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मंगलवार, 27 मई 2008

जीने का ढंग

जीना सीखना है तो फूल से सीख , सब kucchh सहना और हँसते रहना ,
हर सुबह काँटों की गोद में आँखें खोलना और phir भी मुस्कुराते रहना ,
कभी उफ़ भी न करना ,आह भी न भरना ,हर ज़ख्म पर मुस्कुराते रहना ,
क्या kismat पाई है ------- dard सहकर भी सबको मुस्कान देना ,
हर चाहत को दूसरे की खुशी में jazb कर देना ,
अपने dard का kisi को अहसास भी न होने देना,
रात भर काँटों के bistar पर गुजारना ,
और fir अगली सुबह वो ही मुस्कराहट होठों पर सजा कर रखना ,
आसान नही होता ..................................................................
सीख सके तो सीख जीने का ढंग ,
सहने का ढंग ,मुस्कुराने का ढंग ,
सबको खुशीयाँ बाँटने का ढंग

1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आशा और निराशा के क्षण, पग-पग पर मिलते है।
काँटों की पहरेदारी में ही, गुलाब खिलते हैं।।
पतझड़ और बसन्त कभी हरियाली आती है।
सर्दी-गर्मी सहने का, सन्देश सिखाती है।
यश और अपयश साथ-साथ दायें-बायें चलते हैं।
काँटों की पहरेदारी में ही, गुलाब खिलते हैं।।