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शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

तब तक मेरी भावनाओं से खेलना तुम्हारा अपराध नहीं

आओ खेलो मेरी भावनाओं से 
ठगो मेरे विश्वास को 
करो मेरी आस्था का क़त्ल 
खूं करना कितना आसाँ जो है 
क्या हुआ जो मेरा भरोसा टूटा 
क्या हुआ जो मेरी संवेदनायें सूखीं 
क्या हुआ जो मेरा मन अब बंजर हुआ 
तुम तो कुकुरमुत्तों से उगते रहोगे 
तुम तो मेरी भावनाओं का बलात्कार करते रहोगे 
क्योंकि 
नपुंसक हो गया है समाज 
नपुंसक हो गयी है मानवीयता की जमीन 
तभी तो 
नहीं दिखती तुम्हें आज 
हर स्त्री में माँ , बहन और बेटी 
तभी तो 
करते हो तुम बलात्कार 
कभी बाबा बनकर 
कभी नेता बनकर 
कभी कलम का सिपाही बनकर 
तो कभी गली चौराहे पर घूमता 
हवस का पुजारी बनकर 
कैसे और कहाँ और कब तक मैं सुरक्षित हूँ 
कानून की धज्जियाँ तुम उड़ाते हो 
मुझे किसी ना किसी तरह 
अपने चंगुल में फंसाते हो 
कभी हमदर्द बनकर 
कभी मसीहा बनकर 
तो कभी शिकारी बनकर 
आह ! मेरे विश्वास की नींव को 
दीमक बन खोखला कर दिया तुमने 
अब सोचती हूँ तो पाती हूँ 
स्त्री विमर्श के नारों में भी मेरा 
महज उपयोग भर किया तुमने 
मानो बच्चे को मन बहलाने को 
बस झुनझुना दिया तुमने 
जबकि पाशविक मानसिकता पर अपनी 
नकेल ना कसा तुमने 
फिर कैसे सुरक्षित रह सकती हूँ 
ये ना सोचा मैंने 
इसलिए 
जब तक मैं खुद के लिए खुद ही 
कोई पुख्ता ज़मीन नहीं बनाती 
जब तक मैं खुद अपने लिए खुद ही 
अपनी आवाज़ नहीं उठाती 
तब तक 
मेरी भावनाओं से खेलना तुम्हारा अपराध नहीं 
सिद्ध कर दिया तुमने ……………… 

इंसानियत की तहजीबों के नकाब उघाड़ना कोई तुमसे सीखे ……… क्या कहूँ तुम्हें 
इंसान कह नहीं सकती 
तो कह दूं तुम्हें क्या हैवान …………ओ पुरुष रूप में छुपे आदम के छद्म रूप !!!

6 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Listen this:

http://www.youtube.com/watch?v=_rV9Z1rNHo8

Rajeev Kumar Jha ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (23-11-2013) "क्या लिखते रहते हो यूँ ही" “चर्चामंच : चर्चा अंक - 1438” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!

बेनामी ने कहा…

http://www.youtube.com/watch?v=_rV9Z1rNHo8

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

सही ही कह रहे ........

Unknown ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और गंभीर भावनाओं का प्रवाह ,सादर

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आक्रोश लिए ... बहुत ही संवेदनशील रचना ...