ये कैसा बसंत आया सखी री
न आम के नए बौर आये
न कोयल ही कुहुकी
न सरसों ही खिली
न पी कहाँ पी कहाँ कह
पपीहे ने शोर मचाया
ये कैसा बसंत आया सखी री
शीत लहर ही अपने रंग दिखाए
अबके न अपने देस जाए
जाने कौन पिया इसके मन भाये
जो ये खेतिहरों को रही डराय
ये कैसा बसंत आया सखी री
न मन में उमंग उठी
न गोरी कोई पिया मिलन को चली
न कंगना कोई खनकाय
न पायल कोई छनकाय
जो मतवाली हो ऋतु बसंत
प्रेमियों को देती थी भरमाय
ये कैसा बसंत आया सखी री
ये कैसा बसंत आया ...........
3 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।
लगता है वसंत अभी आने को है...जरा सा इंतजार..
अनुपम रचना...... बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
मुकेश की याद में@चन्दन-सा बदन
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