नहीं रह पाते खड़े कुछ पल भी
मगर
जब भी करते हैं बस में सफ़र
नहीं देते दुहाई किसी को
कि
बुजुर्गों के लिए होते हैं विशेष प्रावधान
अपनी जगह
बैठा देते हैं
जवान बेटी को
कि जानते हैं
ज़माने का चलन
आदिम सोच से टपकती बेशर्मी
करती है मजबूर खड़े रहने को
दर्द सहने को
तिलमिलाती है बेटी
पिता के दर्द से
कर ले कितनी अनुनय
मगर मानते नहीं पिता
जानते हैं
आदम जात की असली जात
कैसे स्पर्श के बहाने की जाती है
मनोविकृति पूजित
अपने अपने खोल में सिमटे
दोनों के वजूद
अपनी अपनी सीमा रेखा में कैद
एक दूसरे को दर्द से मुक्त
करने की चाह लिए
आखिर पहुँच ही जाते हैं
गंतव्य पर
दर्द की कोई भाषा नहीं
कोई परिभाषा नहीं
मगर फिर भी
अव्यक्त होकर व्यक्त होना
उसकी नियति ठहरी
मानो हो पिता पुत्री का सम्बन्ध
सफ़र कोई हो
किसी का हो
अंत जाने क्यों तकलीफ पर ही होता है
फिर दर्द पिता का हो या बेटी का
यादों के सैलाब में ठहरे हैं पिता
कि
आज जन्मदिन है आपका
तो क्या हुआ
नहीं हैं आप भौतिक रूप से
स्मृतियों में जिंदा हैं आप
और सुना है
जो स्मृति में जिंदा रहते हैं
वही तो अमरता का द्योतक होते हैं
डिसक्लेमर
ये पोस्ट पूर्णतया कॉपीराइट प्रोटेक्टेड है, ये किसी भी अन्य लेख या बौद्धिक संम्पति की नकल नहीं है।
इस पोस्ट या इसका कोई भी भाग बिना लेखक की लिखित अनुमति के शेयर, नकल, चित्र रूप या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रयोग करने का अधिकार किसी को नहीं है, अगर ऐसा किया जाता है निर्धारित क़ानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी।
©वन्दना गुप्ता vandana gupta इस पोस्ट या इसका कोई भी भाग बिना लेखक की लिखित अनुमति के शेयर, नकल, चित्र रूप या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रयोग करने का अधिकार किसी को नहीं है, अगर ऐसा किया जाता है निर्धारित क़ानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी।
7 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (19-07-2017) को "ब्लॉगरों की खबरें" (चर्चा अंक 2671) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मार्मिक कविता , आपबीती सी लगती है .. वंदना बाजपेयी
बेटी की स्मृतियों में छलका पिता का दर्द .ये यादें ही हैं जो माँ और पिता को जीवनभर जिंदा रखती हैं .
पिता और पुत्री के प्रेम को उजागर करती मार्मिक रचना..
सत्य कहा आपने अंतिम पंक्तियां हृदय को छू गयी। ....कोमल अभिव्यक्ति
सटीक। पर आज के सन्दर्भ में लग रहा है अमरता की भी एक उम्र होने लगी है।
माता पिता की यादें चाहें ख़ुशी की हों या दर्द की हमेशा उनके करीब रखती हैं ... मर्म को छूती है रचना ...
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