nayi jankaari tips or trick ke liye dhekhe www.hinditechtrick.blogspot.com

दिगम्बर नासवा ने कहा…

माया से प्रेम ... साक्षात कृष्ण से प्रेम ही तो है ...

Anamikaghatak ने कहा…

premas se sarabor kavita....wah

Rajesh Kumari ने कहा…

आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार१९/११/१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

सुन्दर व कोमल अनुभूतियाँ............

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

वाह बहुत बढिया

सदा ने कहा…

वाह .... अनुपम भावों का संगम

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत सुंदर,बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें.