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मंगलवार, 18 जुलाई 2017

जन्मदिन के बहाने दर्द पिता का





साइटिका के दर्द से बोझिल पिता
नहीं रह पाते खड़े कुछ पल भी
मगर 

जब भी करते हैं बस में सफ़र
नहीं देते दुहाई किसी को
कि
बुजुर्गों के लिए होते हैं विशेष प्रावधान

अपनी जगह
बैठा देते हैं
जवान बेटी को
कि जानते हैं
ज़माने का चलन
आदिम सोच से टपकती बेशर्मी
करती है मजबूर खड़े रहने को
दर्द सहने को

तिलमिलाती है बेटी
पिता के दर्द से
कर ले कितनी अनुनय
मगर मानते नहीं पिता
जानते हैं
आदम जात की असली जात
कैसे स्पर्श के बहाने की जाती है
मनोविकृति पूजित

अपने अपने खोल में सिमटे
दोनों के वजूद
अपनी अपनी सीमा रेखा में कैद
एक दूसरे को दर्द से मुक्त
करने की चाह लिए
आखिर पहुँच ही जाते हैं
गंतव्य पर

दर्द की कोई भाषा नहीं
कोई परिभाषा नहीं
मगर फिर भी
अव्यक्त होकर व्यक्त होना
उसकी नियति ठहरी
मानो हो पिता पुत्री का सम्बन्ध

सफ़र कोई हो
किसी का हो
अंत जाने क्यों तकलीफ पर ही होता है
फिर दर्द पिता का हो या बेटी का

यादों के सैलाब में ठहरे हैं पिता
कि
आज जन्मदिन है आपका
तो क्या हुआ
नहीं हैं आप भौतिक रूप से
स्मृतियों में जिंदा हैं आप

और सुना है
जो स्मृति में जिंदा रहते हैं
वही तो अमरता का द्योतक होते हैं 




डिसक्लेमर
ये पोस्ट पूर्णतया कॉपीराइट प्रोटेक्टेड है, ये किसी भी अन्य लेख या बौद्धिक संम्पति की नकल नहीं है।
इस पोस्ट या इसका कोई भी भाग बिना लेखक की लिखित अनुमति के शेयर, नकल, चित्र रूप या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रयोग करने का अधिकार किसी को नहीं है, अगर ऐसा किया जाता है निर्धारित क़ानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी।
©वन्दना गुप्ता vandana gupta

7 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (19-07-2017) को "ब्लॉगरों की खबरें" (चर्चा अंक 2671) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Atoot bandhan ने कहा…

मार्मिक कविता , आपबीती सी लगती है .. वंदना बाजपेयी

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बेटी की स्मृतियों में छलका पिता का दर्द .ये यादें ही हैं जो माँ और पिता को जीवनभर जिंदा रखती हैं .

Anita ने कहा…

पिता और पुत्री के प्रेम को उजागर करती मार्मिक रचना..

shashi purwar ने कहा…

सत्य कहा आपने अंतिम पंक्तियां हृदय को छू गयी। ....कोमल अभिव्यक्ति

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सटीक। पर आज के सन्दर्भ में लग रहा है अमरता की भी एक उम्र होने लगी है।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

माता पिता की यादें चाहें ख़ुशी की हों या दर्द की हमेशा उनके करीब रखती हैं ... मर्म को छूती है रचना ...