तुम्हारे
अंजुरी भर प्यार में
मैंने
पहाड़ भर देख डाले सपने
पहाड़
जिन्होंने नहीं सीखा हिलना
अडिग रहना है
जिनकी नियति
अंजुरी
जिसे कभी न कभी
खुलना ही था
हथेली सीधी करते हुए
फिर भी
जानते हुए इस सत्य को
तुम्हारे
अंजुरी भर प्यार में
मैंने
पहाड़ भर देख डाले सपने
अंजुरी भर प्यार में
मैंने
पहाड़ भर देख डाले सपने
पहाड़
जिन्होंने नहीं सीखा हिलना
अडिग रहना है
जिनकी नियति
अंजुरी
जिसे कभी न कभी
खुलना ही था
हथेली सीधी करते हुए
फिर भी
जानते हुए इस सत्य को
तुम्हारे
अंजुरी भर प्यार में
मैंने
पहाड़ भर देख डाले सपने
3 टिप्पणियां:
आस के एक बिन्दु के पीछे अनन्त तक रेखा बन जाती है। सुन्दर पंक्तियाँ।
प्यार होना ही काफी है चाहे बूंद भर ही क्यों न हो..
अंजुरी भर प्यार काफी है उड़ने के लिए , और पहाड़ों को देखने के लिए भी , सुंदर रचना
एक टिप्पणी भेजें