खामोशी का बीज वक्तव्य सिर्फ़ इतना था
कोई मुझसे इतर मुझमें पैठा था
जब भी झाँका ख्याले अंजुमन में
सिर्फ़ चुप्पियों का कोलाहल था
दरकने को न जमीं थी न सुराख़ को आस्माँ
मेरी ख़ामोशियों का कोई राज़-ए -खुदा न था
जब दिन की हँसी रातों के गुलाब खिलने का आसार था
तब अश्कों के पलकों पर ठहरने के मौसम खुशगवार था
ये जानकर खामोशियों के पाँव में घुँघरू नहीं होते
यूँ इक रूह के भटकने का तमाम इंतजाम था
शायद तभी ज़िद पर अडी खामोशियाँ किसी रुत की मोहताज़ नहीं होतीं ……
2 टिप्पणियां:
दिल को छूती बहुत भावमयी प्रस्तुति...
वाह बहुत हि शानदार लेखन
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