आशंका के समंदर में
हिलोर मारती लहरों से
नहीं पूछा जाता यूं उठने गिरने का सबब
जब तक कि अंदेशा न हो कोई
मगर बिना सबब नहीं होता कुछ भी
तूफ़ान से पहले के संकेत साक्षी हैं
तूफ़ान से पहले और बाद की शांति के
एक एक कर क्रमानुसार
बदल जाती हैं तस्वीरें
तुम चाहो या न चाहो
काल से बड़ा कोई काल नहीं
जो अंदेशों को सही सिद्ध कर देता है
और देता है सन्देश
जहाज के डूबने के अंदेशे पर
चूहे ही छोड़ते हैं सबसे पहले जैसे
वैसे ही ज़िन्दगी के मझधार में भी
यूं ही क्रिया प्रतिक्रियाओं के भंवर में
छोड़ जाते हैं वक्त के गाल पर अनचाहे निशान
कुछ चेहरे ,कुछ लोग , कुछ अजनबी
बस यही तो है ज़िन्दगी का फलसफा
मिलना बिछड़ना , टूटना जुड़ना
निर्माण विध्वंस
फिर पुनर्निर्माण हेतु उपक्रम
तो पकड़ो फिर एक नया सिरा
एक नयी शुरुआत के लिए
क्योंकि ..........चलना जरूरी है
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (05-10-2015) को "ममता के बदलते अर्थ" (चर्चा अंक-2119) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (05-10-2015) को "ममता के बदलते अर्थ" (चर्चा अंक-2119) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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