काट कर शरीर का सडा गला अंग
संभव है जिंदा रह पाना
मगर
उस अंग की उपयोगिता का अहसास
खुरचता रहता है उम्र भर
ज़ेहन की दीवारों को
अपंगता स्थायी होती है
और विकल्पों के माध्यम से गुजरती ज़िन्दगी
मोहताजगी का इल्म जब जब कराती है
बेबसी के कांटे हलक में उग आते हैं
तब असह्य रक्तरंजित पीड़ा शब्दबद्ध नही की जा सकती
मगर मजबूर हैं हम
जीना जरूरी जो है
और जीने के लिए स्वस्थ रहना भी जरूरी है
नासूर हों या विषाक्त अंग
काटना ही है अंतिम विकल्प
फिर शरीर हो , रिश्ते हों ,जाति हो , समाज हो या धर्म
धर्म मज़हब सीमा और इंसानियत के नाम पर होती हैवानियत
बुजदिली और कायरता का प्रमाण हैं
ये जानते हुए भी
आखिर कब तक नासूर को जिंदा रखोगी .........ओ विश्व की महाशक्तियों
दानव का जड़ से अंत ही कहानी की सार्थकता का अंतिम विकल्प है ........जानते हो न !!!
1 टिप्पणी:
यहाँ जड़ से अंत होता कहाँ हैं...रक्तबीज की तरह हजारों उग आते हैं..
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