मैं कविता का पक्ष हूँ और मैं विपक्ष
मैं कवयित्री का पक्ष हूँ और मैं विपक्ष
और खिंच गयी तलवारें दोनों ही ओर से
गहन वेदना में थी उस वक्त
जिंदा थी या मर चुकी थी कविता
आकलन को नहीं था कोई संवेदनशील बैरोमीटर
कि
जरूरी था शोर
जरूरी था बस
अपराधी को अपराधी सिद्ध किया जाना
या निरपराधी को अपराधी सिद्ध किया जाना
अपराधी को अपराधी सिद्ध किया जाना
या निरपराधी को अपराधी सिद्ध किया जाना
दोनों ही ओर से
निपट स्याह स्याही से लिखी जा रही थी इबारत
नाज़ करने को फिर चाहे
बचे ही न सियासत
रियाया मजबूर है
फटे कपड़ों से तन ढांकने को
राजज्ञा की अवमानना
आज के वक्त का सबसे बड़ा गुनाह जो है
उस पर सिपहसालार और मंत्रिपरिषद जानते हैं
कैसे चुने जाते हैं अर्थी से फूल
फिर क्यूँ पचड़े में पड़ते हो
ये मूढ़मगज समय है
जिसमे उधर ही झुक जाते हैं पलड़े
जिधर भार ज्यादा होता है
मगर इस बार संतुलन का काँटा
ख्याति का मध्य भाग बना
फैला रहा है अराजकता
पुरस्कारों की क्रांति से
बिफरा तबका
अपने अपने कसबे का बनकर
बेताज बादशाह
कर रहा है हलाल
कविता की घिंघियाती आवाज़ से नहीं होता स्वप्नदोष
बस जरूरी है स्खलन
तो क्या हुआ
ये मूढ़मगज समय है
जिसमे उधर ही झुक जाते हैं पलड़े
जिधर भार ज्यादा होता है
मगर इस बार संतुलन का काँटा
ख्याति का मध्य भाग बना
फैला रहा है अराजकता
पुरस्कारों की क्रांति से
बिफरा तबका
अपने अपने कसबे का बनकर
बेताज बादशाह
कर रहा है हलाल
कविता की घिंघियाती आवाज़ से नहीं होता स्वप्नदोष
बस जरूरी है स्खलन
जो हो कविता के नाम पर
तो कभी साहित्य के नाम पर
भाषा का बलात्कार
रोना तो कविता को ही है
क्योंकि
कविता का जिस्म तार तार है
और शामिल है पूरा गिरोह जहाँ
वहां
हवन पूजा यज्ञ आदि से नहीं हुआ करती शांति
कि
ये कविता का उत्तर पक्ष नहीं
सूर्यदेव दक्षिणायन को गए हुए हैं
'अति सर्वत्र वर्जयेत' महज चेतावनी का हास्यास्पद रूप है आज ...
डिसक्लेमर :
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©वन्दना गुप्ता vandana gupta इस पोस्ट या इसका कोई भी भाग बिना लेखक की लिखित अनुमति के शेयर, नकल, चित्र रूप या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रयोग करने का अधिकार किसी को नहीं है, अगर ऐसा किया जाता है निर्धारित क़ानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी।
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-08-2016) को "तूफ़ान से कश्ती निकाल के" (चर्चा अंक-2430) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Sabhi hatprabh hain jo ho raha in dino..khair aapne kavita ke madhyam se bada sach ujagar kiya hai...
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