अभी बाकि हैं मुझमे
समस्याएं , इच्छाएं , आकांक्षाएं
थोड़ी बहुत ईर्ष्या , जलन और नफरत
क्योंकि
रखती हूँ मैं भी आम स्त्री का बुत खुद में
जो झगड़ती भी है
सिसकती भी हैं
झंझोड़ती भी है
जो रूखी भी है
तो प्रेम से भरपूर भी है
जो आम मानवीय संवेदनाओं से भरपूर भी है
जो खास नहीं है इसलिए मजबूर भी है
कसमसाती हैं उसमे भी इच्छाएं
उड़ान भरने की आकांक्षाएं
फलक को छूने की सम्भावनाएं
करती हैं उसे भी कुंठित
क्योंकि
रखती हूँ मैं भी आम स्त्री का बुत खुद में
करती हूँ सबकी तरह मैं भी आह्वान
कभी स्त्री मुक्ति का
तो कभी स्त्री की जड़ सोच का
कभी रखती हूँ निगाह
देश और समाज की समस्या पर
तो फूटता है मेरा भी गुस्सा
समाज में व्याप्त बेचैनियों पर
क्योंकि
रखती हूँ मैं भी आम स्त्री का बुत खुद में
होती हैं मुझसे भी गलतियां
होता है मुझमे भी स्फुरण
होते हैं मुझमे भी इच्छाओं के अंकुरण
कभी दबा भी लेती हूँ
तो कभी उछाल भी देती हूँ
कभी मूक रहकर जज़्ब करती हूँ
तो कभी मुखर होकर
सारे भेद खोल देती हूँ
क्योंकि
रखती हूँ मैं भी आम स्त्री का बुत खुद में
क्यों फिर मैं देवी बनूँ
क्यों सिर्फ मैं ही पत्तों सी झरूँ
क्यों सिर्फ मैं ही रात्रि का सफ़र अकेले ही तय करूँ
क्यों न मैं हुंकार भरूँ
क्यों न मैं भी रुदन करूँ
क्योंकि
जन्मती हैं मुझमे भी इच्छाएं
जो हमेशा सुपाच्य हों जरूरी तो नहीं
लेती हैं आकार मुझमें भी समस्याएं
जो हमेशा मेरा ही शोषण करें जरूरी तो नहीं
टँगी होती हैं दिल की कील पर मेरी भी आकांक्षाएं
जो हमेशा धूप में ही सूखती रहे जरूरी तो नही
क्योंकि
रखती हूँ मैं भी आम स्त्री का बुत खुद में
सर्वगुण संपन्न होना
और खुद को रिक्त करते हुए
सब कुछ सह लेना ही मेरा वजूद नहीं
अपनी जलन ईर्ष्या या नफरत को
खुद ही पीते हुए
खुद की तिलांजलि देकर
जीते रहना ही मेरी नियति नहीं
उससे इतर भी कुछ हूँ
बस कभी ये भी याद रखा करो
कभी मुझे भी इंसान समझा करो
कभी तो बोलने का हक़ मुझे भी दो
जरूरी नहीं होता हर बार
मुखौटा लगाए खुद को बेदखल करना
वास्तविकता से आँख मिलाकर जीने के लिए
हटा देती हूँ नकाब चरित्र के रुख से भी
क्योंकि
नहीं चाहिए कोई तमगा भलमनसाहत का
क्योंकि
जीना चाहती हूँ मैं भी
अपनी आकांक्षाओं , इच्छाओं और चाहतों के साथ
किसी को आगे बढते देख जलन से ईर्ष्याग्रस्त होना
और अपनी उपेक्षा पर हताशा के सागर में डूबना
संजोना चाहती हूँ हर लम्हात को
अपनी गुनगुनाहट अपनी मुस्कुराहट के साथ
इसलिये जीने दो मुझे
मेरे स्त्री सुलभ सौंदर्य के साथ
मुझमें छुपी मेरी कुंठाओं , व्यंग्य बाणों , चपलताओं के साथ
जब जब जिस रूप में चाहूँ
कर सकूँ खुद को व्यक्त अपनी सम्पूर्णता के साथ
क्योंकि
जरूरी नहीं होता हर बार
मुखौटा लगाए खुद को बेदखल करना
वास्तविकता से आँख मिलाकर जीने के लिए
हटा देती हूँ नकाब चरित्र के रुख से भी
क्योंकि
नहीं चाहिए कोई तमगा भलमनसाहत का
क्योंकि
जीना चाहती हूँ मैं भी
अपनी आकांक्षाओं , इच्छाओं और चाहतों के साथ
किसी को आगे बढते देख जलन से ईर्ष्याग्रस्त होना
और अपनी उपेक्षा पर हताशा के सागर में डूबना
संजोना चाहती हूँ हर लम्हात को
अपनी गुनगुनाहट अपनी मुस्कुराहट के साथ
इसलिये जीने दो मुझे
मेरे स्त्री सुलभ सौंदर्य के साथ
मुझमें छुपी मेरी कुंठाओं , व्यंग्य बाणों , चपलताओं के साथ
जब जब जिस रूप में चाहूँ
कर सकूँ खुद को व्यक्त अपनी सम्पूर्णता के साथ
क्योंकि
रखती हूँ मैं भी आम स्त्री का बुत खुद में
क्योंकि
जरूरी नहीं होता
महानता का आदमकद बुत बन
किसी चौराहे पर खडा होना नितांत एकाकी होकर
क्योंकि
जरूरी नहीं होता
महानता का आदमकद बुत बन
किसी चौराहे पर खडा होना नितांत एकाकी होकर
10 टिप्पणियां:
स्त्री विमर्श से जुड़ी बेहतरीन रचना !!
बहुत प्रभावशाली रचना...किन्तु हर पीड़ा, हर दुःख, हर विकार, हर कुंठा किसी और का नहीं खुद का ही चैन हरती है.. इन्हें त्यागना किसी महानता के लिए नहीं क्या अपने ही मन की शांति के लिए आवश्यक नहीं है.स्त्री हो या पुरुष यह दोनों के लिए सत्य है.
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन बाबा का दरबार, उंगलीबाज़ भक्त और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत बढ़िया ।
क्या पता कहीं कोई आम आदमी का बुत भी हो ढूढते हैं :)
आपकी कविता बड़ी अच्छी है।बधाई हो -आपने दिल से लिखी है। FB पर लगाने को दिल किया पर आपकी भावना देखते नहीं लगाई।
सबसे बड़ी बात हैजीवन में सहज-स्वाभाविक होना और मानवीय संवेदनाओं से युक्त होना .
एक औरत के मन की विकलता को उजागर करती असरदार रचना
कभी तो बोलने का हक़ मुझे भी दो
जरूरी नहीं होता हर बार
मुखौटा लगाए खुद को बेदखल करना
वास्तविकता से आँख मिलाकर जीने के लिए
हटा देती हूँ नकाब चरित्र के रुख से भी
क्योंकि
नहीं चाहिए कोई तमगा भलमनसाहत का
क्योंकि
जीना चाहती हूँ मैं भी
बहुत सुंदर नारी मन को अचछे से उकेरा है आपने।
बहुत सुन्दर .........मन की बात!
बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
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