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बुधवार, 10 दिसंबर 2014

दर्द के बाज़ार में

प्रेम की चिरपरिचित आवाज़
जिसे सुन सुन तिड़क उठती है अन्दर की लड़की

देव तुम हो ,,,,,,,हाँ यहीं हो
मेरी निगाहों में देखो 
तुम्हारी ही तस्वीर नज़र आएगी
और आकाश सुनहरी ...........
बस जरूरत है तो सिर्फ मेरी आँख से देखने की ..........

हे देव ! क्या सुन पाए मेरा अनकहा ?
क्या अब लिख पाओगे फिर कभी कोई कविता ?

दर्द के बाज़ार में मायूसियों की अकेली खरीदार हूँ मैं !!!

2 टिप्‍पणियां:

mohan intzaar ने कहा…

दर्द के बाज़ार में मायूसियों की अकेली खरीदार हूँ मैं......
बहुत भाव पूर्ण और सुन्दर रचना बधाई

Ankur Jain ने कहा…

कम शब्दों में गहरी बात कर दी है..उत्तम।