मेरे दिल में आज क्या है ... कुछ भी तो नहीं
फिर भी गुफ्तगू जारी है ... किससे ,पता नहीं
अब इस सिलसिले को क्या नाम दूँ ?
एक ठहरा हुआ काफिला
या एक रुकी हुई रिदम
एक साँस साँस बजती शहनाई
या एक नर्तन करती कोई धुन
गुस्ताख दिल की गुस्ताखियाँ
तुम तक पहुँच रही हैं ... जानती हूँ
ये तारों भरी रात ओढने के दिन हैं
जहाँ सब उल्टा पुल्टा है
मेरे दिल की तरह
चलो , मोहब्बत की उलटबांसियों को गले लगा लें
मिलन का ये तरीका शायद तुम्हें रास आ जाए
और
मेरे मन का चिनार
तुम्हारे देवदार तले खिल जाये
मैं नहीं कहूँगी
देख लो आज हमको जी भर के
क्योंकि
मुझे चाहिए मोहब्बत का सारा आकाश मेरी हथेली पर
कहा है ज्योतिषी ने
मेरे हाथ में मोहब्बत की रेखा अनंत है ..........
मैं नहीं कहूँगी
देख लो आज हमको जी भर के
क्योंकि
मुझे चाहिए मोहब्बत का सारा आकाश मेरी हथेली पर
कहा है ज्योतिषी ने
मेरे हाथ में मोहब्बत की रेखा अनंत है ..........
1 टिप्पणी:
बेहतरीन अभिव्यक्ति.....बहुत बहुत बधाई.....
एक टिप्पणी भेजें